अजूबा भारत पूरे विश्व मे भारत सबसे अजूबा, अनोखा, अद्भुत; अनूठा तथा अलौकिक देश है। यहा की धरती, आसमान तथा उसमे विचरण करने वाले प्राणियों का ही वैचित्र्य चकित नहीं करता अपितु जो अदृश्य लोक है वह उससे भी कहीं अधिक चमत्कारी और चकाचौंध देने वाला है। विज्ञान चाहे कितनी ही उथल पुथल मचा दे तब भी जो रहस्यमय है वह अजाना ही रहेगा। ऐसी रहस्यमय परतो को जानना, उन्हें खोज निकालना और उन पर विवेचन करना बडा मुश्किल। मनुष्य स्वय की यह बिसात भी नहीं कि वह इसके लिए समर्थ हो सके।

सामर्थ्य जुटाने के लिए उसे उन देव-शक्तियो की शरण में जाना पड़ेगा जिनकी यदि हो गई तो कुछ पा लिया। म्वाभाविक भी है, देवलोक की समृद्धि मनुष्य लोक की कैसे हो सकती है। मनुष्य के लिए उसका अपना लोक ही बहुत है। वह उसी को ठीक से देख-समझ नहीं पा रहा है। अन्य जितने भी जो लोक है उन तक मानव की पहुंच मभव भी नहीं है। सभी लोककेप्राणी अपनी- अपनी सीमाओं और मर्यादाओ मे जी रहे हैं। जिसने भी इनका उल्लघन किया उमे वह बड़ा भारी पडा। लोकजीवन की शक्ति और सामर्थ्य अकून और अलभ्य है। उसे जितना अधिक खगालेगे उतने ही अजूबेपन के टीम्बे और टीले बढते मिलेंगे।

अजूबेपन की जानकारी सबको ही सम्मोहित करती है और उतना ही विस्मय भी देती है। परियो, देव गधों और भूत प्रेतो के किस्से जितना रोमाच देते है उससे कहीं अधिक खडहरो के वैभव और खजानो के किस्से हमे आह्लादित करते है।अनकही पूरे विश्व में भारत सबसे अजूबा, अनोखा, अद्भुत, अनूठा तथा अलौकिक देश है। यहां की धरती, आसमान तथा उसमें विचरण करने वाले प्राणियों का ही वैचित्र्य चकित नही करता अपितु जो अदृश्य लोक है वह उससे भी कही अधिक चमत्कारी और चकाचौंध देने वाला है। विज्ञान चाहे कितनी ही उथल पुथल मचा दे तब भी जो रहस्यमय है वह अजाना ही रहेगा। ऐसी रहस्यमय परतों को जानना, उन्हें खोज निकालना और उन पर विवेचन करना बडा मुश्किल है।

मनुष्य स्वयं की यह बिसात भी नहीं कि वह इसके लिए समर्थ हो सके। सामर्थ्य जुटाने के लिए उसे उन देव-शक्तियों की शरण में जाना पडेगा जिनकी यदि कृपा हो गई तो कुछ पा लिया। स्वाभाविक भी है, देवलोक की समृद्धि मनुष्य लोक की कैसे हो सकती है। मनुष्य के लिए उसका अपना लोक ही बहुत है। वह उसी को ठीक से देख-समझ नही पा रहा है। अन्य जितने भी जो लोक हैं उन तक मानव की पहुंच सभव भी नहीं है । सभी लोक के प्राणी अपनी-अपनी सीमाओ और मर्यादाओ में जी रहे है। जिसने भी इनका उल्लघन किया उसे वह बड़ा भारी पड़ा है। लोकजीवन की शक्ति और सामर्थ्य अकूत और अलभ्य है। उसे जितना अधिक खगालेगे उतने ही अजूबेपन के टीम्बे और टीले बढते मिलेंगे।

अजूबेपन की जानकारी सबको ही सम्मोहित करती है और उतना ही विस्मय भी देती है। परियों, देव गंधर्वो और भूत प्रेतो के किस्से जितना रोमांच देते हैं उससे कहीं अधिक खडहरो के वैभव और खजानो के किस्से हमें आह्लादित करते हैं। इस पुस्तक मे दो तरह के आलेख संग्रहीत हैं। एक वे जो लोकजीवन के अध्ययन और अनुभव से निखारे गये है और दूसरे वे जो लोक शक्ति से परे देव शक्ति के सरक्षण, सबल और संवर्धन के प्रतिफल है। यह देव शक्ति भी लोक की ही सवेदनाओं और सरोकारो से रूबरू होती हुई हमारे समक्ष मुखातिब होती है लोक की अनगढ आस्था करती है, सुध लेती है और मगल मागल्य बनाये रखती है। मुझे यह शक्ति लोक देवता कल्लाजी के रूप में मेहरवान हुई। कल्लाजी राजस्थान क

मुझे यह शक्ति लोक देवता कल्लाजी के रूप में मेहरबान हुई। कल्लाजी राजस्थान का वीरवर राठौड़ घराने के बड़े बलशाली, बहादुर और रणबके ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनके वीरोचित निष्काम कार्य ने ही उन्हें लोकजीवन मे लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित किया। अपने अनन्य सेवक सरजुदासजी के साथ लोकदेव कल्लाजी ने मुझे काशी, मथुरा, वृन्दावन, डाकोर, गिरनार, सोमनाथ, मेडता, चित्तौड, देशनोक, मंडोवर, माडू, चित्रकूट, पन्ढरपुर, नासिक, शामलाजी, एलीफेंटा, कन्याकुमारी, उज्जैन, गया, रामेश्वरम् आदि कई स्थानो का भ्रमण कराया और वह अर्न्तदृष्टि दी जिससे मैं वहां के रहस्यमय वैभव- विन्यास को देख सका और उन घटना-तथ्यों एवं कहानी-किस्सों से वाकिफ हो सका जो अब तक न किसी इतिहास के पन्नों पर चढ पाये और न लोकजीवन के ही साक्ष्य बन सके।

कल्लाजी के सान्निध्य से यह रहस्योद्घाटन भी हुआ कि अकबर के मनमबदार और सेनापति रहे राजा मानसिंह की आत्मा आज भी लोकहितार्थ विचरणशील है। स्वयं मानसिंहजी ने मेरी यात्राओं में कई दिव्य जानकारिया देने के लिए अपनी उपस्थिति दी वे अब कल्लाजी के सेनापति हैं। मुझे विश्वास है, ये आलेख सामान्य पाठकों के अलावा समाजविज्ञानियो, नृतत्वशास्त्रियों, इतिहासज्ञो, लोक साहित्य प्रेमियो, पुरातत्व खोजियों तथा मौन साधकों को भी रूचिकर लगेंगे कारण कि उनके लिए भी इनमें वह कुछ मिलेगा जिसकी उन्हें चाह है। यह सब अध्ययन, शोधानुसंधान का एक मार्ग आत्माओं के साक्ष्य की ओर भी ले जाता है|

यह धारणा विकसित करता है कि अतीत की परते खोलने के लिए देवात्मा- दिव्यात्माओ की जुबानी इतिहास लेखन के पारम्परिक स्त्रोतों के अलावा एक विशिष्ट स्रोत के रूप ने स्वीकार्य हो जो कि लोकजीवन के लिए तो पाषाण-रेखा है ही।

 

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