द्यात्लोव पास घटना नाम है फेब्रुअरी २ १९५९ को उत्तरीय उरल पहाड़ों में ९ यात्रियों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत के किस्से का | द्यात्लोव पास में  हम उस गुट के नेता इगोर द्यात्लोव का ज़िक्र कर रहे हैं |

इस घटना में उरल पोलीटेक्निकल संसथान के १० लोगों के बारे में बात हो रही है जिन्होनें रात भर के लिए खोलत स्याखी के पहाड़ों पर अपना डेरा जमाया था | जांचकर्ताओं ने बाद में ये बताया की यात्रियों ने स्वयं अपने टेन्ट को अन्दर से बाहर को फाड़ दिया था | वह भारी बर्फबारी के बावजूद कैंप के स्थान से भाग गए थे और उनमें से  कुछ नंगे पाँव थे | हालाँकि शरीर पर कोई लडाई या चोट के  निशान नहीं थे दो पीड़ितों की खोपड़ी और पसलियाँ टूटी हुईं थी | सोवियत अधिकारीयों की जांच से पता चल की एक “अज्ञात सम्मोहक बल” इन मौतों का ज़िम्मेदार था; घटना के अगले तीन सालों तक इस इलाके तक यात्रियों की आवाजाही रोक दी गयी | किसी भी इंसान के जीवित न बचने के कारण घटना क्रम का अनुमान लगाना मुश्किल है , हालाँकि कई स्पष्टीकरण सामने रखे गए हैं जैसे संभव हिमस्खलन, सैन्य घटना , या यती या किसी और अनजान प्राणी के साथ मुठभेड़ |

पृष्ठभूमि
उत्तरीय उरल में स्की ट्रेक के लिए एक गुट का स्वेर्द्लोवस्क ओब्लास्ट में गठन हुआ | इगोर द्यात्लोव के नेतृत्व में बने मूल गुट में आठ आदमी और २ औरतें थी | अधिकांश इनमें से उरल पोलीटेक्निकल संसथान अब उरल फ़ेडरल विश्वविद्यालय के छात्र या स्नातक थे |

अभियान का उद्देश्य था ओतोरतें (ओतोप्तेह ) तक पहुंचना जो की घटना स्थल से १० किलोमीटर (6.२ मील) की दूरी पर था | इस रस्ते को फेब्रुअरी में श्रेणी III अर्थात सबसे मुश्किल करार दिया गया था | सारे ही गुट के सदस्य स्की पर्यटन और पहाड़ के अभियानों में प्रशिक्षित थे |

गुट ट्रेन से जनवरी  25 को इव्देल ,  स्वेर्द्लोव्स्क के उत्तरीय प्रान्त में स्थित एक शहर पर पहुंचे | वहां से उन्होनें विज्हाई के लिए ट्रक में यात्रा की – उत्तर में आख़री बसा हुआ शहर | जनवरी २७ को उन्होनें विज्हाई से ओतोरतें की तरफा चलना शुरू किया | अगले दिन गुट के एक सदस्य युरी युदीन को तबियत ख़राब होने की वजह से वापस आना पड़ा | बाकी के ९ लोग ट्रेक पर आगे बढ़ गए |

उनके आख़री पढाव पर मिले डायरी और कैमरों से घटना के एक दिन पहले तक गुट का तय किया गया रास्ता पता चलता है | ३१ जनवरी को गुट एक ऊँचाई वाले इलाके पर पहुंचे और चड़ाई की तैय्यारी करने लगे | एक घाटी  में उन्होनें अधिक खाना और उपकरणोंको छिपा दिया जो वह वापसी यात्रा में इस्तेमाल करने  वाले थे | अगले दिन (फेब्रुअरी १) को यात्री पास से आगे बढ़ने लगे | उनको इरादा था की वह पास को जल्दी ही पार कर दूसरी तरफ अपना डेरा जमायेंगे लेकिन ख़राब मौसम के हालात - बर्फ का तूफ़ान और कम दिखना - के कारण वह अपना रास्ता भटक गए और पश्चिम की तरफ मुड़ खलोत स्यख्ल की तरफ चले गए | जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो गुट ने वहीँ पहाड़ की ढलान पर रुक अपना डेरा ज़माने का फैसला किया ,बजाय इसके की १.५ किलोमीटर (.९३ मील)नीचे जा कर एक जंगल क्षेत्र जो उनकी तत्वों से सुरक्षा करता में जा कर रुक जाते | युदीन अकेले बचने वाले शख्स ने कहा की “ द्यात्लोव शायद अपनी बढ़त खोना नहीं चाहते थे या शायद वह पहाडी ढलान पर डेरा बनाने का अभ्यास करने का फैसला किया था |

खोज और पता चलना
जाने से पहले द्यात्लोव इस बात के लिए तैयार हो गए थे की वो अपने खेल क्लब को विज्हाई वापस पहुँचते ही टेलीग्राम भेज देंगे | ऐसा मानना  था की ये फेब्रुअरी १२ से पहले नहीं होगा लेकिन द्यात्लोव ने युदीन को गुट से लौटने के वक़्त बोला था की इसमें ज्यादा वक़्त भी लग सकता है | जब १२ निकल गयी और कोई सन्देश नहीं मिला तब भी कोई कारवाई नहीं की गयी ये सोच की ऐसे अभियानों में थोड़ी बहुत देर सवेर हो जाती है | जब कुछ गुट के सदस्यों के रिश्तेदारों ने फेब्रुअरी २० को एक बचाव अभियान का मुद्दा उठाया तब संसथान के प्रमुख ने पहले बचाव गुटों को जिनमें शामिल थे स्वयसेवी छात्र और अध्यापक को वहां जाने की अनुमति दी | बाद में आर्मी और फ़ौजी ताकतें भी शामिल हो गयी और बचाव के लिए प्लेन और हेलीकाप्टर का इस्तेमाल किया जाने लगा |

फेब्रुअरी २६ को बचाव गुट को यात्रियों का क्षतिग्रस्त और परित्यक्त टेन्ट खलोत स्यख्ल पर मिला | मिखाइल शराविन जिस छात्र को टेन्ट मिला का कहना था “ टेन्ट आधा फटा हुआ और बर्फ से ढका हुआ था” | वह खाली था और सिर्फ यात्रियों का सामान और जूते वहां पर मोजूद थे | जांचकर्ताओं ने बताया की टेन्ट को अन्दर से काटा गया था | ८ से ९ पैरों के निशान , ऐसे लोगों द्वारा छोड़े गए थे जो केवल मौजे पहने थे , या एक जूता पहने थे या फिर नंगे पैर थे का पीछा आस पास के जंगलों में जो पास के दूसरी तरफ उत्तर पूर्व दिशा में १.५ किलोमीटर पर स्थित था तक किया जा सकता था | लेकिन करीब ५०० मीटर(१६०० फीट)  बाद वो निशान बर्फ से ढके हुए थे | जंगल के छोर पर एक बड़े देवदार के पेड़ के नीचे खोज गुट को आग के निशान मिले और साथ में पहले दो शव क्रिवोनीस्चेंको और दोरोशेनको के जो बिना जूते के थे और सिर्फ अपने अंग वस्त्र पहने थे | पेड़ की ५ मीटर की ऊँचाई पर उसकी डालियाँ टूटी हुई थी जिससे ये पता चला था की एक यात्री कुछ ढूँढने के लिए शायद पढाव देखने के लिए पेड़ पर चड़ा था | देवदार और पढाव के बीच में खोजी गुट को तीन और शव मिले : द्यात्लोव, कोल्मोगोरोवा और स्लोबोदीन जो ऐसी मुद्रा में थे जैसे पढाव वापस आना चाहते हों | उनको पेड़ से ३०० ,४८० और ६३० पर अलग अलग पाया गया |

बाकी चार यात्रियों की तलाश में दो महीने से ज्यादा लग गए | उनके शव आख़िरकार मई ४ को देवदार के पेड़ से ७५ मीटर दूर जंगल में एक खाई में ४ मीटर बर्फ में दबे मिले | ये चारों बाकियों से अच्छे कपडे पहने हुए थे ,और ऐसा लग रहा था की जो पहले मरे थे उन्होनें अपने कपडे औरों को दे दिए थे | ज़ोलोतार्योव दुबिनिना का फर कोट और टोपी पहने थे जबकि दुबिनिना का पैर क्रिवोनीशेनको के उन के पैंट में लिपटा हुआ था |

जांच
पहले पांच शव मिलने के बाद ही एक क़ानून जांच शुरू कर दी गयी | चिकित्सक जांच से कोई ऐसे घाव ने मिले जिनसे मौत हो सकती हो और अंत में ये माना गया की सब अल्पताप से मरे थे | स्लोबोदीन की खोपड़ी में छोटा सा घाव था लेकिन वो जानलेवा नहीं था |

मई में मिले शवों की जांच से घटना का रुख बदल गयी | ३ यात्रियों के जानलेवा घाव थे : थिबेऔक्स – ब्रिग्नोल्लेस की खोपड़ी को काफी चोट आई थी और दुबिनिना और ज़ोलोतारेव के छाती की हड्डियाँ टूटी हुई थीं | डॉक्टर बोरिस वोज्रोज्हदेंनी के हिसाब से ऐसे नुकसान के लिए उतने बल की  ज़रुरत है जैसे एक कार दुर्घटना में लगता है | देखने वाली बात ये थी की किसी भी शव पर ज्यादा दबाव लगा कर हड्डी के टूटने जैसी बाहरी चोट नहीं थी | लेकिन दुबिनिना के शव पर काफी बाहरी चोटें थीं और उसकी जीभ , आँखें , होटों के हिस्से , चेहरे और खोपड़ी का थोडा भाग गायब थे | ऐसा बताया जा रहा था की दुबिनिना का शव बर्फ से ढकी एक छोटी नदी में पाया गया था और उसके बाहरी घाव अधिक पानी की वजह से सड़ने की वजह से हो सकते थे लेकिन उसकी मौत की वजह से जुड़े हुए नहीं थे |

शुरुआत की जाँच से ऐसा लगा की मानसी जाती के लोगों ने उनकी ज़मीन पर आने के लिए यात्रियों पर हमला कर उन्हें मार दिया होगा, पर जांच से पता चला की उनके मौत का तरीका इस बात का समर्थन नहीं करता था , यात्रियों के पैरों के निशान दिख रहे थे और लड़ाई के कोई चिन्ह नहीं थे |

हांलाकि तापमान बहुत कम था करीबन -२५ से -३० डिग्री सी  (-१३ से -२२ डिग्री एफ ) और तूफ़ान भी आ रहा था फिर भी मरे हुए लोगों ने काफी कम कपडे पहने थे | कुछ ने सिर्फ एक जूता पहना था , और कुछ ने एक भी नहीं या सिर्फ मौजे पहने थे | कुछ के शव फटे हुए कपड़ों जो की मरे हुए लोगों के शरीर से कटे हुए थे से बंधे पाए गए |

पत्रकार जो उस जांच से मिली जानकारी का विश्लेषण कर रहे थे उन्होनें कुछ ऐसे लिखा |
• ६ यात्रियों की मौत अल्पताप से और ३ की जानलेवा घावों से हुई |
• इन ९ यात्रियों के इलावा खलोत स्यख्ल पर किसी और इंसान या इंसानों के होने के कोई आसार नहीं था |
• टेन्ट को अन्दर से काटा गया था
• यात्रियों की मौत अपने आख़री भोजन के ६ से ८ घंटे के बाद हुई थी |
• पड़ाव से मिले निशानों के हिसाब से सारे यात्री वहां से अपनी मर्ज़ी से वहां से गए थे |
• मानसी जाती द्वारा हमले की बात को ख़ारिज करते हुए डॉक्टर बोरिस वोज्रोज्हदेंनी ने कहाँ की शरीर को लगे जानलेव घाव किसी इंसान द्वारा नहीं दिए गए हो सकते “ क्यूंकि घावों के वक़्त जो बल का प्रयोग हुआ वो बहुत अधिक था और मांस को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा था” |
• फोरेंसिक विकिरण जांच के दौरान कुछ यात्रियों के वस्त्रों पर रेडियोधर्मी संदूषण की काफी मात्रा दिखाई दी|
• जारी किये गए दस्तावेजों में यात्रियों के अंदरूनी अंगों की हालत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी |
• इस घटना से कोई भी नहीं बच पाया था |

उस वक़्त  फैसला था की सभी यात्रियों की मौत अज्ञात प्राकृतिक  ताकत की वजह से हुई | जांच को मई १९५९ में किसी भी आरोपी के न होने की वजह से बंद कर दिया गया |सारी फाइलों को एक गुप्त स्थान पर रख दिया गया और इस घटना की प्रतिलिपियाँ  १९९० में ही मिल पायी और उस में से कुछ भाग गायब थे|

जांच के बारे में विवाद
• १२  साल के युरी कुन्त्सेविच जो बाद में येकातेरिनबर्ग स्थित द्यात्लोव संसथान( नीचे देखें)  के प्रमुख बने ने पांच यात्रियों के अंतिम संस्कार में भाग लिया था और ये बताया की उनकी त्वचा “गहरे भूरे रंग” की हो गयी थी|
• कुछ और यात्रियों ( घटना से ५० किलोमीटर दक्षिण की तरफ ) ने बताया की उन्होनें उत्तर की तरफ उस रात को अजीब से नारंगी चक्र देखे थे | ऐसे चक्र १९५९ में फेब्रुअरी से मार्च तक कई स्वतंत्र गवाहों ने (मौसम विज्ञान सेवा और सेना ने भी) इव्देल में और आस पास के इलाकों में देखे थे |
• कुछ हवालों की मानें तो आस पास के इलाकों में काफी सारा धातू का चूरा पड़ा मिला था , जिससे ये अनुमान  लगाया जा रहा था की सेना गुप्त तौर से वहां कुछ काम कर रही थी |

परिणाम
१९६७ में स्वेर्द्लोव्स्क के लेखक और पत्रकार युरी यारोवोई ने घटना से प्रेरित हो एक किताब “ ऑफ़ द हाईएस्ट डिग्री ऑफ़ कोम्प्लेक्सिटी” लिखी | यारोवोई भी द्यात्लोव के गुट की तलाश में एक आधिकारिक फोटोग्राफर की तौर पर जांच की शुरुआत और बीच में भागीदार बने थे इसलिए वह  क्रम को समझते थे | ये किताब सोवियत समय में लिखी गयी थी जब घटना को गुप्त रखा गया था और यारोवोई ने अधिकारिक जानकारी और तथ्यों के इलावा कुछ भी जानकारी नहीं दी | उस किताब में पूरी घटना को थोडा रोमांचक बना दिया गया था और सिर्फ गुट के प्रमुख की मौत दिखाई गयी | यारोवोई के साथियों ने बताया की उसने किताब के और दो रूपांतरण लिखे थे लेकिन उन दोनों को सेंसर के चलते ख़ारिज कर दिया गया | १९८० में यारोवोई की मौत के बाद उसकी सारे जानकारी , जिसमें शामिल थी तसवीरें , डायरी और हस्तलिपि खो गयीं |

अनातोली गुस्चइन ने अपनी जाँच को अपनी किताब “द प्राइस ऑफ़ स्टेट सीक्रेट्स इस नाइन लिव्स” में विवरणित करने की कोशिश की | कुछ क्षोध्कर्ताओं ने इस किताब की ये उलाहना की उसमें एक अनुमान पर जोर दिया गया था की रूस का कोई गुप्त हथियार प्रयोग चल रहा था लेकिन उसके छपने से लोगों में फिर से इस घटना को लेकर बातचीत शुरू हो गयी | वाकई में कई लोग जो ३० साल से शांत थे उन्होंने घटना के बारे में नए तत्व पेश किये | उनमें से एक थे पूर्व पुलिस अफसर लेव इवानोव  जिन्होनें १९५९ में जांच का नेतृत्व किया था | १९९० में उन्होनें एक लेख लिखा जिसमें उन्होनें माना की जांचकर्ताओं के पास इस घटना का कोई  वाजिब जवाब नहीं था | उन्होनें ये बताया की जब उनके गुट ने उड़ते चक्रों के दिखने की बात बताई तो उन्होनें उपरी अफसरों से जांच को रोकने के आदेश दे दिए गए |

२००० में एक स्थानीय टेलीविजन कंपनी ने एक वृतचित्र , द मिस्ट्री ऑफ़ द्यात्लोव पास बनाई | फिल्म के कर्मचारियों के साथ एक येकतेरिन्बुर्ग लेखक अन्ना मत्वेयेवा ने उसी किताब के नाम पर एक वृतचित्र किताब छाप दी | इस किताब के काफी हिस्से में आधिकारिक जांच की टिप्पणियां , यात्रियों की डायरी , खोजकर्ताओं से वार्तालाप और अन्य वृतचित्रों का उल्लेख है | इस किताब में एक समकालीन औरत (लेखक की छवि ) के घटना को सुलझाने के प्रयत्नों को दर्शाया गया है |

उसके कथात्मक रवय्ये के बावजूद मत्वेयेवा की लिखित किताब जनता को दी गयी वृतचित्र जानकारी का सबसे बड़ा संकलन है | इसके इलावा धीरे धीरे जोशीले शोधकर्ताओं द्वारा घटना से जुड़े दस्तावेज़ और अन्य वृतचित्र ( प्रतिलिपि और हस्तलिपि) फोरम पर छापे जा रहे हैं |

येकतेरिन्बुर्ग में एक द्यात्लोव संसथान का गठन उरल स्टेट टेक्निकल विश्वविद्यालय की मदद से किया गया जिसके प्रमुख बने युरी कुन्त्सेवित्च | संसथान का उद्देश्य था मोजूदा रूसी अफसरों को घटना की जांच दुबारा शुरू करने के लिए मनाना और मृत यात्रियों की यादों को संजोने के लिए द्यात्लोव संग्रहालय का सञ्चालन करना |

वजह
अल्प्ताप
आई साइंस टाइम्स का मानना है की यात्रियों की मौत अल्प्ताप से हुई जिसका एक लक्षण होता है अपने आप अपने कपडे उतारना जिसमें पीड़ित शख्स अपने कपड़ों को स्वयं गर्माहट के अहसास के चलते उतार देते हैं |

हिमस्खलन
ये सोच की हिमस्खलन की वजह से यात्रियों की मृत्यु हुई , शुरुआत में बेहद लोकप्रिय हुई पर अंत में उस पर सवाल उठने लगे | इस सोच के खिलाफ सबूतों में शामिल हैं :
• घटनास्थल पर हिमस्खलन के कोई ज़ाहिर निशाँ नहीं थे | हिमस्खलन काफी बड़े इलाके में कई निशान और अवशेष छोड़ जाता है | दस दिन बाद मिले शवों पर हलकी सी बरफ की परत जमी हुई थी अगर हिमस्खलन होता तो उससे दूसरा गुट भी प्रभावित होता , ये शव भी तब बह जाते , जिससे शरीर पर काफी गहरी चोट लगती और पेड़ो को भी भारी नुक्सान पहुँचता |
• इस इलाके में घटना से अब तक 100 से ऊपर यात्राओं आयोजित हुई हैं लेकिन आज तक कभी हिमस्खलन जैसी स्थिती उत्पन्न नहीं हुई | उस इलाके के आज तक किये विश्लेषण से साफ़ ज़ाहिर है की यहाँ हिमस्खलन की सम्भावना बहुत कम है | आस पास के एक इलाके ( जिसमें ज्यादा ऊँची ढलान और खाइयाँ थीं ) में खतरनाक परिस्थितियां अप्रैल और मई में जब बरफ पिघल रही हो तब देखी गयीं | फेब्रुअरी में जब ये घटना हुई तब ऐसी कोई परिस्थितियां नहीं थीं |
• इलाके के विश्लेषण और ढलान से पता चला की अगर हिमस्खलन होता भी तो उसका रास्ता पढाव के पास से होकर नहीं गुज़रता | टेन्ट अधिक बर्फ के गिरने के प्रभाव से नहीं क्षतिग्रस्त हुआ था | वह क्षेतिज नहीं तिरछा होके गिरा था |
• द्यात्लोव एक प्रशिक्षित स्किएर थे और उम्रदार एलेग्जेंडर ज़ोलोतरेव स्की शिक्षा और पहाड़ लंबी पैदल यात्रा में परास्नातक प्रमाणपत्र की पड़ाई कर रहे थे | इनमें से एक भी आदमी हिमस्खलन के रास्ते में पढाव नहीं बनाता |

