पागल पागल पागल की आवाज के साथ कुछ बच्चे शोर मचाते हुए भाग रहे थे, उनके
पीछे एक महिला अभद्र गालियां बकती हुई पीछा कर रही थी। उस महिला ने एक
पत्थर उठा कर उन आगे भागते हुए बच्चों की ओर फेंका। निशाना गलत साबित हुआ,
वह पत्थर किसी बच्चे को नही लगा। महिला अधेड थी, इसलिए बच्चों की रफ्तार का
मुकाबला नही कर सकी। हांफते हुए एक मकान के दरवाजे का सहारा लेकर खडी हो
गई। विमल टेम्पों में बैठा उस महिला का चेहरा नही देख सका। उसने पत्नी
वृन्दा से सिर्फ इतना कहा, “कहां मकान ले लिया। यहां तो पागल भी रहते हैं
और बच्चे भी शरारती हैं। जरा संभल के रहना होगा।”
“क्या कर सकते हैं। अब मकान खरीद लिया है रहने आ गए है। मकान तो अपनी मर्जी
का सोच समझ कर खरीद सकते है, लेकिन पडोसी कैसे मिलेगें, इसकी गांरटी कोई
नही दे सकता है। आज अच्छा है, कल कोई खराब पडोसी भी हो सकता है। मैं और आप
कुछ नही कर सकते हैं।” वृन्दा ने एक गहरी सांस लेकर कहा।
कुछ दिन बाद शाम के समय विमल आफिस से घर वापिस आ रहा था। गली में प्रवेश
करते अचानक विमल को अपनी बाईक में ब्रेक लगानी पडी, क्योंकि एक अधेड महिला
अचानक से एक मकान से भागती हुई आई, बाईक को देख कर घबराहट में जमीन पर गिर
पडी। अचानक ब्रेक लगाने के कारण बाईक का बैलेंस बिगड गया। विमल भी औधें
मुंह गिर गया। उस महिला ने अंट शंट दो चार गालियां बकी, फिर फुर्ती से गली
से बाहर भाग गई। यह घटना क्रम इतनी तेजी से हुआ कि विमल उस महिला का चेहरा
नही देख सका। गली के दो युवकों ने विमल को सहारा देकर उठाया। विमल ने अपने
जिस्म का मुआइना किया। सडक की रगड लगने से उसकी जैकेट, स्वेटर, पेंट, फट गई
थी। घुटने, हाथों पर खरोंचों ने अच्छा खासा नक्शा बना डाला था। मोटे गर्म
कपडों के कारण चोट थोडी कम लगी। एक युवक ने बाईक को स्टेंड पर लगाया। दूसरे
युवक ने विमल के हुलिए को देख कर कहा, “भाई साहब ज्यादा चोट लगती है, फौरन
डाक्टर के पास जाकर टिटनेस का इंजेक्शन लगवा कर दवाई लीजिए।” साली पागल कह
कर उसने भी उस महिला को दोचार गंदी गालियां बक दी। तभी एक बुजुर्ग उस मकान
से निकले, जहां से वह महिला भागती हुई उसकी बाईक के सामने गिर पडी थी। उन
बुजुर्ग ने दोनों हाथ जोड कर विमल से माफी मांगी। “पागल है, बेचारी। माफ कर
दो। आपको चोट लगी है, मैं आपको डाक्टर के पास ले चलता हूं।”
“किस किस को डाक्टर के पास ले जाऔगे। साली पागल को पागलखानें में भेजों।”
कह कर उस युवक ने फिर से मां बहन की चार पांच गालियां बक दी। बुजुर्ग की
आंखों में आंसू छलक आए। डाक्टर का क्लिनिक पास में था। जख्मों पर दवा
लगवाते विमल ने उन बुजुर्ग से पूछा। “कौन थी वो।”
“मेरी बेटी।”
“लोग उसे पागल कह रहे थे, क्या यह बात सच है।”
“हां बेटे, पागलखाने भी रखा था उसे, कभी कभी पागलपन के दौरे पडते है, इस
उम्र में देखा और सहा नही जाता। लोग सरे आम गालियां बकते है, तो वह भी पलट
के जवाब देती है।” कब कर बुजुर्ग चुप हो गए। विमल ने कुछ और अधिक जानना
चाहा, लेकिन बुजुर्ग चुप रहे तो चुप्पी देख कर विमल ने अधिक जानना उचित नही
समझा।
दवा लेकर विमल घर पहुंचा तो लंगडाते पति को देखकर वृन्दा सन रह गई। “क्या
हुआ।”
“बाईक के आगे एक महिला अचानक से आ गई, ब्रेक लगाई तो बैलेंस बिगड गया, गिर
पडा, थोडी चोट लग गई। लोग कह रहे थे, वह पागल है, हमारी गली में रहती है,
मुझे तो मालूम नही, क्या तुमहे कुछ मालूम है।” विमल ने वृन्दा से पूछा।
पडोस कैसा है, आमतौर पर मर्दो को अधिक फर्क नही पढता। पूरा दिन तो आफिस में
कामकाज में बीत जाता है। गृहणियों को हमेशा आसपडोस से वास्ता रहता है।
इसलिए उनकी ख्वाहिश एक अच्छे पडोस की जरूर रहती है। नए मकान में शिफ्ट हुए
विमल और वृन्दा को दो महीने हो गए। आफिस आते जाते दो चार बार गली के
बाशिन्दो की बात उसके कानों मे पड जाती कि साली पागल है, पूरी पागल। अपने
बच्चों को उससे दूर ही रखो। कोई भरोसा नही उसका। कोई पत्थर मार कर कभी सिर
तोड दे। पता नही पागलखाने वालों ने कैसे छोड दिया उसको। विमल इन दो महीनों
में यह नही जान सका कि वह पागल महिला कौन है। कभी फुरसत ही नही मिली और आज
रास्ते में वह महिला टकराई, तो चोट खा बैठा। आज उसने जब पत्नी वृन्दा से
पूछा कि वह गली में रहने वाली पागल महिला को जानती है।
“सुना तो है, कि वो पागल है, पर मेरा दिल नही मानता उसे पागल।” वृन्दा के
मुख से यह बात सुन कर विमल हैरान हो गया
“इसका मतलब है, कि तुम उसको जानती हो।”
“हां, उसको जानती हूं।अक्सर वह हमारे घर आती है।”
“क्या कह रही हो तुम वृन्दा। एक पागल औरत का हमारे घर आना जाना है, यह बात
तुम हंस कर कह रही हो।” विमल की परेशानी बढती जा रही थी।
“परेशान होने की कोई जरूरत नही है, मेरा यकीन करो। जब तुम उससे मिलोगे, तब
दातो तले ऊंगली दबा लोगे। लोहा मान लोगे उसकी काबलियत का।”
विमल समझ नही सका कि जब सब उसे पागल कहते है, उसका पिता भी उसको पागल कह
रहा था, उसके मुंह से गंदी गालियों की बोछार खुद उसने सुनी। उसकी पत्नी
वृन्दा ने उसे अकलमंद घोषित कर दिया। पत्नी की बात सुन कर उस महिला से
मिलने की तमन्ना विमल को तीव्र हो गई। वह घडी इस घटना के तीसरे दिन ही आ
गई। दो दिन से विमल को बुखार हो रखा है। सर्दियों के दिन, सूरज देव रूष्ठ
हो कर न जाने कहां छुपे हुए है, किसी को नही मालूम है। हर आदमी परेशान है,
ढूंढने भी कहां जांए। सर्द हवाऔ के बीच शरीर में झरझुरी सी होती रहती है।
गर्म कपडों को लाद कर सीखियां पहलवान भी दारासिंह से कम नही लगता है। दस
बारह किलो वजन बढ जाता है, गर्म कपडों में शरीर को छुपा कर। एक तो बुखार,
ऊपर से जाडा, सूर्य देव का प्रकोप, विमल दो दिनों से रजाई से बाहर ही नही
निकल सका। पसीने से लथपथ विमल की नींद सुबह चार बजे खुली। बुखार उतरने के
पश्चात शरीर एकदम निचुडा हुआ, गला प्यास से सूखा हुआ। कमरे में नाईट लैंप
का नीला मध्यम प्रकाश सर्दियों की डरावनी भयानक रात में सूकून देने में
सक्षम था। जाडे के मौसम में रजाई हटा कर घडी में समय देखा। फिर मन ही मन
कहा, अभी तो चार बजे हैं। सर्दियों की रात, एकदम शून्य सी रात, चारों ओर
सन्नाटा, घडी की टिकटिक सन्नाटे में कह रही थी, समय तुम्हारे साथ है, रात
की शान्त शून्य सी रात में भी घडी की आवाज सिर्फ यही बतलाती है, समय सच्चा
साथी है, जो हर समय साथ रहता है, बाकी कोई सुध नही लेता। जीवनसंगनी भी घोडे
बेच कर खरर्टे भरती हुई चैन से सो रही है। उसे पति के स्वास्थय की चिंता
है, दो दिन से तीमारदारी कर रही है। रात को अचानक नींद खुलने पर समय तो साथ
है, पत्नी को दो घडी चैन लेने का अघिकार है, इसलिए उसको उठाना उचित नही है।
प्यास बुझाने के लिए पानी वह स्वयं ही गिलास में भर कर पी लेता है। प्यास
को शान्त करने के पश्चात रजाई ओढ कर करवट बदली। समय पर वार करती हुई पत्नी
वृन्दा नींद से जागी और विमल से पूछा,“ कुछ चाहिए।”
“प्यास लग रही थी।” विमल ने कहा।
रजाई हटाकर वृन्दा ने कहा, “अभी पानी पिलाती हूं।”
“मैने पानी पी लिया है।” विमल ने घीरे से कहा।
“मुझे जगाया होता, तबीयत ठीक नही है, दो दिन से आंख भी नही खोल सके। पहलवान
बनने की कोई आवश्कता नही है।”
वृन्दा की बात सुन कर विमल हंस दिया। विमल की खिलखिलाहट से वृन्दा भी
मुसकुरा उठी। “शुक्र है, होठो पर हंसी आई। अच्छी तबीयत के लक्षण हैं।”
“हां, बुखार इस समय नदारत लग रहा है।” विमल ने वृन्दा की ओर मुख करके कहा।
“बिलकुल छूमंतर होना चाहिए, बुखार को। लेकिन आप अब जाग कर बातों में अपनी
शक्ति व्यर्थ न करे। आराम करके पूरे स्वस्थ हो जाईए। यदि नींद नही आ रही
है, तब भी लेट कर पूरा आराम कीजिए।” कह कर वृन्दा ने नाईट लैंप को बुझा
दिया। नीला प्रकाश कालिमा में बदल गया। थोडी देर तक विमल अंधेरे में घडी की
टिकटिक सुनता रहा। फिर नींद के आगोश में कैद हो गया। रात को काफी देर तक
जागने और बुखार की कमजोरी के कारण विमल सुबह देर तक सोता रहा। वृन्दा ने आठ
बजे विमल के माथे पर हाथ रखा। विमल शान्त एक छोटे बालक की भांति सो रहा था।
माथे पर हाथ से स्पर्श से उसने आंखे खोली। एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ
विमल ने वृन्दा को देखा।
“कैसी तबीयत है अब।” वृन्दा ने रजाई को ठीक करते हुए पूछा।
“आज बहुत अच्छा लग रहा है।” विमल ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा।
“दो दिनों से उठे नही हो। ब्रश कर लो, तब तक चाय बनाती हूं। थोडा बिस्तर से
बाहर निकलो। देखो आज तो सूर्य देव भी प्रसन्न मुद्रा में सुबह सुबह प्रकट
हुए है।” कह कर वृन्दा ने खिडकी का परदा हटाया।
बिस्तर में लेटे हुए ही विमल ने नजरे खिडकी से बाहर दौडाते हुए सामने की
इमारत पर टिकाई। सूरज की लालिमा से इमारत उज्जवल हो कर नहाई हुई प्रतीत हो
रही थी। उठ कर बाथरूम जाकर फ्रेश हुआ तब तक वृन्दा चाय बना कर ले आई। चाय
की चुस्कियों के बीच समाचारपत्र पढने लगा। विमल को चाय देकर वृन्दा नहाने
चली गई। एक घन्टे बाद सूर्य देव ने अपने प्रकाश से सभी जीव जन्तुऔं के बदन
में चुस्ती फुर्ती भर दी। सभी मकानों की बालकोनी में या फिर घर के आंगन में
सूर्य देव के ताप से सर्दी का सामाना करने के लिए कमर कस कर ऐसी तैयारी में
जुटे हुए थे, मानों किसी युद्ध में जाना हो। सर्दी को दूर भगाना किसी युद्ध
से कम नही है। दो दिनों बाद आज विमल को भी बुखार से आजादी मिली थी। दस बजे
डाक्टर से दवा लेने के बाद विमल घर वापिस आकर बरामदे में बैठ कर धूप सेंकने
लगा। वृन्दा डाक्टर के क्लिनिक से मार्किट में रसोई का सामान खरीदने के लिए
रूक गई। विमल समाचारपत्र पढ रहा था, तभी कालबैल की आवाज सुनकर विमल ने
दरवाजे की ओर देखा। गेट पर एक महिला खडी थी। सांवला सा रंग, औसत कद, साधारण
सी साडी और शॉल पहने उस महिला ने विमल से पूछा, भाई साहिब, क्या मैं अंदर आ
सकती हूं।
अंदर आने के प्रश्न पर विमल ने महिला को पहचानने का प्रयत्न किया, लेकिन
असफल रहा। “मैनें आपको पहचाना नही।” विमल ने कुर्सी पर बैठे बैठे कहा।
हांलाकि विमल ने उस महिला को नही पहचाना था, फिर भी स्वयं गेट खोल कर अंदर
आ गई और विमल के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई। विमल उसके इस बेबाक अंदाज से
हैरान हो गया। विमल के कुछ कहने से पहले ही उस महिला ने अपना परिचय दिया।
“मैं शान्ति हूं, भाई साहिब गली में दूसरा मकान जो है, वहां मैं रहती हूं।
आते जाते मैं आपको देखती हूं,लेकिन आश्चर्य की बात है, कि आपने मुझे नही
पहचाना। वृन्दा भाभी तो मुझे जानती हैं। मैं उनसे मिलने आई हूं।”
“वृन्दा अभी मार्किट में है थोडी देर में आएगी।” विमल कह कर मन ही मन सोचने
लगा, औरतो की नजर काफी तेज होती है, कोई बच नही सकता। उसने आज तक शान्ति को
नही देखा। खैर देखा भी कैसे होगा। अभी दो महीने पहले ही तो इस मकान में आए
है। सुबह सुबह जल्दी आफिस जाना, रात को घर वापिस आना। यही दिनचर्या है,
विमल की। पडोस में कौन रहता है, विमल को मालूम नही। उसके दिल दिमाग में यह
बात भी नही आ सकती थी कि यह महिला वही है, जो उसकी बाईक के आगे गिरी थी,
लोग उसे पागल कह रहे थे, क्योंकि वह उसका चेहरा नही देख सका था। विमल सोच
ही रहा था, कि शान्ति ने मौन तोड कर कहा। “भाई साहिब, क्या मैं समाचारपत्र
पढ सकती हूं?”
