अव्वल याद करो वस्तादकी । गुरु पीर पैगंबरकी । और याद करो करतारकी । जिन्नै मडान पैदा । लिया है । अव्वल देखो ये कथा । उसे नाम नथा । नाम दरम्याने पैदा हुवा चल चल चल । अव्वल तो एक । एक सो दोन । दो सो तीन । तीन सो चार । चार सो पांच । पांचसो पचीस । पचीस सो छत्तीस बनाया है । छत्तीस का बी एक र्हया है । सो गुरु गारुडी कूं याद है । और देखो कैसा खेल बनाया है । चल चल चल । क्रोध का बिच्चु बाहेर काढा । उसका वीख शिरकु चढा । जपीतपी संन्यासी की खोड तोडा । समजके देखो भाई बिच्चुनें नांगी मारा रे मारा । छनननन कहने लगा । चल चल चल । दे देखो बाहेर निकाला । काम विषयका साप । तमाशा देखो मेरे बाप । बिनंदा तासे काटे आपे आप । अरेरेरेरे । काटा रे काटा । रे काटा नजर ध्यान करो रे नजर ध्यान करो । सो साप दूर करे । चल चल चल । ये देखो ममता नागन आयी रे भाई आयी । तिनें तो डंख मारा रे मारा । ठनननन । भागो रे भाई भागो । दवडो रे दवडो रे । गुरुके चरणपर दवडो । तो ऐसा करूं की गुरुके पांव कबीना छोडो । व्हां कोईका न चले । ममता नागनका जहर बुरा है । वो कैसी चलती है । सो बडे बडेसे लढते है । वो ना लढे ऐसी हिकमत बाताऊं तुमकुं । सुनोरे भाई सुनो । गुरु पीरके हातका मोहरा । तुम्हारे हाथ चढे दुनेदारा । तो नागनका तुटे थारा । सो कबी आवने नहीं पावे । मन मनशा साप करो । शांती पेटारोमें वुसकु डारोरे भाई डारो । बाहेर तो विवेक शिक्का मारो । जीव और तंन । ईस दोनो मुवेकु । ऐसा करुके गुरुके चरनपर । रात और दिन खेलो । जनार्दन गारुडीके पास । व्हां तुम करो खेल । खेलते खेलते हो ज्यायगा आलक्ष आफेल । एका हांडीबागकूं दिया खेल । सो हो गया आलक्ष खेल ॥ १ ॥