किसी समय एक गुरू के पास एक भोला-भाला चेला पढता था। गुरूजी के मुँह से जो कुछ निकलता वह उस को बिना सोचे-समझे सच मान लेता था। एक दिन गुरूजी ने उसको पढाया,

“सर्वम् खल्विदं ब्रम्हासी । सारा संसार ब्रह्ममय है। मुझ में, तुझ में, ईंट-पत्थर में, पेड-पौधों में कीडे-मकोडों में, हर जगह, हर चीज में ब्रम्ह है।”

चेले के मन में यह बात बैठ गई। दूसरे दिन जब चेला बाहर चला तो देखा कि सामने से राजा का हाथी बेतहाशा दौडा आ रहा है, और लोग डर के मारे भाग कर घरों में छिप रहे हैं। महावत हाथी पर से चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है कि,

“हटो, भागो ! यह हाथी पगला गया है !"

लेकिन चेले ने महावत की बात पर कान न दिया और हाथों के सामने चला गया। उसने सोचा,

“मुझ में भी ब्रह्म है और इस हाथी में भी ऐसी हालत में यह हाथी मेरा क्या बिगाड़ सकता है !”

लेकिन नजदीक आते ही हाथी ने उसे सूँड से उठा कर नीचे दे पटका। बस, बेचारे चेले की कमर टूट गई। किसी तरह कराहते हुए गुरूजी के पास गया और सारा हाल सुना कर पूछा,

“आप ने कहा था कि हर चीज में ब्रह्म है तब हाथी ने मुझे क्यों दे पटका ?”

गुरुजी ने जवाब दिया, “अरे, पगले ! जब हाथी में ब्रह्म है तो क्या महावत में नहीं है? तूने महावत की बात क्यों न मानी?” 

चेला यह जवाब सुन कर लजा गया। अब उसकी समझ में आ गया कि दूसरों की बातों पर बिना सोचे-समझे विश्वास नहीं करना चाहिए। जरा अपने दिमाग से भी काम लेना चाहिए।

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