सुबह का समाचारपत्र पढते पढते राजीव की नजरें फिर से नौकरी ढूंठने लगी. पेंसिल से निशान लगा कर समाचारपत्र रख कर नहाने चला गया कि शाम को ऑफिस से वापिस आ कर इन पर गौर करेगा. आजकल अखबार वाला देर से आता है, जिस कारण पढने का समय ही नही मिल पाता है. सिर्फ सुर्खियां पढ कर ही काम चलाया जाता है. शाम को आराम से संपादकीय. दूसरे लेख पढने का समय होता है. राजीव के ऑफिस जाने के बाद रसोई, घर के काम निबटा कर सोनिया समाचारपत्र पढती थी. समाचारपत्र पर पेंसिल के निशान देख कर शाम को राजीव से पूछा “क्या बात है, आज अखबार में तीन नौकरियों पर निशान लगा रखे है, ऑफिस में सब ठीक है न.”

चाय की चुस्कियों के बीच राजीव ने कहा, “ऑफिस मे सब ठीक है, लेकिन हमारी कंपनी छोटी है, जिसमें आगे बढ़ने की संभावना कम है, आज आठ साल हो गये नौकरी करते हुए. अकाउन्टेंट लगा था, अब चीफ अकाउन्टेंट बन गया हूं. इसी पोस्ट पर रिटायर हो जाऊंगा.”
“कंपनी का मालिक आपकी काफी इज्जत करता है, वेतन भी ठीक है.”
“आजकल मल्टीनेशनल कंपनियों के आने से वेतन का ढांचा ही बदल गया है, आजकल पैकेज का जमाना है, मेरे साथ के दोस्त जब अपनी तनखव्या के साथ सुविधायों का जिक्र करते है, तब जलन महसूस होती है, कि मैं दौड में पिछड गया हूं.”
“लेकिन आप ही हमेशा कहते है कि पैसा सब कुछ नही है, मान मर्यादा, इज्जत, शांति जो आपको इस ऑफिस में मिली हुई है, आप उसमें खुश हैं.”
“खुश तो हूं, लेकिन कुछ दिनों से बैचेन हूं कि किसी मल्टीनेशनल या बडी कंपनी में नौकरी मिल जाए.”
“जैसा आप ठीक समझे.”
उस दिन के बाद सोनिया ने भी राजीव के इस काम में हाथ बटाना शुरू किया. अखबार में वह भी नौकरियां ढूंढने लगी. यह मेहनत रंग लाने लगी. राजीव को इंटरव्यू काल्स आने लगी. डिंपल कंपनी से उसे इंटरव्यू काल आई. इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी का चेहरा जाना पहचाना सा लग रहा था. काफी गहराई से इंटरव्यू लेने के बाद अधिकारी ने राजीव से कहा, मिस्टर राजीव आपको इनकम टेक्स, सेल्सटेक्स के बारे में काफी अनुभव है. मुझे खुशी है कि आप पिछले आठ वर्षो से एक कंपनी मे काम कर रहे है. हमें आपके जैसे व्यक्ति की जरूरत है. आप इस कसौटी पर पूरे खरे उतरे हो. मैंने आपको सलेक्ट कर लिया है, लेकिन अन्तिम निर्णय कंपनी के मैनेजिंग डारेक्टर सिन्हा साहब करेगे. सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति सिन्हा साहब ही करते है. उनके साथ आपका इंटरव्यू एक दिनों में हो जाएगा. आप इसे केवल महज औपचारिकता ही समझे. क्योंकि हमारे द्वारा सलेक्ट किसी को भी रिजेक्ट नही किया.”
“सर एक बात पूछ सकता हूं.” राजीव ने झिझकते हुए कहा.
“घबराने की जरूरत नही, अवश्य पूछो.”
“सर मुझे एैसा लगता है कि मैंने आपके जैसी शक्ल वाले व्यक्ति को इन्कमटेक्स ऑफिस में अक्सर देखा है.”
मुस्कराते हुए अधिकारी ने कहा, “मुझ जैसे को नही, बल्कि मुझे ही देखा होगा. मैं वहां कंपनी के काम से जाता रहता हूं. मुझे भी बार बार एैसा लग रहा था, कि आपको कहां देखा है. आपके इस सवाल पर याद आया कि बार रूम में अक्सर आपको भी अपने वकील साहब के साथ केस के बारे में डिशकशन करते देखा है. अब डिंपल कंपनी बहुत अधिक विस्तार कर रही है. इन्कमटेक्स के सारे काम मैं अकेले नही कर सकता, इसीलिए आपकी काबलियत देख कर आपको चुन कर अब लगता है, मैं कोई गलती नही कर रहा. मुझे अपने निर्णय पर गर्व है. आप एक तरह से निश्चिन्त रहिए.”
बहुत अधिक उत्साह के साथ राजीव घर पहुंचा. इंटरव्यू की पूरी बात सुन कर सोनिया भी बहुत अधिक खुश हुई. जैसा राजीव चाहता था, बडी कंपनी, अधिक वेतन, अधिक सुविधाएं, ऊंची पोस्ट. जिस की ख्वाहिश की, पूरी लगभग होती नजर आ रही थी. दो दिन बाद राजीव को फोन आया कि फाइनल इंटरव्यू के लिए डिंपल कंपनी के मैनेजिंग डारेक्टर सिन्हा साहब आज शाम को मिल सकते हैं, फिर एक सप्ताह के लिए विदेश जा रहे है. राजीव यह मौका नही छोडना चाहता था, वह शाम पांच बजे डिंपल कंपनी के ऑफिस पहुंच गया. इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी सुभाष क्वात्रा राजीव को लेकर सिन्हा साहब के केबिन में पहुंचे. सुभाष क्वात्रा ने राजीव के काम, अनुभव की तारीफ की और नौकरी के लिए उपयुक्त बताया. सिन्हा साहब ने कुछ व्यक्तिगत बाते पूछी और कहने लगे, “भई सुभाष जब तुमने चुन लिया है, तब मैं कौन होता हूं, रिजेक्ट करने वाला. इनकी ऐपलिकेशन कहां है, अभी सलेक्ट कर देते हैं.” सुभाष क्वात्रा नें राजीव की ऐपलिकेशन आगे बढाई, जिसे देखते ही सिन्हा साहब की माथे की त्योरियां चढने लगी. एक छण पहले जिस व्यक्ति को राजीव में सभी गुण नजर आ रहे थे, उसे राजीव में अब अवगुणों के अलावा कुछ भी नजर आ रहा था. तेज स्वर में बोले, “सुभाष तुम्हारे से यह उम्मीद नही थी. तुमने मलिक कंपनी में काम कर रहे आदमी को कैसे चुना.”
“सर आप राजीव की काबलियत देखिए.” सुभाष ने सफाई देते हुए कहा.
“जब मैंने कह दिया, तब वह फाइनल है., भाड में गई काबलियत. उस पागल मलिक के पास क्या काम करता होगा. एक टुच्ची, कंगाल कंपनी का टुच्चा कर्मचारी. मिस्टर राजीव आप जा सकते है. हम आपको नौकरी पर नही रख सकते है.” सिन्हा साहब की बात सुन कर राजीव चुपचाप एक लुटे, पिटे आशिक की तरह चुपचाप केबिन से बाहर आ गया. राजीव की हालत बिलकुल वैसी थी, जैसे एक आशिक की होती है, जो अपनी महबूबा के घर उसके पिता से शादी की बात करने जाता है, लेकिन अपमानित हो कर वापिस आता है. राजीव से किस्सा सुनने के बाद सोनिया ने कहा, “मालिक होंगे अपने घर में, नौकरी दें या नही, यह उनकी मर्जी है, लेकिन उनको इस बात का कोई अधिकार नही है, कि वे किसी की इस तरह से बेइज्जती करें. सुनो राजीव आखिर वो क्या बात हो सकती है, जिस पर सलेक्शन के साइन की जगह रिजेक्शन के साइन कर दिये.”
“मुझे खुद नही मालूम, लेकिन इसका पता तो लगाना ही पडेगा.”
“तुम उस अधिकारी से पूछ सकते हो, जिसने तुम्हारा इंटरव्यू लिया था.”
“मुझे वह इनकमटेक्स ऑफिस में मिलेगा, वही बात करूंगा.”
कुछ दिनों के बाद राजीव की मुलाकात सुभाष क्वात्रा से इनकमटेक्स ऑफिस में हुई. राजीव ने पूछा, “सर क्या मैं आपसे अपने रिजेक्शन की वजह पूछ सकता हूं.”
“अगर मत पूछो तो अच्छा है.”
“अगर बता दीजिए तो अच्छा है, दुख मुझे रिजेक्शन का नही है. नौकरी तो मुझे कही और भी मिल जाएगी. वह तो जीवन का एक हिस्सा है. हैरानी अचानक व्यवहार में आए परिवर्तन के कारण है. कंपनी का नाम जानते ही मुझे बेइज्जत कर दिया.”
“दुख मुझे तुमसे ज्यादा है, कि एक काबिल आदमी को नौकरी नही मिली. एक बेकार की वजह ने काबलियत को नही परखा. लेकिन मैं ज्यादा नही बताऊंगा.”
धीरे धीरे राजीव इस किस्से को एक बुरा सपना मान कर भूलने लगा, क्योंकि कारण वह मालूम नही कर सका. भूलने मे ही भलाई समझी, लेकिन कुदरत समय आने पर सब भेद खोल देती है. चाहे इसमें कुछ देर हो सकती है. लगभग दो महीने बाद चपरासी ने कुछ फाईलों का एक पुलिंदा राजीव की मेज पर रख कर कहा, “ये फाईलें मलिक साहब नें भेजी है, आप देख ले, जो जरूरी हो, उनको रख कर बाकी बेकार की फाईलों को नष्ट कर देना.” उस पुलिंदे में एक फाईल डिंपल कंपनी की थी, जिसे देख कर उसका माथा ठनका. वह फाईल को पढने लगा, हो सकता है, कि जो राज वह जानना चाहता है, शायद मालूम हो जाए. वह फाईल लगभग आठ साल पुरानी थी, वही समय जब राजीव ने मलिक कंपनी ज्वाईन की थी. फाईल पढ कर राजीव को मालूम हुआ कि उस समय डिंपल कंपनी की आर्थिक स्थिती अच्छी नही थी. वह बिकाउ थी. मलिक कंपनी के मालिक मलिक साहब का डिंपल कंपनी खरीदने का ईरादा था. बात लगभग तय भी हो गई थी, लेकिन आखिर सिन्हा की मांगी कीमत कुछ अधिक लगी. सौदा नही हो सका.
तो यह बात है, राजीव बुदबुदाया. अगर सौदा नही हुआ तो उस आठ साल पहले की खुनदक मुझ पर निकाल कर पूरी की. बीमार मानसिकता.
शाम को सोनिया कारण जान कर मुस्कराई. “जो होता है, अच्छे के लिये होता है. अच्छा हुआ कि उस बददिमाग सिन्हा ने नौकरी नही दी. एक बीमार मानसिकता से ग्रस्त आदमी के साथ काम करने से अच्छा है, कि कम पैसों मे चैन की नौकरी करो. मुझे इस बात की खुशी है, कि उस अधिकारी सुभाष ने तुम्हारी काबलियत को परखा. वह सिन्हा पैसो से अमीर हो सकता है, लेकिन निकला एक फर्सटरेडिट गरीब आदमी. पुअर चैप. जिसने अपनी आठ साल की भडास तुम पर निकाली. बट आई लव यू एंड यूअर काबलियत.”
“आधी हिंदी, आधी अंग्रेजी.” राजीव मुस्कराया.
“यही आज की भाषा है, राजीव.” कह कर सोनिया हंस पडी.

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