आ, कि मेरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार[1] नहीं है
देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर[2] के बदले
नशा बअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है
गिरियां निकाले है तेरी बज़्म से मुझको
हाय कि रोने पे इख़्तियार नहीं है
हमसे अ़बस[3] है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर[4]
ख़ाक में उश्शाक़[5] की ग़ुबार नहीं है
दिल से उठा लुत्फ-ए-जल्वा हाए म'आनी[6]
ग़ैर-ए-गुल[7] आईना-ए-बहार नहीं है
क़त्ल का मेरे किया है अ़हद[8] तो बारे[9]
वाये! अखर[10] अ़हद उस्तवार[11] नहीं है
तूने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
शब्दार्थ: