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मिर्ज़ा ग़ालिब की रचनाएँ
/ ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
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ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
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