रात आधी से ज्यादा जा चुकी है। उस लम्बे-चौड़े खेमे के चारों तरफ बड़ी मुस्तैदी के साथ पहरा लग रहा है जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला गहरी नींद में सोई हुई हैं। उसके दोनों बगल और भी दो बड़े-बड़े डेरे हैं जिनमें लौंडियां हैं और उन दोनों डेरों के चारों तरफ भी दो फौजी सिपाही घूम रहे हैं। मनोरमा चुपचाप अपने बिछावन पर से उठी, कनात उठाकर चोरों की तरह खेमे के नीचे से बाहर निकल गई, और पैर दबाती हुई किशोरी के खेमे की तरफ चली। दूर से उसने देखा कि चार फौजी सिपाही हाथ में नंगी तलवारें लिए हुये घूम-घूमकर पहरा दे रहे हैं। वह हाथ में तिलिस्मी खंजर लिये हुए खेमे के पीछे चली गई। जब पहरा देने वाले टहलते हुए कुछ आगे निकल गए तब उसने कदम बढ़ाया और तिलिस्मी खंजर म्यान से निकाल कर उनके रास्ते में रख दिया, इसके बाद पीछे हटकर पुनः आड़ में खड़ी हो गई तथा पहरा देने वालों की तरफ ध्यान देकर देखने लगी। जब पहरा देने वाले लौटकर उस खंजर के पास पहुंचे तो एक की निगाह उस खंजर पर जा पड़ी जिसका लोहा तारों की रोशनी में चमक रहा था। उसने झुककर खंजर उठाना चाहा मगर छूने के साथ ही बेहोश होकर औंघे मुंह जमीन पर गिर पड़ा। उसकी यह अवस्था देखकर उसके साथियों को भी आश्चर्य हुआ। दूसरे ने झुककर उसे उठाना चाहा और जब खंजर पर उसका हाथ पड़ा तो उसकी भी वही दशा हुई जो पहिले सिपाही की हुई थी। तिलिस्मी खंजर का हाल और गुण गिने हुए आदमियों को मालूम था और जिन्हें मालूम था वे उसे बहुत छिपाकर रखते थे। बेचारे फौजी सिपाहियों को इस बात की कुछ खबर न थी और धोखे में पड़कर जैसा कि ऊपर लिख चुके हैं एक-दूसरे के बाद चारों सिपाही खंजर छू-छूकर बेहोश हो गए। उस समय मनोरमा पेड़ की आड़ से बाहर निकलकर चारों बेहोश सिपाहियों के पास पहुंची, अपना खंजर उठा लिया और उसी खंजर से खेमे के पीछे कनात में बड़ा-सा छेद करने के बाद बड़ी होशियारी से खेमे के अन्दर घुस गई। उस समय किशोरी, कामिनी और कमला गहरी नींद में खुर्राटे ले रही थीं जिन्हें एकदम दुनिया से उठा देने की फिक्र में मनोरमा लगी हुई थी। मनोरमा उनके सिरहाने की तरफ खड़ी हो गई और सोचने लगी, निःसन्देह इस समय मेरा वार खाली नहीं जा सकता, तिलिस्मी खंजर के एक ही वार में सिर कटकर अलग हो जायगा, मगर एक के सिर कटने की आहट पाकर बाकी की दोनों जग जायेंगी, ऐसा न होना चाहिए। इस समय इन तीनों ही को मारना मेरा काम है, अच्छा पहिले इस तिलिस्मी खंजर से इन तीनों को बेहोश कर देना चाहिए। इतना सोच मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर बदन में लगाकर उन तीनों को बेहोश कर दिया और फिर सिर काटने के लिए तैयार हो गई। उसने तिलिस्मी खंजर का एक भरपूर हाथ किशोरी की गर्दन पर जमाया और जिससे सिर कटकर अलग हो गया, दूसरा हाथ उसने कामिनी की गर्दन पर जमाया और उसका सिर काटने के बाद कमला का सिर भी धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद खुशी भरी निगाहों से तीनों लाशों की तरफ देखने लगी और बोली, “इन्हीं तीनों ने दुनिया में ऊधम मचा रक्खा था। जिस तरह इस समय इन तीनों को मारकर मैं खुश हो रही हूं उसी तरह बहुत जल्द वीरेन्द्रसिंह, इन्द्रजीत, आनन्द, और गोपाल को भी मारकर खुशी-भरी निगाहों से उनकी लाशों को देखूंगी। तब दुनिया में मायारानी और मनोरमा के सिवाय कोई भी प्रतापी दिखाई न देगा!” मनोरमा इतना कह ही चुकी थी कि पीछे की तरफ से आवाज आई - “नहीं-नहीं, ऐसा न हुआ है और न कभी होगा!'