एक बार एक गाँव में एक अमीर के घर बड़ी धूम-धाम से शादी हो रही थी। सैकड़ों लोग शादी में आए थे। लोग पहल के बाद पल खाने बैठते थे। ब्राह्मण भोजन चल रहा था। न जाने, कहाँ कहाँ से आकर झुण्ड-के-झुण्ड ब्राह्मण जमा हो गए थे। परोसने वाले नाकों दम हो रहे थे। पर बेचारे बड़ी मुस्तैदी से परोस रहे थे। उस रोज़प में दो ब्राह्मण बैठे थे। उन में एक बड़ा बातूनी था। वह पक्ष झलता हुआ, पकवानों का स्वाद सराहता हुआ, धीरे-धीरे खा रहा था। दूसरा ब्राह्मण अचकने चित से भोजन कर रहा था। इसलिए पत्तल की तरफ उसका ध्यान न था।

उस रोज खास कर ब्राह्मणों की पत में परोसने के लिए यजमान ने बहुत बढ़िया आम मँगवाए थे। वे बड़े किमती और बहुत ही रसीले थे। बातूनी ब्राह्मण ने जब आम खाना शुरू किया तो गुटली उसके हाथ से छूट कर बगल के अनमने ब्राह्मण के पतल में जा गिरी। यह देख वह मन ही मन डरने लगा कि न जाने, यह ब्राह्मण कैसा आदमी है मालूम नहीं, अब वह कितना हल्ला मचाएगा? भोजन छोड़ कर उठ जाएगा क्या? वह मन ही मन पछताने लगा कि, आज में नाहक यहाँ चला आया। न जाने कितना मला बुरा सुनना पड़ेगा? उसे सूझता नहीं था कि अब क्या किया जा सकता है..!

लेकिन वह दूसरा ब्राह्मण अपने बंगल वाले से बातें कर रहा था। इसलिए उसने यह सब देखा नहीं। थोड़ी देर बाद जब उसने अपने पचल की ओर नज़र फेरी तो उसे एक के बदले दो गुठलियाँ दिखाई दीं। उसने बातूनी ब्राह्मण से कहा,

“मिश्रजी...! देखिए तो, कितने आधर्य की, बात है मेरे आम में दो गुटलियाँ हैं। मैंने आज तक ऐसे आश्चर्य की बात न कहीं देखी और न सुनी थी।”

यह सुन कर उस ब्राह्मण ने (जिसके हाथ से गुठली छूट गई थी) मन ही मन सोचा,

“यह तो भगवान ने इस सटकर से बाहर होने के लिए अच्छा रास्ता दिखा दिया है।”

उसने जवाब दिया, “हाँ, हाँ, शर्मा जी, देखिए न उससे भी बड़ा आश्रर्य यह है कि, मेरे आम में गुठली है ही नहीं..! भगवान की लीला अपरम्पार है। उसके लिए कुछ भी नहीं।”

इस तरह उसकी अनहोनी लाज बच गई। उन दोनों की बातें सुन कर लोग खूब हँसने लगे।

उन्होंने सोचा, “कहीं ये दोनों पागल तो नहीं हो गए हैं?”

लेकिन असली रहस्य उनमें से किसी की समझ में नहीं आया। भूल-चूक सभी से हो जाती है। लेकिन बुद्धिमानी के साथ अपनी भूल सुधार लेने में ही आदमी की तारीफ है।

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