मैंने पंडितजी से पूछा कि भाँग क्या वस्तु है? उन्होंने बताया कि भाँग एक पत्ती होती है। उसे पीसकर हिन्दू लोग पीते हैं। इसके पीने से यह लाभ होता है कि जो एक बोतल जानीवाकर नहीं कर सकता, वह एक छोटी-सी भाँग की गोली कर देती है।

मैंने पंडितजी से पूछा कि क्या यह नशे की वस्तु है? उन्होंने बताया कि नशा भी ऐसा-वैसा? एक झोंके में गौरीशंकर से अतलांतक तक ले जा सकती है! और जैसे आपके यहाँ शैम्पेन है, जिन है, क्लैरेट है, शेरी है, व्हिस्की है, ब्रांडी है और पंचमेल काकटेल है, उसी भाँति इसमें भी दूधिया है, संतरे की है, कसेरू की है, फालसे की है, अंगूरी है, मलाई की है। बादाम तो सभी में रहता ही है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे देवता शंकर भगवान सवेरे-शाम इसे छानते हैं।

मैंने पूछा - 'कवि लोगों के लिये क्या आवश्यक है?' पंडितजी बोले-'इसमें भी दो मत हैं। प्राचीन ढर्रे पर चलनेवाले कवि, जो सवैया तथा कवित्त पढ़ते हैं, भाँग पर ही सन्तोष करते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि उसमें कुछ भारतीयता है और महादेव को रुचिकर है। नये विचारवाले सोचते हैं कि कौन सिल और बट्टे की झंझट करें और पीसने की कसरत में समय तथा शक्ति का अपव्यय करे। उन्होंने सम्मेलन के संयोजकों के मत्थे एकाध अद्धा या बोतल मँगवाया, चुपके से सूटकेस में रखा, किसी को पता भी नहीं। सम्मेलन में चलते समय एकाध गिलास और वहाँ से लौटकर एकाध गिलास जमा लिया। सम्मेलन सफल हो गया।'

इस सम्बन्ध में उन्होंने यह भी कहा कि कवि-सम्मेलनों में कॉलेजों के प्रोफेसर, विश्वविद्यालय के डॉक्टर आदि भी तो आते हैं। भाँग छानना उनकी शान के अनुकूल नहीं है। मदिरा यदि विलायती हो तब तो पीना गुण समझा जाता है।

'एक बात और है'- पंडितजी ने उसी साँस में बताया - 'मुशायरों में इसी का दौर चलता है और कवियों को शायरों से टक्कर लेनी होती है, इसलिये कवियों ने भी यही उचित समझा कि इसी को अपनाया जाये। भाँग पीने से आजकल के ऊँचे दर्जे के कवि अपने को हीन समझने लगते हैं।'

सभापति महोदय आये। सब लोगों ने उन्हें माला पहनायी। सम्मेलन आरम्भ हुआ। पहले एक व्यक्ति आये। उन्होंने एक गीत गाया। हाथ से भाव भी बताते जाते थे। सिर भी हिलाते जाते थे। यह कहना कम से कम मेरे ऐसे नये आदमी के लिये कठिन था कि वह गा रहे हैं कि कविता पढ़ रहे हैं। फिर एक सज्जन आये; वह वीररस की कविता पढ़ रहे थे। कविता में वीरता का रस तो मुझे कम जान पड़ा, किन्तु उनके हाथ-पाँव के पैंतरे से जान पड़ा कि कवि महोदय अवश्य ही वीर होंगे और लड़कपन में तलवार चलाने की शिक्षा भी इन्हें मिली होगी जिसे यह अब भूल गये थे। फिर एक और महोदय आये। तुलसीदास के बाद जान पड़ता है, इन्होंने महाकाव्य लिखा था। पढ़ना आरम्भ किया। सभापति महोदय सोच रहे थे कि अब समाप्त होता है तब समाप्त होता है। दूसरे कवि समझते थे कि अब हमारी बारी ही नहीं आयेगी। जनता इतनी समझदार न थी। उसने ताली पीटी। इन्होंने समझा कि मेरे काव्य की उड़ान तक जनता ही पहुँच सकी। और भी पन्ने इन्होंने उलटे। जनता की तालियों में और बल आया।

कवि और जनता की इस होड़ में जनता की विजय हुई और लोग उनके काव्य का रस नहीं ले सके। यही सिलसिला चलता रहा। छिहत्तर कवि थे। कविता तो सुन्दर रही होगी। मुझसे अधिक समझने वालों ने उनमें और भी सुन्दरता देखी होगी। राष्ट्रीय कवितायें भी हुईं। अभी तक हम राष्ट्रीय कविता का अर्थ यह समझते थे कि उसमें देश के प्रति प्रेम होगा या राष्ट्र की भावनायें जाग्रत् करने के लिये लिखी गयी होगी। किन्तु हमें जान पड़ा कि हिन्दी में राष्ट्रीय कविता का अर्थ है अंग्रेजों को गाली देना। ब्रिटिश शासन को नहीं अंग्रेजों को। किन्तु इन सबसे मजेदार बात हमें एक और लगी - जितने कवि थे सबके एक न एक उपनाम थे। मुझे कुछ उपनाम स्मरण हैं। वह यह हैं - उजबक, खटमल, मेंढक, झींगुर, कूंचा, बबूल, मदार, बैंगन, चौराई, चैला, बरगद, जमालगोटा, खुखड़ी, भुकड़ी इत्यादि। मैंने पंडितजी से पूछा कि ऐसे नाम क्यों कवि लोग रखते हैं? उन्होंने कहा कि बात यह है कि जितने फल, फूल, पक्षी, पशु थे, सबके नाम पुराने कवियों ने अपना लिये। नये कवियों के लिये अब और कुछ रहा नहीं।

जब कौओं ने बोलना आरम्भ किया तब इन कवियों ने पढ़ना बन्द किया। मैं भी बाहर निकला। कवि लोग जलपान के लिये एक कमरे में जा रहे थे।

बाहर निकला तो मन्त्री महोदय को तीन-चार कवि घेरे हुए थे। एक कह रहा था - 'मगर मैं सेकेंड क्लास में आया हूँ', एक कह रहा था, 'इक्यावन नहीं तो इकतीस मिलना ही चाहिये, मेरा और कोई व्यवसाय नहीं है।' एक ने मन्त्री महोदय का हाथ पकड़ लिया और बोला - 'आप जानते हैं मैं प्रोफेसर हूँ। कई पुस्तकों का प्रणेता हूँ। मैं पहले बिना लिये आता नहीं, आप एक सौ एक मुझे दे दीजिये।' मेरी समझ में नहीं आया कि यह क्या बात है।

पंडितजी ने मुझे समझाया कि हिन्दी कविता का बहुत मूल्य होता है। यह मुफ्त नहीं सुनायी जाती। जिस साहित्य का कोई मूल्य नहीं, वह भी कोई साहित्य है।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel