ख़तर[1] है, रिश्ता-ए-उल्फ़त[2] रग-ए-गरदन[3] न हो जावे
ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है, तू दुश्मन न हो जावे
समझ इस फ़सल[4] में कोताही-ए-नश्व-ओ-नुमा[5] ग़ालिब
अगर गुल[6] सर्व[7] के क़ामत[8] पे पैराहन[9] न हो जावे
शब्दार्थ:
- ↑ भय, ख़तरा
- ↑ प्यार का रिश्ता
- ↑ गरदन की नस, मुसीबत
- ↑ मौसम
- ↑ फूल कम खिले हैं
- ↑ गुलाब
- ↑ सरू का पेड़
- ↑ महिमा
- ↑ पौशाक