बहुत सही ग़मे-गेती[1], शराब कम क्या है?
ग़ुलामे-साक़ी-ए-कौसर[2] हूँ, मुझको ग़म क्या है?
तुम्हारी तर्ज़-ओ-रविश[3], जानते हैं हम क्या है
रक़ीब पर है अगर लुत्फ़[4], तो सितम[5] क्या है?
कटे तो शब कहें, काटे तो सांप कहलावे
कोई बताओ, कि वो ज़ुल्फ़े-ख़म-ब-ख़म[6] क्या है?
न हश्रो-नश्र[7] का क़ायल न केशो-मिल्लत[8] का
ख़ुदा के वास्ते, ऐसे की फिर क़सम क्या है?
सुख़न[9] में ख़ामए[10] ग़ालिब की आतश-अफ़शानी[11]
यक़ीं है हमको भी, लेकिन अब उसमें दम क्या है?
शब्दार्थ: