महेश चाय की चुसकियों के बीच समाचारपत्र पढ रहा था। ममता नहा कर कमरे
में आई और महेश के चेहरे पर मुस्कान देख कर सोफे पर पास चिपक कर बैठ कर
महेश के बालों को सहला कर पूछा “क्या बात है, आज तो बहुत चहक रहे हो।”
“आज 14 फरवरी है।”
“इसमें खास बात क्या है।”
“खास बात है 14 फरवरी वलेन्टाइन डे है।”
“औ हो, तो जनाब को मालूम है, कि आज वलेन्टाइन डे है।”
“मालूम न हो, तब भी मीडिया वाले बता ही देते है, कि आज क्या है।”
“तो फिर क्या इरादा है, जनाब का।”
“हेपी वलेन्टाइन डे।”
“बस रूखा रूखा। दुनिया को देखो।कितनी जोर शोर से सेलिब्रेट करते है। उतना
नही, फिर भी जब जनाब का मूड बन गया है, तो कुछ तो होना ही चाहिए।”
“ठीक है, अभी तो आफिस चलता हूं। रात का डिनर केंडिल लाईट का कार्यक्रम
बनाते हैं।”
“अगर शाम को आफिस में काम में उलझ गए, तो फिर?”
“आज का पक्का वादा है, आपके गुलाम का, आपकी खिदमत में हाफडे की छुट्टी लेकर
तीन बजे तक हाजिर होगा।”
“बताऔ न, क्या खास बात है, शादी के बाईस साल बाद इतने रोमांटिक हो रहे हो।
आज तक तो कभी वलेन्टाइन डे मनाया नही। मुझे याद है, हमेशा आफिस से लेट आते
हो।”
महेश ममता के मुख के पास होठों को लाते हुए बोला “कुछ नही।” महेश को पास
आते देख कर ममता झठ से पीछे हटी। “कुछ नही, तो फिर बच्चों का भी ख्याल नही,
आज क्या हो गया है।”
“ममता प्रिय, खास बात ही समझो। शाम को पता चल जाएगा। अभी तो आफिस चलते है।
हाफडे लेकर आ रहा हूं। खाना घर ही खाऊंगा। टिफिन तैयार मत करना”
ममता को महेश की बाते पहेली लग रही थी। महेश का यह कहना, कुछ नही, कुछ समझ
नही आया। महेश और ममता पिछले बाईस वर्षो से एक दूसरे पर समर्पित है। विवाह
के बाद उनकी दुनिया एक दूसरे के बाद सिर्फ दो बच्चों मयंक और मानसी तक
सीमित है। बीस का पुत्र मयंक और अठारह की पुत्री मानसी, बस इतना सा संसार
है परिवार का।
एक महीना पहले
महेश आफिस के काम से एक कानफ्रेंस में भाग लेने दो दिन के लिए चैन्नई गया।
कानफ्रेंस में एक दम साथ वाली सीट पर एक सुन्दर महिला बैठी थी। महेश अपनी
स्पीच देकर जैसे अपनी सीट पर बैठा, पास बैठी सुन्दर महिला ने कहा। “महेश जी
आपने जोरदार स्पीच दी, काफी दम है, आपके विचारों में। एक अच्छे सबजेक्ट पर
आपके विचार एकदम नए और प्रभावशाली है।” महेश फोल्डर में रखे कागजों को ठीक
करते कहा “धन्यवाद”। फिर उस महिला की ओर देखा, तो देखता रह गया। सुन्दरता
की मूर्ती उस महिला की उम्र का अंदाजा महेश नही लगा सका। कुछ पल देखने के
बाद उसे ऐसा लगने लगा, कि उसने उस महिला को पहले देखा जरूर है। कौन है वो।
नाम की दुविधा उस महिला ने खुद ही दूर किया। “माई नेम इज माया।”
“माया जी, आपको मेरी स्पीच अच्छी लगी, इसके लिए शुक्रिया, आपके लिखित कमेंट
चाहूंगा। यह मेरा विजिटिंग कार्ड है। आप ईमेल से कमेंट जरूर भेजें। स्पीच
जर्नल में प्रकाशित होगी। यदि कुछ अच्छे कमेंट के साथ हो जाए, तो सोने पर
सुहागा।”
“आप दिल्ली में रहते है। यह मेरा कार्ड है। मैं भी आजकल दिल्ली में हूं।”
कह कर माया ने विजिटिंग कार्ड महेश को दिया।
लंच ब्रेक में माया और महेश साथ साथ थे। बाते होती रही। महेश को लग रहा था,
कि वह माया को जानता है। और माया उसमें कुछ अधिक ही रूचि ले रही है। दोनों
एक ही होटल में रह रहे है, यह जान कर माया की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा।
वह खुशी में झूम गई। शाम को कानफ्रेंस समाप्त होने पर माया महेश के साथ
बाते करकी हुई उसके कमरे तक गई तो, महेश ने कहा, “जब कमरे तक आ गई हो, तो
एक कप चाय पीकर जाना। पूरे दिन की कानफ्रेंस के बाद थकान भी मिट जाएगी और
आपके साथ कुछ पल का साथ और हो जाएगा।” महेश मे रूम सर्विस को दो कप चाय का
ऑर्डर दिया। फिर कुर्सी पर बैठते हुए पूछा “माया जी आप दिल्ली में कहां
रहती है।”
“मेरा घर भी भूल गए महेश। मुझे तो पच्चीस साल पहले ही भूल गए थे। मैं उसी
मकान में रहती हूं। पिताजी की मृत्यु के बाद मैं मां के साथ रह रही हूं।”
माया के यह शब्द सुन कर महेश सतब्ध रह गया। वह टुकुर टुकुर माया को देखता
रहा। क्या माया वही माया है।
“हां महेश मैं वही माया हूं। जिसको तुमने पच्चीस साल पहले प्रपोज करना था,
लेकिन वलेन्टाइन डे पर आए नही। मैं इंतजार करती रह गई।”
महेश चुपचाप चाय पीता रहा। वह कुछ नही बोला। माया को देख कर उसे लगा कि
उसने माया को देखा है, लेकिन पक्का गृहस्थ बन चुका महेश अपना अतीत भूल चुका
था, इसलिए माया को फौरन पहचान नही सका, लेकिन माया ने उसे पहली नजर में
पहचान लिया। पच्चीस साल बाद दोनों मिले।
“तुम्हारे पति, बच्चे।” महेश ने माया से पूछा।
“तलाक हो चुका है, एक लडका पति के साथ है। मैं मां के साथ रह रही हूं।”
तभी महेश का मोबाइल बजा। फोन ममता का था। ममता के साथ स्नेह और प्रेम के
साथ बाते करते देख थोडी देर बाद माया ने रूखसत ली, तो महेश अतीत में चला
गया।
पच्चीस साल पहले
महेश दिल्ली विश्वविधालय के हिन्दू कॉलिज से बी.काम(ऑनर्स) कर रहा था। माया
उसकी सहपाठी थी। यानी वह भी बी.काम कर रही थी। महेश पढाई में होशियार था।
आधी क्लास उसके आगे पीछे नोट्स लेने के लिए घूमती थी। माया का भी महेश से
मेलजोल नोट्स के कारण बहुत अधिक हो गया था। माया बेहत खूबसूरत थी। क्लास
क्या आधा कॉलिज माया का दिवाना था। महेश साधारण रंगरूप का आम लडका था।
मध्यम वर्गीय छात्र पढाई में अव्वल हो तो सोने पर सुहागा। और लडकी सुन्दरता
में अव्वल तो सोने पर सुहागा। माया को अपने रूप पर घमंड स्वाभाविक था। महेश
में शालीनता थी। माया के रूप, सुन्दरता पर महेश भी मर मिटा था, लेकिन कहने
में झिझक थी। पढाई के अलावा दोनों के बीच कोई और बात नही होती थी। कई बार
महेश सोचता था, कि अपने प्यार का इजहार माया से करे। लेकिन कई खूबसूरत
लडकों को माया ठुकरा चुकी थी। यह देखते हुए महेश की कभी हिम्मत नही हुई।
देखते देखते तीन साल बीत गए। पढाई के सिलसिले में माया और महेश की दोस्ती
बरकरार रही। दोनों की निकटता देख कर कॉलिज का हर लडका महेश से जलता था।
महेश की झिझक भी बरकरार रही। फाईनल ईयर, जनवरी का महीना। पढाई पूरे जोर पर
थी। केंपल प्लेसमेंट में महेश ने फार्म भरा। बी,काम के बाद अच्छी कंपनी में
अच्छी नौकरी मिल जाए, हर लडके की ख्वाहिश होती है। महेश का भी यही मिशन था।
नौकरी के साथ साथ उच्च शिक्षा भी होती रहेगी। महेश फाइनल राउंड के लिए
