१महामहिन्दथेरं तं थेरं इट्ठियमुत्तियं।
संबलं भद्दसालं च सके सद्विविहारिके।।७।।

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(१ महामहिन्द हा अशोक राजाचा पुत्र होता; तो व त्याची बहिण संघमित्रा यांनीं संघांत प्रवेश करून सिलोनांत बौद्धधर्माची स्थापना केली.)
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लंकादीपे मनुञ्ञह्मि मनुञ्ञं जिनसासनं।
पतिट्ठपेथ तुह्मेति पंच थेरे अपेसयि।।८।।


(त्यानें) महामहिन्द, इट्ठिय, उत्तिय, संबल आणि भद्दसाल या पांच आपल्या सोबती स्थाविरांना ‘तुह्मी सुंदर लंकाद्वीपामध्यें मनोरम बुद्धधर्माची स्थापना करा’ असें सांगून (त्या द्वीपाला) पाठविलें.

सुवर्णभूमि ब्रह्मदेशासच ह्मणत असत किंवा नाहीं याबद्दल शंका आहे. अपरन्त वगैरे प्रदेश कोठें होते याचाहि अद्यापि नीट शोध लागला नाहीं. वर सांगितलेल्या स्थानांपैकीं लंकाद्वीप आणि हिमालय या दोन प्रदेशांत बौद्धधर्म आजला अस्तित्वांत आहे. परंतु नेपाळ, तिबेट इत्यादि देशांत अशोकाच्या वेळेपासून बौद्धधर्माची परंपरा कायम राहिली नाहीं. मध्यंतरीं बौद्ध धर्माचा ह्या देशात लोप झाला. व कांही कालानें पुनः २महायान पंथाचा प्रसार झाला. सांप्रत लंका(सिंहल), ब्रह्मदेश, सयाम व कांबोडिया या दक्षिणेकडील देशांतूनच अशोककालची परंपरा कायम राहिली आहे. एक तर या देशांतील सर्व धर्मग्रंथ पालिभाषेंत आहेत, व १वज्रपाणि तारा इ० देवतांचा समावेश ह्या पंथांत झालेला नाहीं. तेव्हां आजकाल ज्याला प्राचीन बौद्ध धर्माची किंवा संघाची माहिती करून घ्यावयाची असेल त्यानें पालिभाषेतील बौद्धधर्म ग्रंथांचें ज्ञान संपादावें, हें उत्तम.
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(२- उत्तरे कडील बौद्ध महायान पंथाचे आहेत. महायानाचा उदय इ०स० २ र्‍या शतकांत झाला असावा.)
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(१ वज्रपाणि,तारा, अवलोकितेश्वर इत्यादि देवतांचे महायान पथांमध्यें फारच प्रस्थ माजलें आहे. महायानाचे सगळे ग्रंथ संस्कृत भाषेंत लिहिले आहेत. कांहीं ग्रंथांची संस्कृत भाषाहि शुद्ध नाहीं.)
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