२१.
अपने तो होंठ भी न हिले उसके रू-ब-रू
रंजिश की वजह ‘मीर’ वो क्या बात हो गई?
२२.
‘मीर’ साहब भी उसके याँ थे पर
जैसे कोई ग़ुलाम होता है
२३.
हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
इस राह से निकले तो हमको भी जगा देना
२४.
मस्ती में लग़ज़िश[1] हो गई माज़ूर [2] रक्खा चाहिए
ऐ अहले मस्जिद ! इस तरफ़ आया हूँ मैं भटका हुआ
२५.
आने में उसले हाल हुआ जाए है तग़ईर[3]
क्या हाल होगा पास से जब यार जाएगा ?
२६.
बेकसी[4] मुद्दत तलक बरसा की अपनी गोर[5] पर
जो हमारी ख़ाक़ पर से हो के गुज़रा रो गया
२७.
हम फ़क़ीरों से बेअदाई क्या
आन बैठे जो तुमने प्यार किया
२९.
सख़्त क़ाफ़िर था जिसने पहले ‘मीर’
मज़हबे-इश्क़[6] अख़्तियार[7] किया
३०.
आवारगाने-इश्क़[8] का पूछा जो मैं निशाँ
मुश्तेग़ुबार[9] ले के सबा ने उड़ा दिया

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