वेला घटना या दक्षिण अटलांटिक फ़्लैश , एक अज्ञात रौशनी के दो बार कौंधने के वृतांत को दिया गया नाम है जिसकी  २२ सितम्बर १९७९ को  अन्टार्कटिका के नज़दीक स्थित प्रिंस एडवर्ड द्वीपों  में अमेरिकन वेला होटल उपग्रह ने पहचान की थी और जिसे परमाणु मूल का माना जा रहा है | इस विषय पर सबसे प्रचलित सोच ये है की ये रौशनी परमाणु मूल की थी और एक संयुक्त दक्षिण अफ्रीका – इजराइल परमाणु परिक्षण का नतीजा थी | ये विषय अभी भी काफी विवादास्पद है |

हांलाकि  “डबल फ़्लैश” का इशारा एक परमाणु हथियार परिक्षण की खासियत होती है , ये इशारा एक पुराने उपग्रह के एक डिटेक्टर द्वारा उत्पन्न एक नकली इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल,या फिर वेला उपग्रह की एक उल्कापिंड से हुई टक्कर का नतीजा भी हो सकता है | विस्फोट के किसी  निशान जैसे हवा में परमाणु सामग्री की मोजूदगी की पुष्टि नहीं की गयी थी ,हांलाकि उस इलाके में अमेरिकी वायु सेना के हवा में रेडियोधर्मी धूल की पहचान करने के लिए ख़ास बनाये गए कई विमानों ने बार बार वहां गश्त की थी | इस जानकारी का अधिक विश्लेषण करने वाले जैसे रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए), अमेरिकी नौसेना अनुसंधान प्रयोगशाला (एनआरएल), और रक्षा ठेकेदार इस नतीजे पर पहुंचे हैं की ये फ़्लैश किसी परमाणु विस्फोट का नतीजा नहीं है | इस घटना के बारे में और अधिक जानकारी गुप्त रखी गयी  है |

खोज
इस “डबल फ़्लैश” की पहचान २२ सितम्बर १९७९ को रात के १२:५३ जीएम्टी पर अमेरिकी वेला उपग्रह ६९११ ने की थी जिसमें ख़ास ऐसे सेन्सर्स लगे थे  जो आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि का उल्लंघन करने वाले परमाणु विस्फोटों का पता लगा सकें | गामा रेज़, एक्स रेज़ और नयूट्रोंस की पहचान कर पाने के इलावा उपग्रह में दो सिलिकॉन सॉलिड स्टेट भंग्मीटर सेन्सर्स थे जो की वातावरण में हुई परमाणु विस्फोट के डबल फल्शेस को पहचान सकते थे : शुरुआती एक छोटी गहरी फ़्लैश और इसके बाद दूसरी लम्बी फ़्लैश |

उपग्रह ने खबर में इंडियन ओशीयन में स्थित क्रोज़ेत द्वीप ( एक बहुत छोटा कम आबादी वाला फ्रेंच द्वीप) और दक्षिण अफ्रीका के प्रिंस एडवर्ड द्वीप (47 डिग्री दक्षिण  40 डिग्री पूर्व  47 °दक्षिण  40 ° पूर्व पर स्थित ) के बीच में दो से तीन किलोटन की क्षमता के सिमित वातावरण परमाणु विस्फोट के जैसे डबल फ़्लैश देखने की बात बताई | इससे पहले वेला उपग्रह द्वारा बताई गयी ४१ डबल फ्लाशेस की बाद में परमाणु विस्फोट होने की पुष्टि की गयी थी |

ये पहले भी और अभी भी स्नादेहस्पद है की उपग्रह की टिप्पणियां क्या सटीक थी | वेला होटल ६९११ उपग्रह २३ मई १९६९ को चालू की गयी दो उपग्रहों में से एक थी और ये “डबल फ़्लैश” की घटना से करीब १० साल पहले की बात है और ये उपग्रह अपने “जीवन अवधी” से वैसे ही दो साल अधिक पार कर चुका था  | इस उपग्रह में एक ख़राब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स सेंसर था , जिस की रिकॉर्डिंग क्षमता में जुलाई १९७२ में कमी उत्पन्न हो गयी थी पर इस कमी को मार्च १९७८ तक ठीक कर दिया गया था |

इसके इलावा शुरुआती तकनीकी विचारों में इस सम्भावना का भी विश्लेषण किया की वेला ने कुछ प्राकृतिक अनुभवों के मेल जोल को भांप लिया है जैसे उल्कापिंड की वजह से बिजली का कौंधना | अन्य मीडिया ख़बरों में धरती के नज़दीक किसी श्रुद्ग्रह के टकराने की सम्भावना पर भी गौर फ़रमाया | वेला उपग्रह के फ़्लैश डिटेक्टर्स बिजली सुपेर्बोल्ट्स की पहचान कर सकते थे जिसकी वजह से अप्रैल १९७८ में लोस एलामोस राष्ट्रीय प्रयोगशाला के दो वैज्ञानिक जॉन वारेन और रोबर्ट फ्रेय्मन बेल आइलैंड , न्यू फाउंडलैंड में एक सुपेर्बोल्ट घटना की जांच करने के लिए तुरंत पहुंचे थे | उस ‘बेल आइलैंड बूम” नाम की घटना के अवलोकन में उन दोनों ने , इमारतों को नुक्सान और बिजली के उपकरणों का नष्ट होने जैसे सबूतों को पेश किया | बेल आइलैंड बूम उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर १९७७ के अंत से मध्य १९७८ तक घटित ६०० “गुप्त बूम्स” में से एक था |

जो भी हो अक्टूबर १९७९ में संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) की नौसेना अनुसंधान प्रयोगशाला के तकनीकी समर्थन के साथ किये गए शुरुआती विश्लेषण के अंत में अमेरिका के ख़ुफ़िया समुदाय को पूरा यकीन हो गया की ये घटना एक छोटे स्तर पर घटित परमाणू विस्फोट का नतीजा है , हांलाकि कोई रेडियोधर्मी उत्पाद नहीं मिला और पुष्टि के लिये “कोई सम्बंधित भूकंपीय या पन ध्वनिक डेटा” भी नहीं उपलब्ध था | एक बाद की एनएससी रिपोर्ट ने इस स्थिति को बदल कर “अनीश्वरवाद की स्थिति” में कर दिया की कोई परिक्षण हुआ भी था या नहीं | एनएससी ने अंत में निष्कर्ष निकाला की परमाणु विस्फोट की कोई भी ज़िम्मेदारी दक्षिण अफ्रीका के गणराज्य पर लगाया जाना चाहिए |

कई अमेरिका नौसेना डब्ल्यूसी -१३५ बी निगरानी विमानों ने इंडियन ओशीयन के उस इलाके पर “डबल फ़्लैश” की खबर के बाद 25 चक्कर लगाये पर उन्हें परमाणु विकिरण के कोई अवशेष नहीं मिले | हवा के स्वरुप के विश्लेषण से ये पुष्टि होती है की दक्षिणी इंडियन ओशीयन के  विस्फोट के अवशेष वहां से दक्षिणीपश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक पहुँच सकते थे | ये खबर आई थी की घटना के कुछ दिनों बाद विक्टोरिया और तस्मानिया के दक्षिणीपूर्व  ऑस्ट्रेलियाई स्टेट्स की भेड़ों में आयोडीन -131 की कम मात्रा पायी गयी थी | न्यू ज़ीलैण्ड की भेड़ों में ऐसे कोई निशान नहीं मिले |

प्यूर्टो रिको की अरेसिबो योण क्षेत्र वेधशाला और रेडियो दूरबीन ने २२ सितम्बर १९७९ की सुबह को एक विषम योण क्षेत्र लहर की पहचान की जो दक्षिणपूर्व से उत्तरपश्चिम दिशा की तरफ बढ़ गयी , एक ऐसी घटना जिसकी वैज्ञानिकों ने पहले समीक्षा नहीं की थी|

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मूल्यांकन का कार्यालय
कार्टर प्रशासन ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति के कार्यालय (ओएसटीपी) से पूछा की वह इंस्ट्रूमेंटेशन विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करें जो दुबारा वेला होटल के ६९११ डाटा का निरिक्षण करे और ये निर्धारित करने का प्रयास करे की ये ऑप्टिकल फ़्लैश किसी परमाणु परिक्षण का नतीजा तो नहीं | कार्टर के लिए इस सवाल का जवाब बेहद ज़रूरी था क्यूंकि उनके राष्ट्रपति पद और 1980 में फिर से नियुक्ति अभियानके मुख्य मुद्दों में परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण व्यापक रूप से मोजूद थे | खास तौर से ३ महीने पहले साल्ट II संधि पर हस्ताक्षर किया गया था और वह संयुक्त राज्य अमेरिका की सीनेट के समर्थन का इंतज़ार कर रही थी |

फ्रैंक प्रेस जो राषट्रपति कार्टर के विज्ञान सलाहकार और ओएसटीपी  के अध्यक्ष थे के द्वारा वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग विशेषज्ञों की स्वतंत्र समिति का गठन किया गया उन सबूतों का मूल्यांकन करने के लिए और इस सम्भावना को जांचने के लिए की घटना एक परमाणू विस्फोट का नतीजा थी | इस विज्ञान समिति के अध्यक्ष मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, और रक्षा एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी के अमेरिकी विभाग के पूर्व निदेशक डॉ जैक रुइना थे | १९८० में अपनी रिपोर्ट जमा कर समिति ने माना की ऑप्टिकल हस्ताक्षर के एक वास्तविक परमाणु विस्फोट के हस्ताक्षरों से कुछ भिन्नता थी , ख़ास तौर से उपग्रह के दोनों डिटेक्टर्स द्वारा माप की गयी तीव्रता के अनुपात में | इस अवर्गीकृत रिपोर्ट में वेला होटल उपग्रह द्वारा किए गए माप का विवरण मोजूद था |

इस विस्फोट को वेला के एक कई उपग्रहों में से सिर्फ एक के जुडवा सेन्सर्स द्वारा पहचाना गया ; बाकि उपग्रह धरती के अलग हिस्सों पर नज़र रखे थे ,या फिर मौसम की परिस्थितियों की वजह से उस घटना को पकड़ नहीं पाए | वेला उपग्रहों ने इससे पहले ४१ वातावरण के परिक्षण पहचाने थे – फ्रांस और चीनी जनवादी गणराज्य जैसे देशों द्वारा आयोजित- जिनकी और तरीकों से भी पुष्टि की गयी जिसमें रेडियोधर्मी नतीजे के परिक्षण शामिल थे | ऐसी किसी परमाणू मूल की पुष्टि के न होने के कारण ये सम्भावना भी जागी की ये “डबल फ़्लैश” किसी अनजान मूल का संकेत भी हो सकता है , शायद किसी कुटीर उल्कापिंड के टकराने का नतीजा | ऐसे अनजान संकेत जो परमाणू विस्फोट जैसे लगते हैं वह पहले भी कई बार देखे गए हैं |

उनकी रिपोर्ट ने माना की फ़्लैश के विवरण में शामिल है “पहले घटित हुए परमाणू विस्फोटों की विशेषताएं” पर “गहरे विश्लेषण करने पर सितम्बर २२ की घटना के रौशनी हस्ताक्षर में देखे गए महत्वपूर्ण विचलन से ये संदेह उत्पन्न होता है की ये घटना को एक परमाणू रूप दिया जाना चाहिए”| इस डाटा का सबसे बेहतरीन निष्कर्ष जो वो दे सकते थे वो ये था की अगर सेन्सर्स ठीक से काम कर रहे थे तो “रौशनी फ्लाशेस” के कोई भी स्रोत “अनजान घटनाओं” का नतीजा थे | अतः उनका आखिरी निष्कर्ष ये था की जबकि वह इस आशंका को ख़ारिज नहीं कर सकते की ये संकेत परमाणू मूल के है , “ हमारे सम्बंधित वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर” हम सबका एक सामूहिक निर्णय है की सितम्बर २२ का संकेत परमाणू विस्फोट का नतीजा नहीं है”|

विक्टर गिलिंस्की (परमाणु नियामक आयोग के पूर्व सदस्य) ने समिति के सदस्यों को राजनीति से प्रेरित हैं ये कहकर विज्ञान समिति के निष्कर्षों पर शक डालने का प्रयास किया|ऐसी कुछ जानकारी मिली थी जो इस बात की पुष्टि करती है की एक परमाणु विस्फोट इस “डबल फ़्लैश” के संकेत का मूल था |फिर वह विषम योण क्षेत्र लहर थी जिसको उसी वक़्त प्यूर्टो रिको की अरेसिबो योण क्षेत्र वेधशाला ने मापा था पर उस स्थान से कई मील दूर धरती के किसी अलग खंड में | कुछ महीनों बाद पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में किये गए परिक्षण में बढ़ी हुई परमाणु विकिरण के स्तर पाए गए | हालांकि, न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय विकिरण प्रयोगशाला द्वारा किए गए एक विस्तृत अध्ययन में  अतिरिक्त रेडियोधर्मिता का किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला और न ही अमेरिकी सरकार से वित्त पोषित परमाणु प्रयोगशाला को |लोस एलामोस राष्ट्रीय प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने जिन्होनें वेला होटल कार्यक्रम पर काम किया था ने इस बात की पुष्टि की वेला होटल उपग्रह के डिटेक्टर्स सही से काम कर रहे थे |

लेओनोर्ड वेइस , उस समय के ऊर्जा और परमाणु प्रसार पर सीनेट उपसमिति के स्टाफ निदेशक ने भी इस समिति के निष्कर्षों पर सवाल उठाये , ये दलील दे की ये कार्टर प्रशासन की इस घटना को  इसरायली परमाणू परिक्षण का नतीजा होने की इस शर्मनाक और बढ़ती राय को दबाने की एक कोशिश थी | इसरायली परमाणू परिक्षण की ख़ुफ़िया जानकारी को समिति के साथ नहीं बांटा गया था ताकि उनके निष्कर्षों में वही बात सामने आये जो प्रशासन सामने लाना चाहती थी |

संभव जिम्मेदार पार्टियाँ
अगर एक परमाणू विस्फोट हुआ भी तो वह इंडियन ओशीयन के कुछ भाग , दक्षिण अटलांटिक , अफ्रीका का दक्षिणी बिंदु और अन्टार्कटिका के कुछ भाग के ३००० मील चौड़ी ( ४८०० किलोमीटर व्यास ) के घेरे में घटित हुई थी |

इजराइल
वेला घटना से काफी समय से पहले अमेरिकन ख़ुफ़िया विभाग ने ये गणना लगाई थी की शायद इजराइल के पास अपने खुद के परमाणु हथियार थे | पत्रकार सेय्मूर हेर्ष के मुताबिक ये इसरायली दक्षिण अफ्रीका के गठजोड़ में इंडियन ओशीयान में आयोजित तीसरा परमाणू परिक्षण था और इस्रैलियों ने इस परिक्षण के लिए दो आईडीएफ जहाज और “इजरायली सैन्य पुरुषों और परमाणु विशेषज्ञों के एक दल” को भेजा था | लेखक रिचर्ड रोडेज ने भी ये निष्कर्ष निकाला की ये एक इसरायली परमाणु परिक्षण था , जिसे  दक्षिण अफ्रीका के समर्थन के साथ अंजाम दिया गया था, और अमेरिकी प्रशासन ने दक्षिण अफ्रीका से अपने संबंधों के बिगड़ने के डर से जानबूझ कर इस तथ्य को गुप्त रखा था | इसी प्रकार लियोनार्ड वेइस ने कई ऐसी दलीले दीं जो इस परमाणु परिक्षण के इसरायली होने की पुष्टि कर रही थी , और ये दावा भी किया की बाद की अमेरिकी सरकारें अपनी विदेश निति को अवांछित ध्यान  और उससे उठती बदनामी से बचाने के लिए इस परिक्षण को गुप्त रखती रहीं | २००८ की किताब द नुक्लीअर एक्सप्रेस: अ पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ़ द बम एंड इट्स प्रोलिफेरेशन  में थॉमस सी रीड और डेनी बी स्टिलमैन ने अपनी राय पेश की “डबल फ़्लैश” एक संयुक्त इसरायली दक्षिण अफ्रीका परमाणु बम परिक्षण का नतीजा था |डेविड अल्बराईट ने परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन में “डबल फ़्लैश” घटना के बारे में अपने लेख मंप कहा की “ की अगर १९७९ फ़्लैश की घटना एक परमाणु परिक्षण था , तो सभी विशेषज्ञ येही मानते हैं की ये एक इसरायली परिक्षण था”

२०१० में ये खबर आई की २७ फेब्रुअरी १९८० को राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अपनी डायरी में लिखा था , “हमारे वैज्ञानिकों में से कई ये मानते हैं की वाकई इस्राएलियों ने महासागर में एक परमाणु परिक्षण विस्फोट अफ्रीका के दक्षिणी तट पर किया था”|
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और सहयोग के लिए स्थापित केंद्र के लियोनार्ड वेइस, लिखते हैं: “उन सबूतों का भार की वेला घटना एक दक्षिण अफ्रीका के सहयोग से आयोजित इसरायली परमाणू परिक्षण था काफी ज्यादा है”|

थॉमस सी रीड लिखते हैं की वह इस बात में विश्वास करते हैं की वेला घटना एक इसरायली न्यूट्रॉन बम परिक्षण था | ये परिक्षण नज़र से बच जाता अगर इसरायली वो वक़्त चुनते जब प्रकाशित जानकारी के हिसाब से कोई सक्रिय वेला उपग्रह उस इलाके का निरिक्षण नहीं कर रही थी | इसके इलावा इस्राएलियों ने इस परिक्षण के लिए तूफ़ान का समय चुना | लेकिन इस्राएलियों और उनके दक्षिण अफ़्रीकी भागीदारों ने ये सोचा की एक दशक पुरानी वेला उपग्रह जिसने विस्फोट की पहचान की वह अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक तौर पर विरत घोषित कर दी है ,हांलाकि वह अभी भी डाटा हासिल कर सकती थी | मोर्देचाई वनुनु के मुताबिक १९८४ तक इजराइल बड़े पैमाने पर न्यूट्रॉन बम का उत्पादन कर रहा था |

दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ़्रीकी गणराज्य के पास उस वक़्त एक परमाणु हथियार कार्यक्रम था और वह उस इलाके में भी स्थित था | लेकिन उसने १९६३ में आई आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किये थे और अपार्थीड के अंत तक दक्षिण अफ्रीका ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम से जुडी सभी जानकारी सार्वजानिक कर दी थी | विदेशी विश्लेषण और बाद की अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका ने नवम्बर १९७९ से पहले तक परमाणु बम नहीं बनाया हो सकता है जो की डबल फ़्लैश की घटना के दो महीने बाद का वक़्त था | इसके इलावा आईऐईऐ ने ये जानकारी दी की दक्षिण अफ्रीका के संभावित सभी परमाणू बम की जानकारी उपलब्ध थी | संयुक्त राज्य अमेरिका के शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण एजेंसी के लिए तैयार की गई 21 जनवरी 1980 को लिखी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) की रिपोर्ट ने ये निष्कर्ष निकाला है कि:

अंत में राज्य को जो ये दलीलें मिली हैं की दक्षिण अफ्रीका ने २२ सितम्बर को परमाणु परिक्षण किया था वो अनिर्णायक लगती हैं भले ही उस दिन अगर कोई परमाणु विस्फोट हुआ हो दक्षिण अफ्रीका उसका सबसे संभावित दावेदार होगा |

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 4 नवंबर 1977 को पारित संकल्प 418 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक अनिवार्य हथियार प्रतिबंध लागू किया गया था जिसमें और राज्यों से भी “निर्माण और परमाणु हथियारों के विकास में दक्षिण अफ्रीका के साथ किसी भी सहयोग” से परहेज़ करने को कहा गया था |

साशा पोलाकोव –सुरंस्की लिखते हैं की १९७९ में दक्षिण अफ्रीका इतना विकसित नहीं था की एक परमाणू हथियार का परिक्षण कर सके : “अक्टूबर के पहले हफ्ते तक ,राज्य विभाग को अंदाज़ा हो गया था की दक्षिण अफ्रीका इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है ; इजराइल के ऐसा करने की सम्भावना अधिक है”|

सोवियत यूनियन

१९७९ में डी आई ऐ ने सूचना दी की ये परिक्षण 1963 के आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के उल्लंघन में सोवियत यूनियन ने किया हो सकता है | सोवियत यूनियन ने इससे बीस साल पहले 1959 में  पसिफ़िक में कुछ पानी के नीचे गुप्त परिक्षण किये थे जो की सोवियत यूनियन और अमेरिका के बीच में 1958 में हुए द्विपक्षीय अधिस्थगन के उल्लंघन में किये गए थे | १९६१ में सोवियत यूनियन ने इस द्विपक्षीय अधिस्थगन को एकतरफा और आधिकारिक तौर पर रद्द कर दिया |

भारत
भारत ने १९७४ में एक परमाणू परिक्षण किया था ( उपनाम स्मैईलींग बुद्धा) | भारत के परीक्षण करने की सम्भावना को टटोला गया क्यूंकि भारतीय नौसेना के लिए दक्षिण में उन इलाकों में परिक्षण करना संभव था , लेकिन फिर इस बात को अव्यावहारिक और अनावश्यक समझ रद्द कर दिया ( ऐसा इस तथ्य के चलते की भारत ने भी १९६३ में सीमित परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किये थे और अपने पहले परिक्षण में भी उसके नियमों का पालन किया था , और भारत अपने परमाणू हथियारों की क्षमता को छुपा नहीं रहा था उल्टा वह तो उसे शान से सबको बता रहा था )|

पाकिस्तान
संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा अनुरोध किये गए एक खुफिया ज्ञापन जिसका नाम था “द २२ सितम्बर १९७९ इवेंट” में इस सम्भावना को जांचा गया की कहीं पाकिस्तान गुप्त तौर पर अपनी परमाणू विस्फोटक तकनीकों का खुलासा तो नहीं कर रहा है”|

फ्रांस
क्यूंकि वह “डबल फ़्लैश” अगर था , वह फ्रांस के कब्ज़े के केरगुएलेन द्वीपों के पश्चिम में दिखाई दिया था ,तो ये हो सकता है की फ्रांस किसी छोटे न्यूट्रॉन बम या अन्य छोटे परमाणू बम का परिक्षण कर रहा था |

इसके बाद के घटनाक्रम
१९८० के बाद कई छोटी छोटी जानकारियां सामने आयीं है | लेकिन कुछ सवालों का उत्तर अभी भी नहीं मिला है:
•    लॉस एलामोस वैज्ञानिक प्रयोगशाला की १९८१ की रिपोर्ट में लिखा गया है:
तिरोस-एन प्लाज्मा डेटा और संबंधित भूभौतिकीय डेटा जिसको २२ सितम्बर १९७९ को मापा गया था उसका ये जानने के लिए विश्लेषण किया गया की तिरोस-एन द्वारा 00:54:49 पर पकड़ा गया इलेक्ट्रॉन वर्षा घटना एक सतह पर परमाणू विस्फोट से सम्बंधित हो सकती थी | इस विस्फोट को वेला के २ भंग्मीटरस द्वारा पहचाने गए रौशनी के संकेतों से तिरोस-एन की घटना के २ मिनट पहले पहचाना गया था | हमने इस वर्षा को असामान्य रूप से बड़ा लेकिन अनोखा नहीं पाया |यह शायद तिरोस –एन के एक पहले से मोजूद औरोरल रास्ते में गिरते इलेक्ट्रॉन्स के नीचे से निकलने का नतीजा था जिस वजह से या वर्षा प्राकृतिक रूप से असामन्य तीव्रता से चमकने लगी- वेला घटना से ३ मिनट पहले ...| हम ये निष्कर्ष निकलते हैं की ये घटना किसी औरोरल रास्ते से सम्बंधित थी जो की वेला घटना से पहले ही मोजूद थी | हांलाकि ऐसी दलील दी जा सकती है की तिरोस – एन ने रास्ते के जिस भाग का विश्लेषण किया वह किसी परमाणू विस्फोट की वजह से ज्यादा तीव्र हो गया हो पर ऐसा साबित करने के लिए हमारे पास कोई सबूत नहीं है | हम ये मानते हैं की शायद ये अवलोकन प्राकृतिक मग्नेतोस्फेरिक प्रक्रियाओं के परिणाम के इलावा कुछ और नहीं था |
•    अक्टूबर 1984 में दक्षिण अफ्रीका के परमाणु कार्यक्रम पर एक राष्ट्रीय खुफिया कार्यक्रम ने जारी किया:
ख़ुफ़िया समुदाय में अभी भी इस बात को लेकर काफी विवाद है की सितम्बर १९७९ को दक्षिण अटलांटिक में अमेरिकी उपग्रह द्वारा पहचाना गया फ़्लैश एक परमाणू परिक्षण का नतीजा था , और वह भी दक्षिण अफ्रीका द्वारा किया गया | अगर ये बात सच है तो इस अनुमान के समय पर दक्षिण अफ्रीका द्वारा किसी उपकरण की जांच की ज़रुरत बहुत कम हो जाती है |
इस लेखन के एक छोटे रूप का सितंबर, 1985 के एक राष्ट्रीय खुफिया परिषद ज्ञापन में इस्तेमाल किया गया था।
•    फेब्रुअरी १९९४ में कमोडोर डिटर गेर्हार्द्त , एक सजायाफ्ता रूसी जासूस और दक्षिण अफ्रीका के उस समय के साइमन टाउन नौसेना शिविर के कमांडर , ने जेल से छूटने के बाद इस घटना पर बात की | उन्होनें कहा:
हांलाकि मैं इस अभियान के आयोजन या उसके अंजाम में सीधे से शामिल नहीं था लेकिन मुझे अनाधिकारिक तौर पर पता चला था की ये फ़्लैश एक ऑपरेशन फीनिक्स नामक इसरायली –दक्षिण अफ़्रीकी परिक्षण का नतीजा था | विस्फोट काफी साफ़ सुथरा था और उसके पता चलने की सम्भावना कम थी | पर वह अपने को जितने चालक समझते थे उतने थे नहीं और मौसम बदल गया – और अमरीकियों को इसका पता चल गया |
गेर्हार्द्त ने ये भी बताया की कोई दक्षिण अफ़्रीकी नौसेना के जहाज इसमें शामिल नहीं थे और उसे भी परमाणू परिक्षण का कोई अनुभव नहीं था | गोरों के साम्राज्य के ख़तम होने के कई साल बाद दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने माना की सरकार के पास वाकई में छह जुड़े परमाणु हथियार थे लेकिन अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सरकार बनने से पहले इन सब को नष्ट कर दिया गया था | खास तौर पर वेला घटना या दक्षिण अफ्रीका के परमाणू कार्यक्रम में इसरायली सहयोग का कोई ज़िक्र नहीं था |
•    २० अप्रैल १९९७ को इसरायली दैनिक अखबार हारेत्ज़ ने ये छापा की दक्षिण अफ्रीका के उप विदेश मंत्री, अजीज पहाद ने इस बात की पुष्टि की है की इंडियन ओशीयन पर देखे गए “डबल फ़्लैश” हकीक़त में एक दक्षिण अफ़्रीकी परमाणू परिक्षण का नतीजा थे | हारेत्ज़ ने पहले की इन ख़बरों का जिक्र भी किया की इजराइल ने अपने दिमोना में स्थित परमाणू प्लांट के लिए दक्षिण अफ्रीका से ५५० टन यूरेनियम खरीदा था | बदले में इजराइल ख़ुफ़िया तौर पर दक्षिण अफ्रीका से परमाणु हथियारों के डिजाइन की जानकारी और परमाणु हथियार की शक्ति को बढ़ाने के लिए परमाणु सामग्री बांटता था | पहाद के वक्तव्य की प्रेटोरिया में स्थित यूनाइटेड स्टेट्स एम्बेसी ने पुष्टि की लेकिन उनके प्रेस सचिव ने ये कहा की उन्होनें सिर्फ ये कहा था की “ऐसी काफी तगड़ी अफवाह है की ऐसा कोई परिक्षण हुआ था और इसकी जांच होनी चाहिए” दुसरे शब्दों में वह सिर्फ उन अफवाहों को हवा दे रहे थे जो सालों से प्रेस में उठ रहीं हैं | इस प्रेस खबर से उठी सनसनी के जवाब में डेविड अल्बराईट ने टिप्पणी की :
अमेरिकी सरकार को इस घटना से जुडी अधिक जानकारी को सार्वजानिक करना चाहिए | इस मोजूद जानकारी को जनता से बांटने से समस्या का समाधान निकल सकता है |
•    अक्टूबर 1999 में, व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के विरोध में अमेरिकी सीनेट के रिपब्लिकन नीति समिति द्वारा प्रकाशित किये गए एक श्वेत पत्र में कहा गया है:
ये अभी भी अनिश्चित है की सितम्बर १९७९ में देखा गया और अमेरिकी वेला उपग्रह द्वारा पहचाना गया दक्षिण अटलांटिक फ़्लैश एक परमाणू विस्फोट का नतीजा था और अगर था तो किसने करवाया था |
•    २००३ में स्टांसफील्ड टर्नर, कार्टर प्रशासन के दौरान सी आई ऐ .के निदेशक  ने बताया की वेला घटना एक "मानव निर्मित घटना" थी |
•    सी आई ऐ के . गुप्त सेवा अधिकारी टायलर दृम्हेल्लेर ने अपनी २००६ में आई किताब ऑन द ब्रिंक  में अपनी दक्षिण अफ्रीका के १९८३ -८३ अधिकारिक यात्रा के बारे में लिखा:
हमें प्रचालन सफलताएं मिली थीं ख़ास तौर पर प्रेटोरिया की परमाणू क्षमता से सम्बंधित | मेरे सूत्रों ने मुझे कई ऐसे सबूत दिए जिनसे ये साबित होता है की अपार्थीड सरकार ने वाकई में १९७९ में दक्षिण अटलांटिक में परमाणू बम का परिक्षण किया था और उन्होनें इस्रायिलियों की मदद से एक कार्य प्रणाली भी बना ली थी |
•    २०१० में जिमी कार्टर ने अपनी वाइट हाउस डायरीज  प्रकाशित  की | २७ फेब्रुअरी १९८० की तिथि के साथ जिमी कार्टर ने लिखा :
 “हमारे वैज्ञानिकों में से कई ये मानते हैं की वाकई इस्राएलियों ने महासागर में एक परमाणु परिक्षण विस्फोट अफ्रीका के दक्षिणी तट पर किया था”
•    इस घटना से संबंधित कुछ अमेरिकी जानकारी को रिपोर्ट और ज्ञापन के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका के सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार अधिनियम के अधीन लोगों द्वारा पेश की गयी अर्जियों के जवाब में पुन्वार्गिकृत किया गया है; ५ मई २००६ से ये कई पुन्वार्गिकृत दस्तावेजों को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा पुरालेख के माध्यम से सार्वजनकि कर दिया गया |
•    एक 1987 में सीआईए नुकसान का आकलन करने में निहित जानकारी को आंशिक रूप से दिसंबर 2012 में सार्वजनिक कर दिया गया था|

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel