रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता[1] है
नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा, दूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता[2] है
दिल-लगी की आरज़ू बे-चैन रखती है हमें
वरना यां बे-रौनक़ी सूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता[3] है
इसी गज़ल की कुछ अनछपी कड़ीयां
नशा-ए-मै बे-चमन दूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता है
जाम दाग़-ए शोला-अनदूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता है
दाग़-ए-रब्त-ए हम हैं अहल-ए-बाग़ गर गुल हो शहीद
लाला चश्म-ए-हसरत-आलूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता है
शोर है किस बज़म की अ़रज़-ए-जराहत-ख़ाना का
सुबह यक-बज़्म-ए-नमक सूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता है
शब्दार्थ: