भोजन के बाद शराब का दौर चला। हाथ में शराब का गिलास था और मुँह में हमारे वही जूता था। उसी की बातचीत चल रही थी। मैं सपने में भी नहीं समझता था कि जूता इतनी महत्ता पा जायेगा। इंडिया आफिस में भेजने तक ही बात न रही। कैप्टन रोड ने कहा कि इसी ढंग के जूते यदि विलायत में बनवाये जायें तो बड़ा अच्छा व्यवसाय चल सकता है। कर्नल साहब, आप पेंशन लेने के बाद क्यों नहीं इसका रोजगार करने का प्रबन्ध करते? कर्नल साहब ने समझा कि हमारे नाम के कारण कैप्टन रोड हमारा उपहास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाँ, हम बनायेंगे पर चलेंगे तो आप ही के ऊपर। इस पर जोरों का कहकहा लगा। कर्नल साहब की श्रीमती के तालू में शराब चढ़ गयी और वह उठकर लगीं कमरे में नाचने।

भोजनोपरान्त हम लोग दूसरे कमरे में चले गये और वहाँ सिगार पीने लगे। वहाँ मिसेज शूमेकर नहीं थीं। लफ्टंट बफैलो ने मुझे एक ओर ले जाकर कहा - 'कहो, कहाँ से वह जूता बनवाकर लाये? मुझे बता दो। मैं भी एक जोड़ा चाहता हूँ।' मैंने पूछा - 'क्या करोगे?' बोला -'कमिश्नर साहब की लड़की मिस बटर को तुमने देखा है?' मैंने कहा - 'देखा है।' उसने कहा - 'मेरी उससे बड़ी घनिष्ठता है। मैं एक जोड़ा उसे उपहार में देना चाहता हूँ। परन्तु यदि मूल्य अधिक हुआ तब तो कठिन है। क्योंकि इस महीने में तीन सौ रुपये का शराब का एक बिल चुकाना है। रुपये बचेंगे नहीं।'

मैंने कहा - 'एक काम करो। सच्चे काम का जूता तो उतने दामों में नहीं मिल सकता। हाँ, झूठे काम का वैसा ही जूता, ठीक वैसा ही, मिल जायेगा। हाँ, कुछ दिनों में उसका रंग काला हो जायेगा।' जिस कंपनी से मैंने जूते लिये थे, उस कम्पनी का नाम बता दिया।

एक बजे रात को मैं अपने बँगले पर लौटा। अपनी विजय पर बहुत प्रसन्न था। मैंने सपने में भी आशा नहीं की थी कि दो जूते इतनी सफलता प्रदान करेंगे। मुझे इस बात का तो विश्वास ही हो गया कि कर्नल साहब अवश्य ही मेरी प्रशंसा करेंगे और मैं समय से पहले ही कैप्टन हो जाऊँ तो आश्चर्य नहीं। दो बजे मैं सोया।

परन्तु कुछ तो शराब का नशा, कुछ जूते का ध्यान; जान पड़ता है नींद ठीक नहीं आयी क्योंकि मैं लगा सपना देखने।

देखता हूँ कि मैं जल्दी-जल्दी उन्नति करता जा रहा हूँ और मैंने देखा कि मैं भारत का वायसरॉय बना दिया गया। शिमला के वायसरॉय भवन में मैं रहता हूँ। परन्तु मैं उस जूते को अभी नहीं भूला - मेरी सिफारिश पर ब्रिटिश सरकार ने एक नया पदक बनवाया है जिसमें दो जूते अगल-बगल में रखे हैं। इस सोने के पदक का नाम पिगसन पदक रखा गया है और उस भारतीय को दिया जायेगा जिसने सरकार की सदा सहायता की है और सरकार का विश्वासपात्र रहा है। मैं यह भी देख रहा हूँ कि पिगसन पदक के लिये बड़े-बड़े राजा-महाराजा और राजनीतिक कार्यकर्ता लालायित हैं।

वायसरॉय-भवन में दीवारों पर मैंने सुनहले जूतों के चित्र बनवा दिये हैं और सरकारी मोनोग्राम को बदलकर मैंने दो सुनहले जूतों का चित्र बनवा दिया है। मैंने विशेष आज्ञा देकर चाय का सेट बनवाया जिसमें पियाले की शक्ल जूते की तरह है।

मेरी देखा-देखी जितने रजवाड़े हैं, उन्होंने भी मेरी नकल आरम्भ कर दी है और मेरे आनन्द की सीमा न रही जब सकलडीहा के महाराज ने मेरी दावत की, तब दावत के कमरे में चारों ओर रंग-बिरंगे जूतों से सजावट की गयी थी। मैंने उन्हें इक्कीस तोपों की सलामी का अधिकार दे दिया और अपना सिक्का ढालने की अनुमति दे दी। हाँ, एक शर्त थी कि सिक्के की एक ओर जूते का चित्र अवश्य रहे।

केन्द्रीय धारासभाओं का संयुक्त अधिवेशन हो रहा है और मैं भाषण पढ़ रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ कि भारत को स्वराज्य दिलाने को मेरा पूरा प्रयत्न होगा। विलायत की सरकार आप लोगों के देश का शासन आपके ही हाथों में देने के लिये निश्चय कर चुकी है। आप लोग उसकी नीयत पर सन्देह न करें। आप हमारे साथ सहयोग करें। हम अपने शासन-काल में निम्नलिखित विशेष काम करना चाहते हैं। यदि आपकी सहायता मिलती रही तो मेरे जाते-जाते स्वराज्य मिल जायेगा।

पहली बात तो यह है कि जूते के व्यवसाय को जितना प्रोत्साहन मिलना चाहिये, नहीं मिल रहा है। स्वराज्य-प्राप्ति में कितनी बड़ी बाधा है। भारतीय जूते या तो देशी हैं जो आज भी वैसे ही बनते हैं जैसे मेगास्थनीज ने वर्णन किया है या विलायत की नकल है। नकल से स्वराज्य नहीं मिलता, आप जानते हैं।

यद्यपि भारतीय कला बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँच गयी है और अब उसमें सुधार के लिये कम स्थान है, फिर भी यदि स्वराज्य लेना है तो भारतीय जूतों में उन्नति करनी ही होगी। उसी पर आपका भविष्य निर्भर है।

गाँव-गाँव में, नगर-नगर में, प्रत्येक पाठशाला में, कालेज में, विश्व-विद्यालय में इसकी शिक्षा आवश्यक है और इसकी उन्नति अपेक्षित है। आप मेरे इस सन्देश को देश के कोने-कोने में पहुँचाने की दया करें।

म्युनिसिपल बोर्ड और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्यों को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिये क्योंकि स्वराज्य की पहली सीढ़ी यही है।

तालियों की गड़गड़ाहट से सारा भवन गूँजने लगा। मैं और आगे बोलने जा रहा था कि देखता हूँ कि आँखें खुली हैं, वही बैरक बँगला है, वही कमरा है, बेयरा ट्रे लिये खड़ा है, कह रहा है - 'हजूर, चाय।'

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel