महब्बत में कहाँ मुमकिन [3] जलीलो-ख़्वार हो जाना
कि पहली शर्त है इन्सान का ख़ुद्दार [4] हो जाना

खुलेगा चारागर[5] पर राज़े-ग़म क्या दर्द के होते
कि आता है इसे ख़ुद नब्ज़ की रफ़्तार[6] हो जाना

विसालो-हिज्र[7] के झगड़ों फ़ुर्सत ही न दी वर्ना
मआले-अशिक़ी[8] था रूह का बेदार [9] हो जाना

ज़बाँ गो चुप हुई, दिल में तलातुम[10] है वही बर्पा[11]
न आया आज तक मह्वे-ख़्याले-यार [12] हो जाना

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