“हां हां, अवश्य।” विमल ने हिन्दी का समाचारपत्र आगे बढाया। शान्ति
समाचारपत्र पढने लगी। विमल की नजरे समाचारपत्र में थी लेकिन सोच कहीं ओर,
शान्ति की ओर। आखिर कौन है, वह। वृन्दा भी घर पर नही है। आज पहली बार एक
अजनबी महिला से मिला। उसे झेंप हो रही थी, लेकिन वह अजनबी महिला, शान्ति
मजे में समाचारपत्र पढ रही है, जैसे घर विमल का नही, बल्कि शान्ति का हो,
और विमल उससे मिलने आया हो। हिन्दी का समाचारपत्र पढने के बाद शान्ति नें
अंग्रेजी का समाचारपत्र मांग कर पढा। विमल को शान्ति एक आफत लग रही थी।
उससे कैसे पीछा छुड़ाया जाए, अभी वह इस उधेडबुन में था, कि वृन्दा मार्किट
से वापिस आ गई। वृन्दा को देखकर शान्ति मुसकुरा कर बोली “हाए भाभी।” वृन्दा
ने भी कहा “हाए शान्ति कब आई। तबीयत ठीक है न।”
“बिल्कुल ठीक है। मगर यह क्या, भाई साहब को बीमार बना दिया।” शान्ति ने
अपनेपन से कहा।
वृन्दा ने हंसते हुए जवाब दिया, “तू भी शान्ति पागलों जैसी बाते करती है।
क्या मैंने अपने पति को बीमार किया है। तू खुद देख रही है, कितनी ठंड है।
ठंड लग गई है।”
“हां भाभी, ठंड तो बहुत है, उसी कारण मैं भी तीन दिन बिस्तर पर पढी रही।”
शान्ति इतना कह कर वृन्दा के पीछे अंदर कमरे में चली गई और विमल ने चैन की
सांस ली कि खैर है, वृन्दा शान्ति को जानती है, वरना वृन्दा नाराज हो कर
विमल पर ही बरसती कि बिना जान पहचान के किसी को घर में बिठा लिया, अगर किसी
गैंग की सदस्या होती, कुछ ऊंच नीच हो जाती तो कौन जिम्मेवार होता। उधर
शान्ति, वृन्दा आपस में बाते कर रही थी और इधर विमल कुछ देर तक समाचारपत्र
पढ कर कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गया। बीमारी के बाद थकान के कारण विमल की
आंख लग गई।
दोपहर को खाने के समय विमल ने वृन्दा से शान्ति के बारे में पूछा। वृन्दा
ने बताया “इससे तुम मिलना चाहते थे और मेरी गैरहाजिरी में मिल ही लिए।”
“मैं समझा ही नही, कि क्या कहना चाहती हो तुम।”
“यह शान्ति वही पागल औरत है, जिसका तुम पूछा करते थे और मैं कहा करती थी कि
वह एक अक्लमंद है। उसको पागल कहने वाले खुद पागल हैं।” वृन्दा की बात सुन
कर विमल इतना ही कह सका। “हां वह पागल नही है। तुम और क्या जानती हो उसके
बारे में।”
वृन्दा ने शान्ति के बारे में बताना शुरू किया। शान्ति सामने वाली कतार के
दूसरे मकान में अपने माता पिता के साथ रहती है। पढी लिखी महिला का जीवन एक
दुख भरी कहानी है। विवाहित शान्ति अपने पति और बच्चों से दूर अपने मायके
रहती है। वृन्दा की नजर में शान्ति में कोई कमी या खोट नजर नही आता है, फिर
भी ससुराल और पति ने घर से निकाल दिया। शान्ति के दो बच्चे हैं। दोनों लडके
और दो बच्चों की मां शान्ति को पागल घोषित करके मायके बिठा दिया।
“बातों से तो पागल नही लगती है। अंग्रेजी का समाचारपत्र पढ रही थी। उसके
व्यवहार, बातचीत के तरीके से हर व्यक्ति उसे सयाना ही कहेगा।” विमल की समझ
से परे था, कि लोग उसे पागल क्यों कहते है। यह विषय ही कुछ ऐसा है। इतनी
जल्दी कैसे किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। किसी की कोई भी बात सच मान कर
विश्वास करना ही पडता है। समय बीतने पर किसी व्यक्ति के साथ रहने पर ही
उसकी असलियत पता चलती है। विमल ने इसी तर्क पर शान्ति के बारे में सोचना
बंद कर टेलीविजन के चैनल बदलना शुरू कर दिया। उसे पक्का यकीन हो गया कि
वृन्दा ने शान्ति को सही परखा है। दो दिनों पश्चात बीमारी से छुटकारा पाकर
अपने रूटीन के कार्यों में व्यस्त हो गया, वोही दिनचर्या, सुबह जल्दी आफिस
जाना, रात को देर से घर वापिस आना। आफिस से एक सप्ताह की छुट्टी पर सारा
पेंडिंग काम निबटाने के साथ नया काम भी साथ साथ पूरा करने के चक्कर में रोज
रात को आफिस में बैठ कर काम करने पर वृन्दा ने एक दिन बोल ही दिया, “अधिक
काम के बोझ में फिर तबीयत बिगाड लोगे। काम तो कभी समाप्त नही होंगे।”
“क्या किया जाए श्रीमति जी आदमी को मशीन समझ कर काम करवाया जाता है, आफिसों
में।”
“मशीन भी तो खराब हो जाती है।”
“नई मशीन खरीद लो। यही नुख्सा अपनाया जाता है। मनुष्य की कोई औकात नही है।
मशीन से भी खराब हैसियत है। काम में जरा सी देरी हुई नही, फौरन आर्डर हो
जाते है, निकालो सालों को, नई भरती करलो।” विमल के इस तर्क पर वृन्दा चुप
होकर रसोई के कार्यों में जुट गई।
लगभग बीस दिनों के बाद विमल का काम रूटीन पर आया। शनिवार के हाफडे पर ठीक
दोपहर के दो बजे विमल ने ब्रीफकेस उठाया, घर की ओर रवानगी की। जैसे ही गली
में प्रवेश किया, शान्ति अपने घर के दरवाजे पर खडी थी। विमल को देखकर
मुसकुरा कर बोली। “भाई साहब नमस्ते।” शिष्टाचार के कारण विमल कुछ छण के लिए
रूक कर शान्ति के नमस्ते का जवाब दिया। शान्ति और विमल का वार्तालाप दस
मिन्टों तक चलता रहा। आफिस और फिर सुबह के समाचारपत्र की सुर्खियों के बाद
टीवी सीरियल पर बातें हो गई। दस मिन्ट बाद कुछ झेंप कर शान्ति बोली। “अंदर
आईये, भाई साहब, मैं भी कितनी पागल हूं, कि आप आफिस से थके आए हैं, आपको
बैठने को भी नही कहा।”
“नहीं शान्ति, बहुत दिनों बाद आज दोपहर का भोजन वृन्दा के साथ करने का मौका
मिला है, रूकूंगा नही।” कह कर विमल ने घर की ओर प्रस्थान किया।
“ओके बाए, भाई साहब।” कह कर शान्ति भी घर के अंदर चली गई।
घर के दरवाजे पर वृन्दा विमल का इंतजार कर रही थी, हंसते हुए बोली। “सहेली
से गपशप कर आए।”
थोडा झिझकते हुए विमल हैरानी से बोला, “सहेली, कौन सहेली, सीधा आफिस से आ
रहा हूं।”
“तो दस मिन्टों तक यहां दरवाजे पर इंतजार करते हुए शान्ति के साथ मधुर
वार्तालाप देख रही थी, अफसोस है कि बाते सुन नही सकी।”
“औ शान्ति, उसने तो पकड ही लिया, शिष्टावश वार्तालाप हो गया।”
“ठीक है, मैं कुछ कह थोडे रही हूं, अंदर चलो। कितने समय बाद आज मौका मिला
है, साथ साथ खाना खाने का, समय व्यर्थ गवाना नही है।” कह कर वृन्दा ने विमल
के हाथ से ब्रीफकेस लिया। हाथ मुंह धोकर विमल ने खाना खाते हुए वृन्दा से
पूछा। “आखिर क्या बात है, कि शान्ति को पागल कहते है, आज दस मिन्ट के
वार्तालाप में वह मुझे समझदार, अकलमंद लगी। हर विषय पर बात कर सकती है।
राजनीति, खेलकूद, सिनेमा, टीवी, कोई विषय नही छोडा उसने। फराटेदार अंग्रेजी
भी बोलती है। लोग पागल क्यों कहते हैं, उसको।”
खाना खाने के बाद सर्दी की धूप सेंकते हुए वृन्दा ने कहा। “शान्ति मेरे पास
हररोज आती है, जो उसके बारे में तुम्हारी राय है, ठीक वही राय में रखती
हूं, उसके बारे में। कई बार जब उसका मन विचलित होता है तो अपना दुखडा
सुनाती है। उसकी बातों में सच्चाई है। शान्ति नाम उसका अवश्य है, लेकिन
दुनिया ने उसका जीवन अशान्त बना रखा है। शान्ति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के
मिरांडा कालेज से अंग्रेजी में एमए किया है। एक तो अमीर मांबाप की संतान और
फिर उस समय लडकियां नौकरी में कम ही जाती थी। कमसे कम अमीर घराने की
लडकियों का तो नौकरी करने का कोई मतलब ही नही होता था। एक संपन्न घराने में
विवाह हो गया। पूरी गृहस्थन बन गई शान्ति। लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था।
तीसरे बच्चे की डिलीवरी के समय शान्ति का स्वास्थ्य बिगड गया, नौबत यहां तक
आ गई कि मां या बच्चे में से कोई एक बच सकता था। डाक्टरों के प्रयास से
शान्ति तो बच गई, लेकिन बच्चे को बचाया नही जा सका। दो साल तक शान्ति
बिस्तर के हवाले थी। छोटे बच्चों के लालन पालन के साथ शान्ति का बिस्तर पर
पडा शरीर ससुराल के साथ पति को भी एक बोझ लगने लगा। ससुराल वालों ने शान्ति
को मायके भेज दिया। शारीरिक रूप में असमर्थ शान्ति ने पति को दूसरे विवाह
की अनुमति इस आधार पर दी कि कम से कम उसके बच्चों का लालन पालन सही हो
सकेगा। छोटे बच्चे अपनी मां को भूल गए, सौतेली मां को अपना समझने लगे। अपने
बच्चों से मिलने की आशा ने शान्ति को नया जीवनदान दिया। प्रबल इच्छा शक्ति
के कारण बिस्तर से उठ कर अपने पैरों पर खडी हो गई, लेकिन लम्बी बीमारी ने
उसका योवन खींच लिया था। एक थके हुए शरीर को पति ने स्वीकार नही किया।
बच्चों को यह कह कर दूर कर दिया कि वह तो पागल है। बच्चों के नाजुक मन पर
एक एैसी छाप छ¨डी कि बच्चे शान्ति के कंकाल जैसे शरीर को देखकर सहम जाते।
पति एक असहाय, लाचार, टूटे फूटे शरीर, अस्वस्थ पत्नी से पीछा छुडाना चाहता
था, यदि बच्चे उसके साथ घुलमिल जाते, तो दूसरा विवाह मुश्किल था। उससे
छुटकारा पाने के लिए पागलखाने में डाल दिया। पति और बच्चों से जुदाई जब भी
शान्ति याद करती तो बेतहाशा रोने लगती, अपने अंदर की अग्नि को शांत करने के
लिए चिल्लाने लगती। उसके मांबाप यही समझते कि शान्ति सचमुच में पागल हो गई
है। उसको पागलखाने भी रखा गया। बिजली के शाक भी लगाए जाते। वह बच्चों की
जुदाई में रोती रहती, और दुनिया उसे पागल कहती। उसका दर्द कोई नही समझ सका।
आखिर थक कर शांत हो गई, तो पागलखाने से छुट्टी मिल गई। तबसे वह अपने बूढे
मांबाप के संग रह रही है। किसी ने उसकी वेदना नही समझी। अकेले में जब
तडपती, तो सभी उसे पागल समझते। मुझे तो लगता है, कि जो शान्ति को पागल
समझता है, वह खुद सबसे बडा पागल है। एक अस्वस्थ स्त्री को पागल बनाकर
छुटकारा पाना सबसे बडी मूर्खता है, लेकिन हर व्यक्ति सिर्फ अपना स्वार्थ ही
देखता है। दूसरा जाए चाहे भाड में। वह पागल नही थी। एकान्त में बातों को
याद करके रोया करती। उसका रोना सबको पागलपन लगता। बच्चे छेडते, तो गुस्सा आ
जाता। वह क्या, कोई भी एैसे मौके पर अपना आपा खो देगा। इसमें शान्ति का कोई
कसूर नही। विमल और वृन्दा की नजरों में शान्ति एक आम इंसान थी। पडोसी, गली
में हर व्यक्ति यहां तक कि उस खुद के मांबाप भी पागल ही कहते। हर कोई उनहे
सलाह देता कि शान्ति से दूर रहें। क्यों एक पागल के साथ दोस्ती, नजदीकियां
बना रहे हो। लेकिन उनका दिल नही मानता था। शान्ति उनके घर का एक हिस्सा बन
गई थी। विमल के साथ समाचारपत्र पढते हुए सामायिक विषयों पर चर्चा करती
शान्ति विमल को एक दार्शनिक प्रतीत होने लगी।
रविवार को विमल घर के आंगन में बैठकर गमलों में लगे पौधौं की देखभाल कर रहा
था। शान्ति तभी आई। मिट्टी से सटे कपडों में विमल को देखकर वह हंस दी।
“भाईसाहब आप कभी खाली नही बैठते। रविवार को छुट्टी का दिन है। आप पौधौ की
देखभाल में जुट गए।”
“शान्ति पौधौं में भी जान होती है। बिना देखभाल के मुरझा जाएगें। देखो यह
तुलसी का पौधा है, तुलसी में औषधीय गुण हैं। यह गुलाब के पौधे।।।” इतना सुन
कर शान्ति बोल उठी, “गुलाब की महक ही अलग है। तभी भारत के प्रथम
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी अचकन में गुलाब का फूल लगाते थे।”
वृन्दा दोनों की बाते सुन रही थी, उसने शान्ति को संबोधित करते हुए कहा,
“नेहरू जी, कभी कभी तुमहारे भैया फंसते है, घर के कामकाज में हाथ बटाने के
लिए। उनको काम करने दे। तू अंदर रसोई में आकर मेरा हाथ बटा।” इतना सुनते ही
शान्ति खिलखिलाते हुए लंबे डग भरते हुए वृन्दा के साथ रसोई में जुट गई।
जैसे जैसे समय बीतता गया। शान्ति का विमल, वृन्दा के साथ घनिष्ठता बढती गई।
शाम को जब विमल आफिस से घर पहुंचता तो अक्सर वृन्दा के साथ शान्ति भी घर के
दरवाजे पर स्वागत के लिए मिलती।
रविवार की दोपहर विमल। वृन्दा शापिंग करके घर वापिस आ रहे थे। शान्ति के घर
शोर सुन कर दोनों के कदम ठिठके। शान्ति दिवारों से सिर पटक पटक कर कह रही
थी, मुझे जाने दो, सिर से खून बह रहा था। उसके बुजुर्ग मां बाप उसे
संमभालने में असफल थे। विमल और वृन्दा ने शान्ति को पकडा। विमल और वृन्दा
को देखकर शान्ति को कुछ हौसला हुआ कि वे दोनों उसकी बात समझेगें। उसका उग्र
शान्त हुआ। सबसे पहले नर्सिंगहोम ले जाकर पट्टी करवाई। वृन्दा ने शान्ति के
गालों पर हल्की चपत लगा कर कहा, “पागल क्यों बन रही है। मुझसे कह। क्या
चाहती है।”
“दीदी मेरे बेटे की शादी है। मैं उसको आर्शीवाद देना चाहती हूं। एक खुशी का
मौका है, मैं भी नाचना चाहती हूं, जश्न मनाना चाहती हूं, मुझे सब रोक रहे
है।”
वृन्दा ने हैरानी से शान्ति के माता पिता से पूछा, “आप इसको पुत्र विवाह से
क्यों दूर रख रहें हैं।”
रोते रोते शान्ति के पिता ने कहा, “मैं क्यों रोकूंगा इसको। इसके पुत्र
विवाह की खबर हमें मालूम थी, हमने इससे यह बात इस कारण छुपाई कि इसकी
ससुराल ने सारे संबंध तोड रखे है। पति ने त्याग रखा है। बच्चे इसको पहचानते
नही। क्या करेगी विवाह में जाकर। दो दिन पहले हमारे घर रिशतेदार आए और इसके
सामने विवाह की बात की। यह पागल ससुराल अपने पति और पुत्र से मिलने चली गई।
पति ने दुतकार दिया। बच्चे पहचानते नही। ससुराल वालों ने धक्के मार कर बाहर
कर दिया, तभी से पगला गई है।”
“मैं पागल नही हूं, दीदी, दुनिया पागल है। मैं जानती हूं, दीदी आप मेरी
सहायता जरूर करेंगी। मुझे मेरे बच्चे से मिलना है।”
“हां मैं तुझे लेकर जाऊंगी, लेकिन एक शर्त पर, तू पगलाएगी नही।” वृन्दा की
बात सुन कर विमल हैरान हो गया कि वृन्दा ने क्या सोच समझ कर शान्ति से
वायदा किया।
“हां हां दीदी, आप जैसा कहेंगी, मैं वैसा ही करूंगी।” शान्ति खुशियों से
झूमने लगी।
नर्सिंगहोम से बाहर आकर विमल ने वृन्दा से कहा, “यह क्या वायदा शान्ति से
किया तुमने।”
“काम मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नही है। हमें इसके पति से मिलना होगा।
एक असहाय महिला को छण भर की झूठी खुशी ही सही, पूरा संसार पा लेगी वह। वह
पागल नही है। स्वार्थ के कारण पागल घोषित की हुई है। शरीर से लाचार चुप कर
के सब दुख सहती रही। एक छोटे बच्चे की तरह अपनी जिद पूरी करना चाहती है, तो
क्या बुराई है, कोई नही?” यह सोच कर अगली सुबह विमल, वृन्दा शान्ति की
ससुराल पहुंचे। विवाह के शुभ उत्सव पर सभी परिवार जन विवाह संबंधित कार्यों
में व्यस्त थे। शान्ति के पति घर पर नही थे, इस कारण लगभग दो घंटे उन दोनों
को इंतजार करना पडा। इंतजार के बाद जब शान्ति के पति से मुलाकात हुई तो
उलटे वह बिगड कर बोला। “क्या अंटशंट बक रहो हो। शक्ल से तो पढे लिखे सभ्य
लगते हो, लेकिन शान्ति तो पागल है, तुम दोनों तो महापागल हो, निकल जाऔ, अभी
यहां से, मुझे कोई बात नही करनी तुम दोनों से। मंगल कार्यों में विघ्न
डालने वालों की कोई कमी नही होती। किसी की खुशियां बरदास्त नही कर सकता
कोई।” इतना कह कर शान्ति के पति ने क्रोधित होकर कहा, “फौरन निकल जाऔ, वरना
पुलिस को बुलाना पढेगा।”
जितना क्रोध शान्ति के पति को था, उतने ही शान्त विमल, वृन्दा थे। विमल ने
आराम से अपनी जेब से मोबाइल फोन निकाल कर शान्ति के पति की ओर बढाया। “यह
लीजिए फोन, बडे शौक से पुलिस को बुलाईये।”
“पुरानी कहावत है, क्रोध में मति मारी जाती है। झट से 100 नम्बर डायल कर
शान्ति के पति ने पुलिस को बुलाया। थोडी देर बाद पीसीआर की वैन ने दस्तक
दी। पुलिस के सामने उसने विमल, वृन्दा को बहुत बुरा भला कहा। झगडे में
पुलिस का काम सिर्फ अपना ऊल्लु सीधा करना होता है, अतः दोनों को थाने चलने
को कहा, तब विमल ने कहा, “आप एक तरफा बात सुन रहे है। मैं चुप हूं, इसका यह
अर्थ नही कि मैं दोषी हूं। जो दोषी है, वही होहल्ला मचा रहा है। मैं थाने
चलने को तैयार हूं, वहां रिपोर्ट लिखवानी है, कि एक पत्नी के होते हुए इन
जनाब ने दूसरी शादी की। अभी तक पहली पत्नी से तलाक भी नही हुआ है, उसको घर
से बेघर किया है, उसी के बेटे की शादी है, जिसमे मां को शामिल नही करने के
लिए आपको बुलवाया है। चलो थाने, बंद कीजिए इन महाशय को लॉकअप में।” विमल ने
सारा किस्सा पुलिस के सामने बयान किया। इतना सुनते ही पुलिस को मसाला मिल
गया, शान्ति के पति को घेरना शुरू किया, तो वह पुलिस से सौदे बाजी करने
लगा। विवाह के शुभ अवसर पर झगडा। पुलिस थाने की नौबत से निपटाने के लिए
वहां मौजूद रिश्तेदार बीच बचाव में कूद पढे। विमल का एक ही लक्ष्य था कि
शान्ति विवाह में सम्मलित होकर अपने पुत्र को एक बार गले लगा कर आर्शिवाद
दे। अपनी इज्जत बचाने। कोर्ट थाने के चक्कर से बचने के लिए शान्ति के पति
ने विमल की बात मान कर शान्ति को विवाह में शामिल होने की अनुमति दी। पुलिस
के जाने के बाद शान्ति ने विवाह के समारोह में प्रवेश किया। शान्ति आज
कितनी खुश थी, यह सिर्फ शान्ति ही जानती थी। उसकी खुशी का अंदाजा विमल,
वृन्दा को था। एक मरियल से शरीर में विषेश उत्साह का संचार उत्पन हुआ।
नाचती गाती शान्ति ने विवाह में पुत्र, पुत्रवधु को गले लगा कर आर्शिवाद
दिया। वृन्दा के पैर छूकर रो पढी। पैरो से लिपट कर बस यही कहती रही, “दीदी
मेरा सपना आपने पूरा किया है, मैं आपकी ऋणी हूं।” वृन्दा ने बहुत मुश्किल
से अपने पैरो से शान्ति को अलग किया। उसके माथे को चूमती हुई बोली, “पगली,
आज मैं तुझको सबके सामने पहली बार कहूंगी पागल। तू पागल ही है। तुझको विवाह
में शामिल होना था, हुई। इसमें ऋण कैसा। शायद मैने अपना कर्तव्य पूरा किया
है।”
शान्ति के मुख पर लालिमा थी। कोई कारण नही जान सका। रात को बिस्तर पर सोने
के लिए लेटी और शान्त हो गई। पूरी जिन्दगी दुखों में काटती रही। लोगों की
गालियां सुनी। एक सुख पाकर शान्त हो गई। सारा मुहल्ला जो उस पर थूकता था।
रोते रोते शवयात्रा में सम्मलित थे। एक पागल के शान्त होने पर सभी छोटे,
बढे रोए जा रहे थे। उसके शान्त होने पर ही उसका दुख समझ सके। पति और पुत्र
ने अपना कर्तव्य अंतिम संस्कार करके निभाया। जो उसके घर से बच कर निकलते
थे, आज रूक रूक कर घर के दरवाजे पर टकटकी लगाए हुए थे, शायद शान्ति घर से
बाहर निकल आए।