एक घने जंगल में एक बाघ रहता था। वह उस जंगल का राजा था और उसका मंत्री था एक तोता। वह तोता बड़ा दयालु, दानी और परोपकारी था। जो कोई उस जंगल में आ जाता उसको तोता अपने राजा से कह कर रुपया-पैसा दिलाता और बड़ी इज्जत के साथ जंगल पार करा देता। इसलिए तोता जब तक मंत्री रहा, तब तक जंगल के राजा का यश सारे संसार में फैल गया। एक दिन एक गरीब ब्राह्मण उस जंगल में आया। उसने आकर बड़ी दीनता के साथ मंत्री तोते की शरण ली। तोते को उस बेचारे ऋण पर बड़ी दया आयी। उसने अच्छा समय देख कर जंगल के राजा से ग़रीब ब्राह्मण की सिफारिश की। तब बाघ ने कहा,

“अच्छा तो तुम उसकी सहायता कर दो। राजा का धर्म ही है कि, वह संकट में पड़े हुए लोगों को विचारे। यह कौन सी बड़ी बात है?”

तब तोते ने ब्राह्मण को बहुत सा धन दे दिया। ब्राह्मण खुशी खुशी घर लौट गया। वह ब्राह्मण उस धनसे एक साल तक बड़े सुख से रहा। लेकिन था वह बड़ा खचला। इसलिए थोड़े ही दिनों में सारा धन चुक गया और वह फिर भूखों मरने लगा। तब उसे फिर जंगल के मंत्री तोते की उदारता और दानशीलता याद आई। वह फिर उस जंगल की ओर चला। लेकिन तब तक बाघ राजा के दरबार में बड़े बड़े हेर-फेर हो गए थे। अब मंत्री के आसन पर तोते के बदले एक कौआ राम विराजमान थे। ब्राह्मण ने मंत्री कौआराम के पास जाकर अपनी राम-कहानी सुनाई। कौए ने कह,

“ब्राह्मणों के सरकार से बढ़ कर और कौन सा पुण्य हो सकता है? आप यहीं बैठे रहिए। मैं अभी राजा से कह कर आपकी मदद करा देता हूँ। यह कह कर कौआ राम बाघ के पास गया। आज बहुत दिनों बाद हमारी किस्मत खुल गई है। देखिए न, बैठे-बिठाए मनुष्य का मांस खाने को मिल रहा है। एक भारी तोंद भला मोटा-ताजा ब्राह्मण आपके दर्शन के लिए आया है। उसका कैसा सत्कार करना है। सो तो आप जानते ही हैं। कौआ राम ने बाघ से कहा और जाकर ब्राह्मण को उसके पास भेज दिया। ब्राह्मण को देखते ही बाप गरज कर उस पर टूटा ब्राह्मण ने काँपते हुए हाथ जोड़ कर कहा...!

“राजन्...! मैं गरीब बाल-बच्चों वाला आदमी हूँ। मुझे न मारिए। पिछली बार आपने मुझ पर बड़ी कृपा की थी। आप के ही दान से आज तक में बच्चों सहित सुख से दिन काट रहा था। मैंने सोचा था कि इस बार भी आप मुझ ग़रीब की मदद कर बेड़ा पार लगा देंगे। इसीलिए में यहाँ आने का साहस कर सका। अगर मुझे मालूम होता कि आप मुझे मार डालेंगे तो मेरी क्या मजाल थी कि जो यहाँ तक आ जाता”

ब्राह्मण की ये बातें सुन कर बाघ को कुछ तरस कहा,

“पहले कहीं के आ गया। उसने देखते नहीं कि जमाना बदल गया है। धर्म बदल गया है। साथ ही राज-मन्त्री भी बदल गया है। क्या तुम समझते हो कि, अब भी दुनियाँ उसी बाबा आदम के ढंग पर चल रही है? तुम सोचते होगे कि राजा तो नहीं बदला है। लेकिन यह तुम्हारी भूल है। मन्त्री के साथ साथ राजा भी बदल गया है। राजा तो मन्त्री की सलाह पर चलने वाला कट-पुतला पिछली बार मेरे मन्त्री तोते ने तुम्हारी सिफारिश की थी। इसलिए तुम्हें उतना धन मिला था। नए मन्त्री की सलाह के अनुसार आज मैं तुझे खा जाता। लेकिन तुमसे पुरानी जान-पहचान है। इसलिए तरस खाकर छोड़ देता हूँ। अब तुम यहाँ से तुरन्त रफू चक्कर हो जाओ। नहीं तो कुशल न होगी।” 

ब्राह्मण भगवान का नाम लेकर वहाँ से सिर पर पैर रख कर भाग निकला। वह मन दी मन डर रहा था कि, कहीं बाघ फिर अपना निश्चय बदल न डाले। ब्राह्मण की स्त्री बड़ी उतावली के साथ अपने पति की राह देख रही थी। ब्राह्मण को खाली हाथ हाँफते हुए आया देख कर ब्राह्मण ने जब उसका मन निराश हो गया। सारी कहानी उससे कह सुनाई तो उसने काली माँ का नाम लेकर कहा,

“काली मैया..! उनकी कृपा से धन नहीं मिल तो न सही जान तो बच गई..! ग़रीबी में भी दिन किसी न किसी तरह कट ही जाते हैं। न होगा तो और किसी ऐसे राजा की शरण लेंगे जिसके दरबार में अच्छा मन्त्री हो।”

 यह कह कर उसने मुख की साँस ली।

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