जब ब-तक़रीब[1]-ए-सफ़र यार ने महमिल[2] बांधा
तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे पे इक दिल बांधा
अहल-ए-बीनिश[3] ने ब हैरत-कदे[4] शोख़ी-ए-नाज़[5]
जौहर-ए-आइना[6] को तूती-ए-बिस्मिल[7] बांधा
यास[8]-ओ-उम्मीद ने यक[9] अ़रबदा-मैदां[10] मांगा
अ़जज़[11]-ए-हिम्मत ने तिलिसम-ए-दिल-ए-साइल[12] बांधा
न बंधे तिशनगी-ए-शौक़[13] के मज़मूं[14] ग़ालिब
गरचे दिल खोल के दरिया को भी साहिल बांधा
शब्दार्थ: