मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी
कहाँ हम, कहाँ तुम, कहाँ फिर जवानी
शिकायत करूँ हूँ तो सोने लगे है
मेरी सर-गुज़िश्त अब हुई है कहानी
अदा खींच सकता है बहज़ाद उस की
खींचे सूरत ऐसी तो ये हमने मानी
मुलाक़ात होती है तो है कश-म-कश से
यही हम से है जब न तब खींचा तानी