सुनो संत सज्जन भाई । हम तो निराकारके गारुडी आया है ।
हमारे उप्पर संतकी नवाई । इस कलजुगमें पैदा हुवे ॥१॥
ये देखो खेल खेलत रस्तेमें । सब आलम दुनिया देखत है ।
आबे चल अहां हांडीबाग । जरा प्रेमका ढोल बजाव ।
लग लग लग लग ॥२॥
पहिले तो छे साप निकालू मैदानमें ।
बडे बडे अजगर उसके नाम बताउ ।
काम क्रोध मद मत्सर दंभ अहंकार ॥३॥
अबे चल ये साबने बडे बडेकूं डंक मारा ।
भस्मासुर तो भसम कर दिया । पराशर तो ढीवरनके पिछे लगा ।
इंद्रकी तो भगांकित हो गई काया ।
महादेव तो भिल्लिनके पिछे लगा । विष्णु तो वृंदा देखकर घबराया ।
ब्रह्मदेव तो सरस्वतीपर ख्याल किया । ऐसे साप कठिण है ॥४॥
अ ब ब ब । अज्ञानके पेटीमें भरे है ।
निकालु समाल बे डंक मारे गा । ये हात डाला ॥५॥
डंक माराबे डंक मारा । हाय बडी वेदना होती है ।
आबी जान जाती है । तुजकू क्या बताऊं ।
आबी उतारनेवाला कोण बुलावूं । सुनो मेरे पास सदगुरुका मोहरा है ।
प्रेमका बनाऊ सान । बोधका बनाऊ पानी ।
भक्तीके बैठु दरबारमें । आबी लगाऊ घसके ।
तो सबे जहर उतारु ॥६॥
अबी भक्ती नागीन निकालु । इस नागनसे बडे बडे खेल खेलत ते ।
शुक याज्ञवल्क्य दत्त कपिलमुनि ऐसें खेल खेलते ते ॥७॥
आबे हांडीबाग । आहांजी तेरेकु कुच याद है ।
हांजी । ये देखो पहिले ता मारु फुक ।
आबी बनाऊ एक । एक क्या है ।
एक तो निराकार भगवान है । दो क्या है ।
ब्रह्ममें माया । मायामें ब्रह्म । तीन क्या है ।
तीन तो ब्रह्मा विष्णु महेश हैं ।
चार क्या है । चार तो बेद है । पांच क्या है ।
पांच तो पंचभूत आत्मा है । छे क्या है ।
छे तो शास्त्र है । सात क्या है ।
सात तो सप्तपाताल है । आठ क्या है ।
आठ तो आठ प्रकृती है । नऊ क्या है ।
नऊ तो नवविधा भक्ती है । दस क्या है ।
दस तो दस अवतार है । ग्यारा क्या है ।
ग्यारा क्या है । ग्यारा तो रुद्र है ।
बारा क्या है । बारा तो सूर्यकी कला है ।
तेरा क्या है । तेरा तो कछपक्या रान्या है ।
चवदा क्या है । चवदा तो तल है ।
पंधरा क्या है । पंधरा तो तिथी है ।
ऐसा एका जनार्दनीं खेल । भक्ती पुरस लगाया मेल ॥८॥
हमारे उप्पर संतकी नवाई । इस कलजुगमें पैदा हुवे ॥१॥
ये देखो खेल खेलत रस्तेमें । सब आलम दुनिया देखत है ।
आबे चल अहां हांडीबाग । जरा प्रेमका ढोल बजाव ।
लग लग लग लग ॥२॥
पहिले तो छे साप निकालू मैदानमें ।
बडे बडे अजगर उसके नाम बताउ ।
काम क्रोध मद मत्सर दंभ अहंकार ॥३॥
अबे चल ये साबने बडे बडेकूं डंक मारा ।
भस्मासुर तो भसम कर दिया । पराशर तो ढीवरनके पिछे लगा ।
इंद्रकी तो भगांकित हो गई काया ।
महादेव तो भिल्लिनके पिछे लगा । विष्णु तो वृंदा देखकर घबराया ।
ब्रह्मदेव तो सरस्वतीपर ख्याल किया । ऐसे साप कठिण है ॥४॥
अ ब ब ब । अज्ञानके पेटीमें भरे है ।
निकालु समाल बे डंक मारे गा । ये हात डाला ॥५॥
डंक माराबे डंक मारा । हाय बडी वेदना होती है ।
आबी जान जाती है । तुजकू क्या बताऊं ।
आबी उतारनेवाला कोण बुलावूं । सुनो मेरे पास सदगुरुका मोहरा है ।
प्रेमका बनाऊ सान । बोधका बनाऊ पानी ।
भक्तीके बैठु दरबारमें । आबी लगाऊ घसके ।
तो सबे जहर उतारु ॥६॥
अबी भक्ती नागीन निकालु । इस नागनसे बडे बडे खेल खेलत ते ।
शुक याज्ञवल्क्य दत्त कपिलमुनि ऐसें खेल खेलते ते ॥७॥
आबे हांडीबाग । आहांजी तेरेकु कुच याद है ।
हांजी । ये देखो पहिले ता मारु फुक ।
आबी बनाऊ एक । एक क्या है ।
एक तो निराकार भगवान है । दो क्या है ।
ब्रह्ममें माया । मायामें ब्रह्म । तीन क्या है ।
तीन तो ब्रह्मा विष्णु महेश हैं ।
चार क्या है । चार तो बेद है । पांच क्या है ।
पांच तो पंचभूत आत्मा है । छे क्या है ।
छे तो शास्त्र है । सात क्या है ।
सात तो सप्तपाताल है । आठ क्या है ।
आठ तो आठ प्रकृती है । नऊ क्या है ।
नऊ तो नवविधा भक्ती है । दस क्या है ।
दस तो दस अवतार है । ग्यारा क्या है ।
ग्यारा क्या है । ग्यारा तो रुद्र है ।
बारा क्या है । बारा तो सूर्यकी कला है ।
तेरा क्या है । तेरा तो कछपक्या रान्या है ।
चवदा क्या है । चवदा तो तल है ।
पंधरा क्या है । पंधरा तो तिथी है ।
ऐसा एका जनार्दनीं खेल । भक्ती पुरस लगाया मेल ॥८॥
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