सलेक्ट हो गया था। नौकरी को पक्की थी, बस औपचारिकता बाकी थी।
14 फरवरी को वलेन्टाइन डे पर कॉलिज का हर छात्र उत्साहित था। फाईनल ईयर के
बाद विदा लेने से पहले अंतिम मौका कोई गवाना नही चाहता था। माया को परपोज
करने के लिए लडकों में होड लगी हुई थी। महेश की भी ख्वाहिश प्रबल हो गई, कि
अपने छुपे प्यार का इजहार वलेन्टाइन डे पर कर दे। काफी दिनों की जद्दोजहद
के बाद महेश ने अंतिम निर्णय ले ही लिया। 14 फरवरी को माया से प्यार का
इजहार कर ही देगा।
माया के आगे पीछे लडको की लाईन लगी हुई थी। आज तीन साल कॉलिज के हर लडके के
आगे रह, पढाई में कदम कदम पर महेश की साथी रही माया के मन के किसी कोने में
महेश के प्रति कुछ तो उमडा रहा था। चाह रही थी महेश की सादगी। सोच रही थी
कि यदि महेश कुछ कहता है तो, वह उसका परपोजल स्वीकार कर लेगी। ठुकराएगी
नही।
14 फरवरी का दिन भी गया। महेश ने आज सबसे अच्छे कपडे पहने। बन संवर कर घर
से कॉलिज जाने के लिए घर की सीडियां उतर रहा था। लेटर बाक्स में पढे पत्र
उठाए। एक पत्र उस कंपनी का था, जिसमें उसे नौकरी की पूरी संभावना थी। उसे
आज ही कंपनी के दफ्तर जा कर नौकरी की सारी औपचारिकताए पूरी करनी थी। पत्र
पढ कर महेश सोचने लगा, क्या करे वह। आज का ही दिन मिला है, कंपनी को। कोई
और दिन नही बुला सकते थे। एक दिन बाद बुला सकते थे। कल 15 फरवरी को बुला
लेते। फिर डाक विभाग पर गुस्सा आया। कभी भी समय पर डाक नही पहुंचती। एक दिन
पहले नही आ सकती थी डाक। कंपनी ने तो दस दिन पहले पत्र भेजा। एक शहर में दस
दिन लगा दिए डाक पहुंचाने में। कभी नही सुधर सकता डाक विभाग। एक तरफ नौकरी
और दूसरी तरफ प्यार के इजहार करने का दिन, किसको चुने। इस उधेडबुन में महेश
गली के नुक्कड तक पहुंच गया। फूल की दुकान पर रूक कर कुछ सोचने लगा। दुविधा
में फंसा महेश कुछ पल यूही फूलों की दुकान पर खडा रहा। समस्या का हल निकल
सकता है। कंपनी में जाकर नौकरी की औपचारिकता पूरी करके कॉलिज जाकर माया से
अपने प्यार का इजहार कर देगा। दो तीन घंटे से अधिक नही लगना चाहिए कंपनी
में। गुलाब के फूल खरीद कर भागते हुए घर वापिस गया। घर के नौकर को गुलाब के
फूल देकर समझाया कि वह इन्हे क़ॉलिज जाकर माया को दे दे। पढाई के सिलसिले
में माया कई बार महेश के घर आ चुकी थी। महेश के परिवार का हर सदस्य माया को
जानता था। कहीं महेश का परिवार भी चाहता था कि माया परिवार की बहू बने।
“समझ गये न ये फूल माया को देना। माया तुम्हे कॉलिज केंटींन में मिलेगी।”
महेश मे नौकर को समझाते हुए कहा।
“समझ गया साब जी, फूल दे दूंगा। साथ कुछ कहना है।” नौकर ने महेश से पूछा।
कुछ सोच कर महेश ने कहा “कुछ नही। बस फूल दे देना। बाकी में बात कर लूंगा।”
माया कॉलिज केंटीन में बैठी महेश का इंतजार कर रही थी। कई लडके माया के साथ
बैठने को आतुर थे, लेकिन आज वेलन्टाइन डे पर माया ने महेश के लिए कुर्सी
खाली रखी थी। नौकर ने माया को फूल दे कर कहा। “महेश साब ने भेजे है, आपके
लिए।”
“महेश कहां है।”
“कंपनी गए हैं। देर में आएगें।”
“अच्छा यह बता कि महेश ने फूल देते समय कुछ कहा था।”
“कुछ नही।”
फूल देकर नौकर चला गया। कुछ नही सुन कर माया उदास हो गई। आज का दिन उसके
प्यार का इजहार सुनने के लिए बेताब थी। और महेश कुछ नही। माई फुट। फूल जमीन
पर पटक कर रूआंसी हो कर चली गई। सारा कॉलिज सतब्ध हो गया, कि आज वेलन्टाइन
डे पर माया को क्या हो गया है।
महेश ने सोचा ता कि दो तीन घंटे में फारिक हो जाएगा, लेकिन पूरा दिन लग
गया। नौकरी तो मिल गई, लेकिन छोकरी नही मिली। महेश कॉलिज नही पहुच सका।
अगले दिन माया कॉलिज नही आई। महेश की आंखे माया को ढूंठती रही। माया एक
सप्ताह बाद कॉलिज आई। महेश से दूर दूर रही। पढाई की कोई बात नही। कोई नोट्स
नही लिया। कोई समझ नही सका माया की महेश से दूरी। महेश ने माया से पूछा तो
एक उतर मिला “कुछ नही।”
माया महेश से दूर हो गई। माया को नया कोई महेश मिल गया। खूबसूरत होने का यह
फायदा तो है, एक गया, तो कतार में से कई आगे आ जाते है। समय बलवान होता है।
नौकरी में वयस्त, फिर साथ उच्च शिक्षा। तीन साल कान खुजाने की फुरसत नही
मिली। माया महेश के मन पटल से निकल चुकी थी। तीन साल बाद ममता जीवन संगनी
बनी। महेश का जीवन ममता तक सिमट गया। परिवार में दो नन्हे प्राणियों मयंक
और मानसी ने महेश और ममता को एक दूजे के और समीप ला दिया।
वर्तमान में
जब से महेश चैन्नई से वापिस आया, उसके जीवन में माया का भूचाल आ गया था।
महेश ने कतई नही सोचा था, कि माया उसके जीवन में प्रवेश के लिए उतावली हो
जाएगी। एक समय था महेश माया को चाहता था, लेकिन अब उसका जीवन पत्नी और
बच्चों तक सीमित था। माया उसे अपने पास लाने की हर संभव कोशिश करने लगी। हर
रोज फोन पर बात, दो बार महेश के ऑफिस में मिलने पहुंच गई। शाम को ऑफिस के
बाद रेस्टारेंट में मिलने लगी। महेश सब समझ गया। हर कोशिश के बाद भी माया
महेश के जीवन में आने को आतुर थी। महेश विवाहित है, कोई फर्क नही पढता माया
को। उसने साफ दो शब्दों में कह दिया, वह उसके बिना रह नही सकती। पच्चीस साल
पहले जो नही हो सका। आज जरूर होगा।
होगा जरूर। महेश ने भी ठान लिया। वह माया जाल में नही फंसेगा। इतिहास खुद
को दोहराता है। पच्चीस साल बाद फिर से वही होगा। नियति को भी यही मंजूर था।
14 फरवरी महेश ऑफिस पहुंचा। अपनी सीट पर बैठा सुबह की चाय पी रहा था। एचआर
हैड ने महेश के वर्क स्टेशन पर आकर नमस्ते की।
“गुड मॉर्निग मिस्टर महेश।”
“गुड मॉर्निग पायल जी।”
“महेश जी, आज से आपकी सीट बदल दी है।” कह कर पायल ने एक बंद लिफाफा महेश को
दिया।
मुस्कुरा कर महेश ने लिफाफा खोला। उसका इंक्रीमेंट लैटर था। सीनियर वाईस
प्रेजिडेंट की पोस्ट के साथ एक अच्छी सैलरी इंक्रीमेंट।
“आपको केबिन अलौट किया है, मैं आपका सामान शिफ्ट करवा देती हूं।” ऑफिस में
सब महेश को मुबारकबाद देने लगे। सभी एक मत में बोले “सर जी, आज पार्टी हो
जाए।”
“आज नही, पार्टी कल दूंगा। आज की खुशी पत्नी और बच्चो के साथ। वलेन्टाइन डे
के दिन प्रमोशन, पार्टी का पहला हक पत्नी का है।”
हिस्ट्री रिपीट इटसेल्फ। कहावत आज सच हो गई। पच्चीस साल पहले 14 फरवरी को
पूरा दिन इसी ऑफिस में पहली नौकरी की औपचारिकताए पूरी करने में बीता और
माया से नही मिल सका। आज मेहनत, लगन से पच्चीस साल बाद महेश सीनियर वाईस
प्रेजिडेंट 14 फरवरी को बना। उस दिन वह माया का नही हो सका। आज भी नही
होगा। वह ममता और बच्चों का है।
महेश केबिन में शिफ्ट हुआ। कुर्सी पर बैठा। फोन की घंटी बजी। माया फोन पर
थी। “हेलो, महेश, आज वलेन्टाइन डे, कहां मिल रहे हो। खास बात करनी है,
तुमसे।”
“दो बजे, क्नाटप्लेस में क्वालिटी रेस्टारेंट में मिलते है।”
उतर सुन कर माया पुलकित हो गई। पच्चीस साल बाद ही सही, महेश उसका ही होगा।
माया पहले पहुंच कर टेबुल रिजर्व करके महेश का इंतजार कर रही थी। महेश
हाफडे करके दो बजे ऑफिस से निकला। गुलाब के फूल लिए। आधे घंटे में क्वालिटी
रेस्टारेंट पहुंच गया। दरबान ने गेट खोला। महेश मे नजर दौडाई। माया कोने की
देबुल पर बैठी महेश का इंतजार कर रही थी। एक वेटर को गुलाब के फूल माया को
देकर कहा। “कोने की टेबुल पर जो खूबसूरत सी महिला है, उनको, ये फूल दे दो।”
“कुछ कहना है, फूलों के साथ।”
“कुछ नही।” कह कर महेश रेस्टारेंट से बाहर निकल गया। माया ने महेश को आते
देखा। वह उसका इंतजार कर रही थी। वेटर ने फूल माया को दिए। “मेम, फूल आपके
लिए उन साहब ने दिए है।” मुड कर देखा, महेश जा चुका था। माया ने पूछा। “कुछ
कहा।”
“कुछ नही।”
कुछ नही सुन कर माया सतब्ध लह गई। फूलों के साथ एक पत्र था। हेपी वेलन्टाइन
डे। जो चेप्टर पच्चीस साल पहले समाप्त हो गया था। मैं उसे शुरू नही करना
चाहता। वलेन्टाइन डे पत्नी के साथ रिजर्व है।
पत्र पढ कर माया पैर पटक कर रेस्टारेंट से बाहर आई। महेश जा चुका था।
पच्चीस साल पहले भी माया पैर पटक कर कॉलिज केंटीन से बाहर आई थी और आज
पच्चीस साल बाद क्वालिटी रेस्टारेंट से बाहर आई। उसे उम्मीद थी महेश परपोज
करेगा। महेश पच्चीस साल पहले परपोज करना चाहता था, माया समझ नही सकी। आज
महेश विवाहित जीवन से सन्तुष्ट था। माया अपने मायाजाल में फांस न सकी।
महेश ने वैंगर से ढेरों पेस्ट्री, पेटीस, कुकीज, बर्गर लिए। घर पहुंच कर
सारा सामान ममता के हाथों में पकडाया। बच्चे कॉलिज से आ गए थे। “पापा आज
किस खुशी में इतना ढेरों खाने का सामान।”
“आज दो कारण है। पहला आप सब जानते हो।”
“क्या?”
“भूल गए, वलेन्टाइन डे। कॉलिज में सेलिब्ररेट किया होगा।”
“पूरा कॉलिज दीवाना था। आज, पापा। पहले दूसरा कारण बताऔ।”
“आज मेरी प्रमोशन हुई है। आई एम सीनियर वाईस प्रेजिडेट नाऊ। लेस्ट
सेलिब्रेट”
दोनों बच्चे खुशी में झूम उठे।
“खाना लगा देती हूं। आप टिफिन भी नही ले कर गए थे। कह कर गए थे, जल्दी आने
का, शाम कर ही दी।”
“नाश्ता लगाऔ। आज केंडल लाईट नाश्ता, डिनर, यही हमारा वलेन्टाइन डे है।
डाईनिंग टेबुल पर महेश ने ममता को कहा “हेपी वलेन्टाइन डे।”
“आज तक तो कभी कहा नही। आज क्या बात है।”
“कुछ नही।”
“आपका कुछ नही सुबह से समझ नही पा रही हूं। क्या है कुछ नही।”
“इसमे समझने की क्या बात है। कुछ नही तो कुछ नही।”
“फिर भी।”
“पति की प्रेमिका पत्नी होती है। मेरी प्रमिका और पत्नी ममता, बस तुम्ही के
साथ जीवन है, मेरा, और कुछ भी नही।”
“सचमुच कुछ नही।”
“सचमुच कुछ नही।”
“फिर हेपी वलेन्टाइन डे महेश।”
“हेपी वलेन्टाइन डे ममता।”