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मिर्ज़ा ग़ालिब की रचनाएँ
/ घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
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घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
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