रेड लाईट यानी लाल बती (बोल चाल की भाषा में, जिसे हर व्यक्ति कहता हैं,
अनजाने मे मुंह से निकल ही जाता है, चाह कर भी ट्रैफिक सिगनल नही कहा जाता
हैं) पर जैसे ही कार रूकी, वैसे ही तरह तरह के भिखारी और सामान बेचने वाले
विभन्न कारो की तरफ लपकते हैं। बडा मुश्किल हो जाता है इन भिखारियों से
पीछा छुङवाना। जब तक ग्रीन लाईट यानी हरी बती नही हो जाती है और कार आगे
नही बढ जाती है, भिखारी आप का पीछा नहीं छोङते हें. अब तो इन के साथ साथ
हिजडों ने भी कई ट्रैफिक सिगनल पर परेशान करना शुरु कर दिया है। सबसे अघिक
परेशान अब सपेरे करते हैं, यदि गल्ती से खिडकी का शीशा खुला रह जाए, तब
सपेरे सांप को आपकी कार के अंदर ही डाल देते हैं। आप चाह कर भी पीछा नहीं
छुडा़ सकते हैं। एक तो आपकी धिध्गी ही... बाकी आप खुद ही सोचे कि सांप को
देख कर कौन नहीं डरता है, और क्या स्थिती हो सकती है?
“कार का शीशा बंद कर लो।“ मैनें पत्नी से कहा।
“गरमी में शीशा बंद करने से घुटन होती है।“ पत्नी ने कहा.
“डेश बोर्ङ पर रखे सामान पर नजर रखना। आंख बचा कर मोबाईल फोन, पर्स चुरा
लेते हैं। इन छोटे “बच्चों पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। अक्सर ही अखबारों
में पढ़ते रहते हैं।“ मैनें कहा
“फिर्क मत करो।“ पत्नी ने कहा।
इतने में एक छोटी सी लड़की कार के दरवाजे से सट कर खडी हो गई और पत्नी से
भीख मांगने लगी। जब तक इन्को कुछ दे ना दो या फिर कार आगे नहीं बढा लेते
हैं, तब तक मजाल है कि आप का पीछा छूट जाए।
कुछ सोचने के बाद पत्नी ने एक सिक्का निकाल कर उस छोटी सी लड़की को दे
दिया। वह लड़की तो चली गई, लेकिन उसके जाने के फौरन बाद ही एक और छोटा सा
लड़का पता नहीं कहां से आ टपका और कार से सट कर ऐसे खडा़ हो गया, जैसे कार
ही उसकी है। और हम जबरदस्ती उसकी कार में खाम्ह-खव्हा ही बैठे है।
“एक को दो तो दूसरो से पीछा छुड़वाना मुश्किल हो जाता है। जब तक हरी बती
नही हो जाती है, इसको कुछ मत देना, नही तो तीसरा बच्चा आ जाएगा।“
इससे पहले उससे पीछा छुडवाना मुश्किल हो जाता। हरी बती हो गई और कार
स्टार्ट कर के आगे बढ़ गए।
“इन छोटे छोटे बच्चों को भीख मांगते देख कर बडा दुःख होता है।. स्कूल जाने
की उम्र में पता नहीं क्या क्या करना पड़ता हैं इनकों। बचपन ही खराब हो
जाता हैं।“ पत्नी ने कहा।
“यह हम सोचते हैं, लेकिन भीख मांगना इनके लिए तो एक बिजनेस की तरह है। रोज
इस सड़क से गुजरता हूं।, ऑॅफिस जाने के लिए, इस लाल बती पर रोज इन्हीं
भिखारियों कों सुबह या शाम हर समय देखता हूं। कोई नया भिखारी नजर नहीं आता
हैं। हर लाल बती पर वोही परिचित भिखारियों के चेहरे नजर आते हैं। मजे की
बात यह कि, भिखारी सिर्फ कार वालों से ही भीख मांगते हैं। लाल बती पर कभी
इनकों स्कूटर, बाईक या साईकल वालों से भीख मांगते नहीं देखा है। लाल बती
होते ही कारों की तरफ दोड़ते नजर आते है ये भिखारी। आज के जमाने में हम
जैसे मिडिल क्लास वाले भी कारों में बैठते हैं।“ मैनें कहा।. लेकिन
भिखारियों की सोच हमसे अलग है। वे तो कार वालों को अमीर और स्कूटर बाईक
वालों को गरीब समझते हैं। भिखारियों के साथ साथ अब सामान बेचने वालो से भी
सावधान रहना पड़ता है।
“छो¨डो़ इन बातो को।“ पत्नी ने कहा। “कभी कभी तरस आता है।“
“फायदा क्या तरस दिखाने का?” मैनें कहा। “जरा ध्यान रखना, फिर से लाल बती आ
गई।“
“अपनी भाषा कभी नहीं सुधार सकते क्या? लाल, हरी बती क्या होती है। ट्रैफिक
सिगनल नहीं कह सकते क्या?” पत्नी ने कहा।
“फर्क क्या पडता है, बती तो लाल और हरी ही है।“ मैनें कहा।
“बहुत पडता है। मैनर्स का फर्क पडता है। हमेशा सही बोलना चाहिए। अगर तुमहे
किसी को ट्रैफिक सिगनल पर मिलना हो, और तुम उसे लाल बती पर मिलने को कहो,
और मान लो, यदि ट्रैफिक सिगनल पर हरी बती हो या फिर बती खराब हो, तो आपने
उसे सही स्थान नही बताया है। और वह व्यक्ति क्या करेगा, अगली लाल बती पर आप
का इंतजार करेगा, जो कि गलत होगा। इसीलिए हमेशा सही शब्दों का प्रयोग करना
चाहिए।“ पत्नी ने कहा।
“अब इस बहस को बन्द करते है। फिर से बती लाल हो गई है।
इस बार एक छोटा सा बच्चा मेरी तरफ आया। बच्चा सात आठ साल का रहा होगा.
“अंकल, टायर, एक दम नये हैं। सिएट, एमआरएफ लोगे।“ बच्चा बोला।
मैं चुप रहा।
“एक बार देख लो।“ बच्चा बोला।
मैं फिर चुप रहा।
“अंकल सस्ता लगा दूंगा।“ बच्चा बोला।
“नहीं लेना।“ मैंने कहा।
“एक बार देख तो लो। देखने के पैसे नही लगते।“ बच्चा बोला।
“अगर देखने के पैसे नहीं लगते, तब कितने का देगा।“ मैंने कहा।
“मारुती 800 का नया टायर शोरुम में हजार ग्यारह सौं मे मिलेगा। आपके लिए
सिर्फ 800 रुपये में।“ बच्चा बोला।
“मेरे लिए सस्ता क्यो? मेरे साथ तेरी कोई रिस्तेदारी लग नहीं रहीं।“ मैंने
कहा।
“कितने दोगे। बच्चा बोला।
“टायर चोरी का तो नहीं? मैंने कहा।
“हम लोगों की कम्पनी में सेटिंग हैं। इसलिए सस्ते मिल जाते हैं।“
“रीटरीड़ टायर तो नही है।“ मैंने कहा।
“बिलकुल नहीं।“ बच्चा बोला।
“ कितने में टायर लाते हो?”
“सिर्फ 50 रुपये कमाते हैं।“
“50 रुपये में टायर देगा।“
“नहीं लेना तो मना कर दो, क्यो बेकार में मेरा टाइम खराब कर रहे हो।“ बच्चा
बोला।
“टायर बेचने बेटे तुम आए थे। मैं चल कर तुम्हारे पास नहीं आया था।“ मैंने
कहा।
“सीधे मना कर दो।“ बच्चा बोला।
“मना किया था, लेकिन फिर भी तुम चिपक गए थे। मैंने सोचा, चलो जब तक लाल बती
है, तेरे साथ टाइम पास कर लूं।“ मैंने कहा।
“टाईम पास करना है तो आंटी के साथ करो। मेरा बिजनिस टाईम क्यों खराब कर रहे
हो।“ कह कर बच्चा चला गया।
“बात तो बच्चा सही कह गया। मेरे साथ बात नही कर सकते थे। टाईम पास करने के
लिए वो बच्चा ही मिला था। ऊपर से जली कटी बातें भी सुना गया।“ पत्नी ने
कहा।
“आ बैल मझे मार। चुप रहो तो मुसीबत। पीछा नहीं छोडते, बोलो तो जली कटी सुना
जाते हैं।“ मैंने कहा।
“जब टायर लेना नहीं था, तो उसके साथ उलझे क्यो।“ पत्नी ने कहा।.
“एक बार मना कर दिया था, अब वो खुद ही उलझे तो कोई क्या करे।“ मैंने कहा।
दिल्ली की सडकों पर कार को ड्राईव करना एक कला से कम नहीं है। इस सम्पूर्ण
कला में माहिर व्यक्ति को ड्राईविंग के अलावा संयम मे भी महारत हासिल करनी
पड़ती है वरना ड्राईविंग मे कहीं भी चूक हो सकती है। ऐसे ही बातों बातों मे
घर आ गया।
दिल्ली शहर की भाग दौड़ की जिन्दगी में घर और ऑॅफिस एक रूटिन है। इतनी
जल्दी में दिन बीत जाते हैं कि अपने से भी बात करने का समय निकालना मुश्किल
हो जाता है और कभी कभी तो सुबह की प्रार्थना भी छूट जाती है। एक दिन लौंग
ड्राईव का कार्यक्रम बना कर वृन्दावंन के लिए रवाना हुए। इस बहाने चलो कुछ
अघ्यातमिक ही हुआ जाए। भगवान के दर्शन के साथ साथ मन को सुकून भी मिलेगा।
सुबह सुबह अपनी कार में रवाना हुए। खुश नुमा मौसम और सुबह के समय खाली
सड़के, कार ड्राईव का आनन्द ही निराला हो जाता है। फरीदाबाद की सीमा समाप्त
होते ही खुला चौड़ा हाईवे और साफ सुथरा वातावरण से मन और तन दोनों ही
प्रसन्न हो जाते हैं। बीच बीच में छोटे छोटे गांव और कस्बों से गुजरते हुए
वृन्दावन पहुंचे। कार को पार्किंग में रख कर श्री बांके बिहारी जी के
दर्शन, इस्कान मंदिर, निधी वन और दूसरे मंदिरों के दर्शनों के बाद चित
प्रफुल्लित हो गया। छोटे बड़े मन्दिरों में दर्शन करने के बाद और बाजार में
लस्सी, भल्ला, टिक्की, कचौडी खाने के बाद पार्किंग में पहुचे।
“आज के दिन यहीं रूक जाते हैं, गेस्ट हाउस में।“ मैंने कहा।
“इस बहाने थकान भी खत्म हो जाएगी। कल सुबह वापस चलेगें।“ पत्नी ने कहा।
कार के पास जाने पर जेब से चाबी निकाली। कार का दरवाजा खोलने के लिए चाबी
को दरवाजे पर लगाया और चाबी घुमाई, तभी एक छोटा सा बच्चा आ कर दरवाजे से सट
कर खडा़ हो गया और बोला
“अंकल पैसे।“
भिखारियों को मैं कभी पैसे नहीं दिया करता हूं, लेकिन पता नहीं क्यो, मैं
खुद नहीं जानता, जेब मे हाथ चला गया और एक रूपये का सिक्का निकाल कर उस
छोटे से बच्चे को दे दिया।
वह छोटा सा बच्चा तो चला गया, लेकिन उसके जाने के बाद पता नहीं कहां से
छोटे बच्चो का एक झुंङ आ गया और चारों तरफ से घेर लिया.
“अंकल पैसे।“ एक के बाद एक ने कहना शुरू किया.
मैंने एक बार पत्नी की तरफ देखा.
पत्नी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन चेहरे का भाव कुछ ऐसे था, कि कह रही हो, अब
खुद ही भुगतो।
एक बार जी मे आया कि डांट मार कर सबको भगा दूं। लेकिन पता नहीं क्यो, चारो
तरफ शत्रुऔ से घिरा पा कर चुपके से जेब में हाथ डाल कर एक एक सिक्का हर
बच्चे को देता गया। किसी बच्चे को एक रूपये का और किसी बच्चे को दो रूपये
का सिक्का मिला। किसी के साथ भेदभाव नहीं था। जो सिक्का हाथ मे आया, देता
चला गया. यह एक संयोग हुया कि जेब मे दो सिक्के रह गये और बच्चे भी दो रह
गये। एक बच्चे को पांच रूपये का सिक्का चला गया और आखरी बच्चे को पचास पैसे
का सिक्का मिला।
“क्यो अंकल, उसे पांच रूपये और मुझे पचास पैसे। और पैसे निकालो।“
“जितने सिक्के थे, खत्म हो गए हैं, और सिक्के नहीं हैं, अब आप जाऔ।“
“ऐसे कैसे चला जाऊ।“ बच्चे ने कहा।
“और पैसे मैं नहीं दूंगा। सारे सिक्के अब खत्म हो गए हैं, कार के दरवाजे से
हटो।“ मैंने कहा।
“मतलब ही नही जाने का। फटाफट पैसे निकालो। दूसरे बच्चे दूर चले गए हैं।
उन्हें भाग कर पकड़ना हैं। जायदा टाईम नहीं है, मैंरे पास। अंकल तेरे पास
पैसे खत्म हैं तो आंटी के पास होंगे पैसे।“ अब बच्चे ने पत्नी की तरफ देखते
हुए कहा। “आंटी पर्स से फटाफट पैसे निकालो।“
मैं और मेरी पत्नी दोनों एकदम अवाक और एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
हम दोनो का चेहरा एक दम पीला, जैसे कोई चोरी करते पकडे गए हो।
पत्नी ने चुपचाप पर्स से एक पांच रूपये का सिक्का निकाल कर उस बच्चे को
दिया।
पांच रूपये का सिक्का पा कर छोटा बच्चा फौरन नौ दो ग्यारह हो गया।
जाते जाते बच्चा कहता गया। “इतनी बडी कार ले कर घूमते हैं. पैसे देने को एक
धंटा लगा दिया।“
“मारूती 800 कार कब से बडी हो गई?” मैंने कहा।
“अब छोडो इस बात को। यमदूत से पीछा छूटा, शुक्र करो।“ पत्नी ने कहा।
फटाफट कार मे बैठ कर कार को स्टार्ट किया।
“देर मत करो। सोचने का टाईम नहीं है। जल्दी चलो।“ पत्नी ने कहा।
“अब जल्दी से नौ दो ग्यारह ही हो जाते हैं। मालूम नहीं और बच्चे टपक न
पडे़।“ मैंने कहा।
गेस्ट हाउस पहुंच कर कमरे में बिस्तर पर लेटे लेटे सामने दीवार पर टक टकी
लगा कर कुछ सोचते देख पत्नी ने पूछा। “ क्या बात है, कुछ सोच रहे हो।“
“उस छोटे बच्चे की बात ही मन में बार बार आ रही है, एक तो भीख दो, उपर से
जली कटी बातें भी सुनो. सोच रहा हूं कि दया का पात्र मैं हूं या वो छोटा
बच्चा। दया की भीख मैं उनसे मांगू या उनको भीख दूं। कुछ समझ नहीं आ रहा है
कि भिखारी कौन है। आखिर सुकून की जिन्दगी कब और कहां मिलेगी। कहीं भी चले
जाऔ, सारा मजा किरकिरा कर देते है, चाहे धार्मिक स्थल हो, ऐतहासिक स्थल या
फिर आपके घर के समीप पार्क। घर में रहो तो बाहर जाने को मन करता है। बाहर
जाऔ तो ये लोग चैन से बाहर भी नहीं रहने देते। घर वापस आने की जल्दी करनी
पड़ती है।“
“चलो इस किस्से को अब भूल जाऔ और हम दोनो ही प्रण लेते हैं कि आज के बाद
कभी भी किसी को भीख या दान नहीं देगें, चाहे वह व्यक्ति कितना ही जरूरत मंद
क्यों न हो।“
“करे कोई, भरे कोई।“
“किसी के चेहरे पर लिखा नहीं होता कि वह जरूरतमंद है।“
“सही बात है. हमे खुद अपने आप को देखना है, दूसरो की चिंता मे अपना आज
क्यों खराब करे। खुद को तनाव से मुक्त रखने का सही इलाज है। अब आराम करते
है. कल सुबह दिन निकलने से पहले दिल्ली के लिए रवाना होना है, ताकि ठंडे
समय मे घर पहुंच जाए।“
मनमोहन भाटिया