अब हम कुंअर इंद्रजीतसिंह की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि उधर क्या हो रहा है।
किशोरी और कमलिनी की बातचीत सुनकर कुंअर इंद्रजीतसिंह से रहा न गया और उन्होंने बेचैनी के साथ उन दोनों की तरफ देखकर कहा, “क्या तुम लोगों ने मुझे सताने और दुःख देने के लिए कसम ही खा ली है क्यों मेरे दिल में हौल पैदा कर रही हो असल बात क्यों नहीं बतातीं!”
किशोरी - (मुस्कराती हुई) यद्यपि मुझे आपसे शर्म करनी चाहिए मगर कमला और कमलिनी बहिन ने मुझे बेहया बना दिया, तिस पर आज की दिल्लगी मुझे हंसाते-हंसाते बेहाल कर रही है। आप बिगड़े क्यों जाते हैं! ठहरिये-ठहरिये, जल्दी न कीजिये और समझ लीजिये कि मेरी शादी आपके साथ नहीं हुई बल्कि कमलिनी की शादी आपके साथ हुई है।
कुमार - सो कैसे हो सकता है! और मैं क्योंकर ऐसी अनहोनी बात मान लूं।
कमलिनी - अब आपकी हालत बहुत खराब हो गई! क्या कहूं मैं तो आपको अभी और छकाती मगर दया आती है इसलिए छोड़ देती हूं। इसमें कोई शक नहीं कि मैंने आपसे दिल्लगी की है मगर इसके लिए मैं आपसे इजाजत ले चुकी हूं! (अपनी तर्जनी उंगली दिखाकर) आप इसे पहचानते हैं!
कुमार - हां-हां, मैं इस अंगूठी को खूब पहचानता हूं, तिलिस्म के अंदर यह मैंने इंद्रानी को दी थी, मगर अफसोस!
कमलिनी - अफसोस न कीजिए, आपकी इंद्रानी मरी नहीं बल्कि जीती-जागती आपके सामने खड़ी है।
कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार के दिल से आश्चर्य और दुःख को धोकर साफ कर दिया और उन्होंने खुशी-खुशी कमलिनी और किशोरी का हाथ पकड़कर कहा, “क्या यह सच है?'
किशोरी - जी हां, सच है।
कुमार - और जिन दोनों को मैंने मरी हुई देखा था वे कौन थीं?
किशोरी - वे वास्तव में माधवी और मायारानी थीं जो तिलिस्म के अंदर ही अपनी बदकारियों का फल भोगकर मर चुकी थीं। आपके दिल से उस शादी का खयाल उठा देने के लिए ही उनकी लाशें इंद्रानी और आनंदी बनाकर दिखा दी गई थीं, मगर वास्तव में इंद्रानी यहीं मौजूद है और आनंदी लाडिली थी जो आनंदसिंह के साथ ब्याही गई थी। इस समय उधर भी कुछ ऐसा ही रंग मचा हुआ है।
कुमार - तुम्हारी बातों ने इस समय मुझे प्रसन्न कर दिया, विशेष प्रसन्नता तो इस बात से होती है कि तुम खुले दिल से इन बातों को बयान कर रही हो और कमलिनी में तथा तुममें पूरे दर्जे की मुहब्बत मालूम होती है। ईश्वर इस मुहब्बत को बराबर इसी तरह बनाए रहे। (कमलिनी से) मगर तुमने मुझे बड़ा ही धोखा दिया, ऐसी दिल्लगी भी कभी किसी ने नहीं सुनी होगी! आखिर ऐसा किया ही क्यों!
कमलिनी - अब क्या सब बातें खड़े-खड़े ही खत्म होंगी और बैठने की इजाजत न दी जायगी!
कुमार - क्यों नहीं, अब बैठकर हंसी-दिल्लगी करने और खुशी मनाने के सिवाय और हम लोगों को करना ही क्या है!
इतना कहकर कुंअर इंद्रजीतसिंह गद्दी पर बैठ गए और हाथ पकड़कर किशोरी और कमलिनी को अपने दोनों बगल में बैठा लिया। कमला आज्ञा पाकर बैठा ही चाहती थी कि दरवाजे पर ताली बजने की आवाज आई जिसे सुनते ही वह बाहर चली गई और तुरंत लौटकर बोली, “पहरे वाली लौंडी कहती है कि भैरोसिंह बाहर खड़े हैं।”
कुमार - (खुश होकर) हां-हां, उन्हें जल्द ले आओ, इन हजरत ने मेरे साथ क्या कम दिल्लगी की है अब तो मैं सब बातें समझ गया। भला, आज उन्हें इत्तिला कराके मेरे पास आने का दिन तो नसीब हुआ!
