इक वलवला-ए-ताज़ा[1] दिया मैंने दिलों को लाहौर से ता-ख़ाके-बुख़ारा-ओ-समरक़ंद[2] लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने जिस देस के बन्दे हैं ग़ुलामी पे रज़ामंद[3]