सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था
जहाँ पुर है फ़साने से हमारे
दिमाग़-ए-इश्क़ हम को भी कभू था
गुल-ओ-आईना क्या ख़ुर्शीद-ओ-माह क्या
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था
सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था
जहाँ पुर है फ़साने से हमारे
दिमाग़-ए-इश्क़ हम को भी कभू था
गुल-ओ-आईना क्या ख़ुर्शीद-ओ-माह क्या
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था