कुमार की बातें सुनकर कमला पुनः बाहर चली गई और कमलिनी तथा किशोरी कुमार के बगल से कुछ हटकर बैठ गईं, इतने ही में भैरोसिंह आ पहुंचे।
कुमार - आइए, आइए, आपने भी मुझे बहुत छकाया है पर क्या चिंता है, समय मिलने पर समझ लूंगा।
भैरो - (हंसकर) जो कुछ किया (किशोरी की तरफ बताकर) इन्होंने किया, मेरा कोई कसूर नहीं।
कुमार - खैर जो हुआ सो अच्छा हुआ, अब मुझे सच्चा-सच्चा हाल तो सुना दो कि तिलिस्म के अंदर इस तरह की रूखी-फीकी शादी क्यों कराई गई और इस काम के अगुला कौन महापुरुष हैं?
भैरो - (किशोरी की तरफ इशारा करके) जो कुछ किया सब इन्होंने किया। यही सब काम में अगुआ थीं और राजा गोपालसिंह इस काम में इनकी मदद कर रहे थे। उन्हीं की आज्ञानुसार मुझे भी मजबूर होकर इन लोगों का साथ देना पड़ा था। इसका खुलासा हाल आप कमला से पूछिए, यही ठीक-ठीक बतावेगी।
कुमार - (कमला से) खैर तुम्हीं बताओ कि क्या हुआ?
कमला - (किशोरी से) कहो बहिन, अब तो मैं साफ कह दूं?
किशोरी - अब छिपाने की जरूरत ही क्या है?
कमला ने इस तरह से कहना शुरू किया, “किशोरी बहिन ने मुझसे कई दफे कहा कि 'तू इस बात का बंदोबस्त कर कि किसी तरह मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ हो जाय' मगर मेरे किये इसका कुछ भी बंदोबस्त न हो सका और कममिनी रानी भी इस बात पर राजी होती दिखाई न दीं अस्तु मैं बात टालकर चुपकी हो बैठी, मगर मुझे इस बात में सुस्त देखकर किशोरी ने फिर मुझसे कहा कि 'देख कमला, तू मेरी बात पर कुछ ध्यान नहीं देती, मगर इसे खूब समझ रखियो कि अगर मेरा इरादा पूरा न हुआ अर्थात् मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ न हो गई तो मैं कदापि ब्याह न करूंगी बल्कि अपने गले में फांसी लगाकर जान दे दूंगी। कमलिनी ने जो कुछ एहसान मुझ पर किये हैं उनका बदला मैं किसी तरह चुका नहीं सकती, अगर कुछ चुका सकती हूं तो इसी तरह कि कमलिनी को पटरानी बनाऊं और आप उसकी लौंडी होकर रहूं, मगर अफसोस है कि तू मेरी बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं देती जिसका नतीजा यह होगा कि एक दिन तू रोएगी और पछताएगी।'
किशोरी की इस आखिरी बात से मेरे कलेजे पर एक चोट-सी लगी और मैंने सोचा कि जो कुछ यह कहती है बहुत ठीक है, ऐसा होना ही चाहिए। आखिर मैंने राजा गोपालसिंह से यह सब हाल कहा और उन्हें अपनी तरफ से भी बहुत-कुछ समझाया जिसका नतीजा यह निकला कि वे दिलोजान से इस काम के लिये तैयार हो गए। जब वे खुद तैयार हो गए तो फिर क्या था सब काम खूबी के साथ होने लगा।
राजा गोपालसिंह ने इस विषय में कमलिनीजी से कहा और उन्हें बहुत समझाया मगर ये राजी न हुईं और बोलीं कि 'आपकी आज्ञानुसार मैं कुमार से ब्याह कर लेने के लिए तैयार हूं मगर यह नहीं हो सकता कि किशोरी से पहले ही अपनी शादी करके उसका हक मार दूं, हां, किशोरी की शादी हो जाने के बाद जो कुछ आप आज्ञा देंगे मैं करूंगी'। यह जवाब सुनकर गोपालसिंहजी ने फिर कमलिनी को समझाया और कहा कि 'अगर तुम किशोरी की इच्छा पूरी न करोगी तो यह अपनी जान दे देगी, फिर तुम ही सोच लो कि उसके मर जाने से कुमार की क्या हालत होगी और तुम्हारी इस जिद का क्या नतीता निकलेगा?
गोपालसिंहजी की इस बात ने (कमलिनी की तरफ बता के) इन्हें लाजवाब कर दिया और लाचार हो शादी करने पर राजी हो गईं। तब राजा साहब ने भैरोसिंह को मिलाया और ये इस बात पर राजी हो गये। इसके बाद यह सोचा गया कि कुमार इस बात को स्वीकार न करेंगे अस्तु उन्हें धोखा देकर जहां तक हो तिलिस्म के अंदर ही कमलिनी के साथ उनकी शादी कर देनी चाहिए, क्योंकि तिलिस्म के बाहर हो जाने पर हम लोग स्वाधीन न रहेंगे और अगर बड़े महाराज इस बात को सुनकर अस्वीकार कर देंगे तो फिर हम लोग कुछ भी न कर सकेंगे इत्यादि।
बस यही सबब हुआ कि तिलिस्म के अंदर आपसे तरह-तरह की चालबाजियां खेली गईं और भैरोसिंह ने भी आप से भेद छिपा रखा। खुद राजा गोपालसिंहजी तिलिस्म के अंदर आये और बुड्ढे दारोगा बनकर इस काम में उद्योग करने लगे।”
कुमार - (बात रोककर ताज्जुब के साथ) क्या खुद गोपालसिंह बुड्ढे दारोगा बने थे?
कमला - जी हां, वह बुड्ढी मैं बनी थी, तथा किशोरी और इंदिरा आदि ने लड़कों का रूप धरा था।
कम - (हंसकर) यह बुड्ढी भैरोसिंह की जोरू बनी थी। अब इस बात को सच कर दिखाना चाहिए, अर्थात् इस बुड्ढी को भैरोसिंह के गले मढ़ना चाहिये।
कुमार - जरूर! (कमला से) तब तो मैं समझता हूं कि 'मकरंद' इत्यादि के बारे में जो कुछ भैरोसिंह ने बयान किया था वह सब झूठ था।
कमला - हां बेशक उसमें बारह आने से ज्यादा झूठ था।
कुमार - खैर तब क्या हुआ तुम आगे बयान करो।
कमला ने फिर इस तरह बयान करना शुरू किया –
“भैरोसिंह जान-बूझकर इसलिये पागल बनाकर आपको दिखाये गये थे जिससे एक तो आप धोखे में पड़ जायं और समझें कि हमारे विपक्षी लोग भी वहां रहते हैं, दूसरे आपसे मिलाप हो जाने पर यदि भैरोसिंह से कभी कुछ भूल भी हो जाय तो आप यही समझें कि अभी तक इनके दिमाग में पागलपन का कुछ धुआं बचा हुआ है। जिस समय हम लोग तिलिस्म के अंदर पहुंचाए गये थे, उस समय राजा गोपालसिंह ने अपनी खास तिलिस्मी किताब कमलिनीजी को दे दी थी जिससे तिलिस्म का बहुत-कुछ हाल इन्हें मालूम हो गया था और इनकी मदद से हम लोग जो चाहते थे करते थे तथा किसी बात की तकलीफ भी नहीं होती थी और खाने-पीने की सभी चीजें राजा गोपालसिंहजी पहुंचा दिया करते थे।
भैरोसिंह जब पागल बनने के बाद आपसे मिले थे तो अपना ऐयारी का बटुआ जान - बूझकर कमलिनीजी के पास रख गये थे। फिर जब भैरोसिंह को बुलाने की इच्छा हुई तो उन्हीं का बटुआ और पीले मकरंद की लड़ाई दिखाकर वे आपसे अलग कर लिये गये, कमलिनी पीले मकरन्द की सूरत में थीं और मैं उनका मुकाबला कर रही थी, कही-बदी और मेल की लड़ाई थी इसलिए आपने समझा होगा कि हम दोनों बड़े बहादुर और लड़ाके हैं। अस्तु इस मामले के बाद जब इंद्रानी और आनंदी वाले बाग में भैरोसिंह आपसे मिले तब भी इन्होंने बहुत-सी झूठ बातें बनाकर आपसे कहीं और जब आप इनसे रंज हुए तो आपका संग छोड़कर फिर हम लोगों की तरफ चले आये।1 आप दोनों भाई उस समय शादी करने से इंकार करते थे मगर मजबूरी और लाचारी ने आपका पीछा न छोड़ा, इसके अतिरिक्त खुद इंद्रानी और आनंदी ने भी आप दोनों को किशोरी और कामिनी की चिट्ठी दिखाकर खुश कर लिया था। यहां आकर आपने सुना ही है कि कमलिनीजी के पिता बलभद्रसिंहजी जिन्हें भूतनाथ छुड़ा लाया था यकायक गायब हो गए और कई दिनों के बाद लौटकर आये।”
कुमार - हां सुना था।
कमला - बस उन्हें राजा गोपालसिंह ही यहां आकर ले गये थे और खुद बलभद्रसिंहजी ने ही अपनी दोनों लड़कियों का कन्यादान किया था।
कुमार - (हंसते हुए) ठीक है, अब मैं सब बातें समझ गया और यह भी मालूम हो गया कि केवल धोखा देने के लिए ही माधवी और मायारानी जो पहले ही मर चुकी थीं, इंद्रानी और आनंदी बनाकर दिखाई गई थीं।
1. देखिए चंद्रकान्ता संतति, अठारहवां भाग, ग्यारहवां बयान।
भैरो - जी हां।
कुमार - मगर नानक वहां क्योंकर पहुंचा था
भैरो - आप सुन चुके हैं कि तारासिंह ने नानक को कैसा छकाया था, अस्तु वह हम लोगों से बदला लेने की नीयत करके वहां गया और मायारानी से मिल गया था। कमलिनीजी ने वहां का रास्ता उसे बता दिया था उसी का यह नतीजा निकला। जब मायारानी राजा गोपालसिंह के कब्जे में पड़ गई तब राजा साहब ने नानक को बहुत-कुछ बुरा-भला कहा, यहां तक कि नानक उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने कसूर की माफी मांगी। उस समय राजा साहब ने उसका कसूर माफ करके उसे अपने साथ रख लिया। तब से वह उन्हीं के कब्जे में रहा और उन्हीं की आज्ञानुसार आपको धोखे में डालने की नीयत से मायारानी और माधवी की लाश के पास दिखाई दिया था। वे दोनों लाश पहले ही मारी जा चुकी थीं, मगर आपको भुलावा देने की नीयत से उनकी लाश इंद्रानी और आनंदी बनाकर दिखाई गई थीं। इसके अतिरिक्त और जो कुछ हाल है वह आपको राजा गोपालसिंहजी की जुबानी मालूम होगा।
कुमार - ठीक है, मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि मायारानी और माधवी की लाश को इंद्रानी और आनंदी की सूरत में देखकर जो कुछ रंज मुझे हुआ था और आज तक इस घटना का जो कुछ असर मेरे दिल में था वह जाता रहा। अब मैं अपने को खुशनसीब समझने लगा। (कमलिनी से) अच्छा यह बताओ कि रात की दिल्लगी तुमने किस तौर पर की मेरी समझ में कुछ न आया और न इस बात का पता लगा कि मेरी सूरत क्योंकर बदल गई?
कमलिनी - इस बात का जवाब आपको कमला से मिलेगा।
कमला - यह तो एक मामूली बात है। समझ लीजिये कि जब आप सो गए तो इन्हीं (कमलिनी) ने आपको बेहोश करके आपकी सूरत बदल दी।1
कुमार - ठीक है मगर ऐसा क्यों किया?
कमला - एक तो दिल्लगी के लिए और दूसरे किशोरी के इस खयाल से कि जिसकी शादी पहले हुई है उसी की सुहागरात भी पहले होनी चाहिए।
कुमार - (हंसकर और किशोरी की तरफ देखकर) अच्छा तो यह सब आपकी बहादुरी है। खैर आज आपकी पारी होगी ही, समझ लूंगा!
किशोरी ने शर्माकर सिर नीचा कर लिया और कुमार की बात का कुछ भी जवाब न दिया।
इसके बाद वे लोग कुछ देर तक हंसी-खुशी की बातें करते रहे और तब अपने-अपने ठिकाने चले गये।
1. यही काम उधर लाडिली ने किया था। खुद तो पहले ही से कामिनी बनी हुई थी मगर जब कुमार सो गए तब उन्हें बेहोश करके उनकी सूरत बदल दी और सुबह को उनके जागने के पहले ही अपना चेहरा साफ कर लिया।
कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह की शादी के बाद कई दिनों तक हंसी-खुशी का जलसा बराबर बना रहा क्योंकि इस शादी के आठवें ही दिन कमला की शादी भैरोसिंह के साथ और तारासिंह की शादी इंदिरा के साथ हो गई और इस नाते को भूतनाथ तथा इंद्रदेव ने बड़ी खुशी के साथ मंजूर कर लिया।
इन सब कामों से छुट्टी पाकर महाराज ने निश्चय किया कि अब पुनः उसी बगुले वाले तिलिस्मी मकान में चलकर कैदियों का मुकदमा सुना जाय, अस्तु आज्ञानुसार बाहर के आये हुए मेहमान लोग हंसी-खुशी के साथ बिदा किए गये और फिर कई दिनों तक तैयारी करने के बाद सभों का डेरा कूच हुआ और पहले की तरह पुनः वह तिलिस्मी मकान हरा-भरा दिखाई देने लगा। कैदी भी उसी मकान के तहखाने में पहुंचाये गये और सबका मुकदमा सुनने की तैयारी होने लगी।

 

 


 

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