येती
२०१४ में डिस्कवरी चानेल के विशेष रूसी यती – कातिल जिंदा है ने इन दावों पर खोज की की द्यात्लोव का गुट एक गुस्साए यती के हाथों मारे गए थे | जांचकर्ता बेंजामिन राद्फोर्ड ने कार्यक्रम का गहरा विश्लेषण कर डाउटफुल न्यूज़ वेबसाइट के लिए जून १ को इसे लिखा | उन्होनें बताया की रूसी यती – कातिल जिंदा है इस अनुमान के साथ चलती है की यात्रियों को लगे घाव इतने अद्भुद और गहरे थे की उन्हें एक अमानवीय मजबूत प्राणी ही दे सकता था | इस कार्यक्रम में लुदमिला दुबिनिना की गायब जीभ को काफी तूल दिया गया है जैसे किसी ने वो खींच कर उस के मूंह से निकाल ली है | लेकिन राद्फोर्ड कहते हैं की एक जीभ खाने वाला यती –अगर मान भी लें की है – इस की सबसे लाज़मी वजह नहीं हो सकता | इस घटना के “गायब अंगों “ का रहस्य ऐसा ही है जैसा और देशो की कई उन्सुल्झी गुथियों में जैसे चुपकाब्र , जानवरों का काटना , शैतान के लिए जानवर की बलि और एलियंस से जुडी कथाएँ हैं | अक्सर एक उन्सुल्झी गुत्थी को उन लोगों द्वारा तूल मिलता है  जो नहीं जानते या जानबूझ कर इन मुद्दों को नहीं समझ पाते हैं - साधारण शिकार और अपघटन | कई छोटे और बड़े जानवर शवों के कोमल भागों का भक्षण करते हैं | एक और अनुमान है की दुबिनिना हिमस्खलन में फंस गयीं थीं और बर्फ और पत्थर के बल से उस  खाई में जहाँ वो मिली थीं उसमें  गिरते वक़्त चिल्लाने की वजह से उनकी जीभ कट गयी | राद्फोर्ड कहते हैं की रूसी यती – कातिल जिंदा है और मेज़बान माइक लिबेकी शायद हमें ये विश्वास दिलाना  चाहते हैं की सारे यात्रियों ने न सिर्फ यती को देखा उसकी तसवीरें भी लीं और उसका पीछा भी किया | और इसके बाद भी किसी भी यात्री ने इसका ज़िक्र तक नहीं किया | अगर लिबेकी का विश्वास करें तो यती से मुलाक़ात इतनी असाधारण सी बात थी की एक भी यात्री ने उसे अपने जर्नल में नहीं लिखा और आगे अपनी यात्रा पर बढ़ गए | कार्यक्रम के अंत में सारा कुछ नाटक और भागदौड़ दिखाने के बाद लिबेकी मानते हैं की उनके पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है की यती है और उसी की वजह से १९५९ में उन ९ रूसी यात्रियों की मौत हुई थी |

राद्फोर्ड
राद्फोर्ड की सोच है की “ उस रात को गुट चिंता में उठा और टेन्ट के दूसरी तरफ से उसे काट कर बहार निकला क्यूंकि हिमस्खलन की वजह से आगे का रास्ता बंद हो गया था या फिर  उन्हें लगा की हिमस्खलन अब होगा ही तो जल्द से जल्द वहां से भागना उचित है ( बर्फ के नीचे दबने से अच्छा है एक टेन्ट में चीरा लगा दिया जाए ) | क्यूंकि वो सो रह थे इसलिए उन्होनें कम कपडे पहने थे और वह आसपास के जंगलों में भाग गए क्यूंकि पेड़ आती हुई बर्फ को रोक देंगे | रात के अँधेरे में वह २ से ३ गुटों में बंट गए , एक गुट ने आग जलाई ( इसलिए जले हुए हाथ ) बाकी लोग पढाव तक आकर कपडे उठाने की कोशिश में व्यस्त हो गए क्यूंकि खतरा टल चुका था | पर क्यूंकि ठण्ड बहुत थी वह सब अँधेरे में पढाव तक पहुँचने से पहले ही ठण्ड से जम गए और मर गए | इसी बीच किसी भी वक़्त में  कुछ कपडे हासिल हुए होंगे या बदले गए होंगे पर फिर भी जिन शवों को सबसे ज्यादा घाव पहुंचे हैं वो वो लोग हैं जो हिमस्खलन में फँस १३ फीट बर्फ में दब गए थे ( इसीलिए उनके शरीरों को “ अज्ञात प्राकृतिक बल “ जैसे निशान हैं जिसका ज़िक्र चिकित्सक ने किया था ) | दुबिनिना की जीभ भक्षकों या साधारण शिकार से कट गयी थी | हमें नहीं पता चलेगा की क्या हुआ था पर यात्रियों की मौत की वजह जैसे बताया जा रहा है अज्ञात या रहसयमयी नहीं हैं | चिकित्सक ने जो वजह दी है अल्प्ताप या ठण्ड से मौत वही सही वजह है | कोई वजह नहीं जांचकर्ताओं जिनके पास सारे सबूत और जानकारी थी उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष पर शक करने की | क्यूँ वो अपने टेन्ट से भागे इस पर कई अटकलें लगाई जा सकती है पर ऐसा मानने की कोई वजह नहीं है की ये किसी अज्ञात या रहस्यमयी वजह से हुआ | किसी पुख्ता सबूत के न होने पर हर कहानी दूसरी से बेहतर लगती है |

इन्फ्रा ध्वनि
एक और सोच ये है की होलात्चाहल पहाड़ों में चलने वाली हवा एक “एक कर्मन वोर्तेक्स स्ट्रीट” का निर्माण करती है जो जैसन ज़स्क्य के मुताबिक इन्फ्रा ध्वनियों को जन्म देता है जिसका इंसानों पर काफी असर होता है |

सैन्य परिक्षण
कई लोगों का मानना है की ये एक सैन्य दुर्घटना थी जिसे गुप्त रखा गया था ; ऐसे सुराग मिले हैं जो ये साबित करते हैं की रूसी सेना जब यात्री वहां थे उस वक़्त वहां पैराशूट माइंस का परिक्षण कर रही थी | पैराशूट माइंस एक या दो मीटर की दूरी से फटते हैं और वैसा ही नुक्सान पहुंचाते हैं जैसा यात्रियों के शवों पर थे , भारी अंदरूनी नुक्सान और कम बाहरी चोट | आस पास के इलाकों में इस घटना की वजह से चमक चिन्ह दिखाई दिए थे | इस सोच में कटी हुई नाक, जीभ और कुछ यात्रियों के कटे पैरों के लिए जानवरों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है | लोग मानते हैं की शवों के स्थान बदले गए ; टेन्ट की तसवीरें दिखातीं हैं की उस गलत स्थापित किया गया था जो इतने प्रशिक्षित यात्री नहीं कर सकते थे |

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